Wednesday, July 7, 2021

भागवत के बयान पर विवाद क्योंकि व्हाट्सएप और ब्रेकिंग न्यूज़ से हमारी याददाश्त हुई कमजोर

  भागवत के बयान पर विवाद क्योंकि
 व्हाट्सएप और ब्रेकिंग न्यूज़ से हमारी याददाश्त हुई कमजोर

3 दिन पहले संघ सरसंघचालक मोहन भागवत का बयान आया कि भारत के हिंदुओं और मुसलमानों का डीएनए एक ही है। मीडिया में आए इस बयान से हलचल मच गई। ब्रेकिंग न्यूज़ और व्हाट्सएप मैसेज के इस युग में ज्यादातर लोग ना तो संदर्भ देखते हैं और ना उन्हें पुरानी बातें याद रहती हैं। 

आरएसएस और मुसलमान यह हमेशा से ही विघ्न संतोषी लोगों का प्रिय विषय रहा है। ऐसे में भागवत के मीडिया में आए बयान की जब तक पूरी पड़ताल नहीं की जाए तब तक किसी भी तरह की धारणा बनाना उचित नहीं है।

जरा विचार कीजिए

 (१) क्या भागवत ने किसी भी पुस्तक के विमोचन समारोह में केवल एक या दो लाइन का ही भाषण दिया होगा? 

भागवत तो आमतौर पर सरल शब्दों में संदर्भों के साथ 45 मिनट से लेकर 1 घंटे तक भाषण देते हैं। इसलिए इस पुस्तक विमोचन समारोह में भी उनका भाषण कुछ लंबा ही रहा होगा ना।

(२) क्या भागवत ने ऐसा पहली बार कहा है ?

सितंबर 2018 में विज्ञान भवन नई दिल्ली में 3 दिन तक चली व्याख्यानमाला में सरसंघचालक ने क्या कहा था। जरा इसे पढ़ लीजिए


भागवत ने द्वितीय सरसंघचालक गुरु जी की पुस्तक बंच ऑफ थॉट्स और मुसलमानों से जुड़े एक प्रश्न के जवाब में कहा था - "अरे भाई हम एक देश की संतान हैं, भाई-भाई जैसे रहें. इसलिए संघ का अल्पसंख्यक शब्द को लेकर रिज़र्वेशन है. संघ इसको नहीं मानता. सब अपने हैं, दूर गए तो जोड़ना है. अब रही बात 'बंच ऑफ थॉट्स' की, तो बातें जो बोली जाती हैं वे परिस्थिति विशेष, प्रसंग विशेष के संदर्भ में बोली जाती हैं. वे शाश्वत नहीं रहतीं. एक बात यह है कि गुरुजी (गोलवलकर) के जो शाश्वत विचार हैं, उनका एक संकलन प्रसिद्ध हुआ है- 'श्री गुरुजी विजन और मिशन,' उसमें तात्कालिक सन्दर्भ वाली सारी बातें हमने हटाकर उनके जो सदा काल के लिए उपयुक्त विचार हैं उन्हें हमने लिया है. संघ बंद संगठन नहीं है कि हेडगेवर जी ने कुछ वाक्य बोल दिए, हम उन्हीं को लेकर चलने वाले हैं. समय के साथ चीज़ें बदलती हैं।"

इसके पहले भी सरसंघचालक मोहन भागवत के इस तरह के बयान आते रहे हैं। 

(३)क्या मुसलमानों के संदर्भ में इस तरह के बयान देने वाले भागवत पहले सरसंघचालक हैं?

इस सवाल का जवाब है नहीं ऐसा नहीं है। विस्तार में जाएंगे तो डॉ हेडगेवार और गुरु जी सहित सभी सरसंघचालकों के ऐसे ही विचार आपको मिल जाएंगे।

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौर में डॉ. हेडगेवार ने कुछ मुस्लिम धार्मिक नेताओं के साथ एक सहज संबंध बनाने की शुरुआत की थी और साठ के दशक में गोलवलकर ने विश्वयुद्ध से पहले के दिनों के उस रिश्ते को पुनर्जीवित करने की कोशिश की थी।"

(४) क्या कभी यह सोचा है कि हिंदू महासभा के होते हुए भी भारतीय जनसंघ की स्थापना क्यों हुई? संघ और हिंदू महासभा तो कई मुद्दों पर एक साथ काम करते थे ना।

पिछले दिनों महात्मा गांधी के संदर्भ में किए अध्ययन और लेखन के दौरान मैं इस नतीजे पर पहुंचा था कि आजादी के बाद भी हिंदू महासभा ने अपनी सदस्यता केवल उन्हीं लोगों के लिए खोली थी जो रिलीजियस रूप से हिंदू हों, जबकि संघ का मानना था कि भारत में जन्मा हर व्यक्ति हिंदू है। बशर्ते वह भारत माता को अपनी मां का दर्जा दे और यह स्वीकार करे कि हम सब के पूर्वज एक ही हैं और इस नाते भारत की संस्कृति का सम्मान करे। भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में से एक बलराज मधोक भारत के मुसलमानों को हिंदवी मुसलमान कहते थे। जनसंघ की माइनॉरिटी सेल बहुत मजबूत थी। ध्यान रहे उस समय गुरुजी संघ के सरसंघचालक थे। जनसंघ पर संघ का शत प्रतिशत नियंत्रण था आज की भाजपा तो उससे काफी हद तक मुफ्त है

(५) क्या संघ की शाखाओं में मुसलमान जा सकते हैं?

संघ ने 1979 से अपनी शाखाएं मुसलमानों के लिए खोल रखी हैं। कुछ मुस्लिम स्वयंसेवक शाखा में जाते हैं यह बात सही है कि उनकी संख्या बहुत कम है। लेकिन भारतीय मजदूर संघ और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद सहित अन्य अनुषांगिक संगठनों में बड़ी संख्या में मुस्लिम पदाधिकारी है। वे इन संगठनों के कार्यक्रमों के दौरान भगवा ध्वज को प्रणाम भी करते हैं। 

(६) क्या आपको पता है मोहन भागवत किस संगठन के कार्यक्रम में गए थे ?

उस संगठन का नाम है मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ‌। स्वर्गीय कुप सी सुदर्शन ने सरसंघचालक रहते हुए इस संगठन की स्थापना कराई। संघ प्रचारक इंद्रेश कुमार इसके कर्ताधर्ता हैं। जब आप इस संगठन की गतिविधियों की जानकारी इकट्ठा करेंगे तो पता चलेगा कि यह संगठन मुसलमानों को राष्ट्रीय विचारधारा से जोड़ने का काम कर रहा है। 

(७) अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण बात आखिर भागवत ने कहा क्या था ?

उनके भाषण की ट्रांसस्क्रिप्ट पढ़ लीजिए। यह है पूरा उद्बोधन

भागवत ने कहा -

ये कोई इमेज मेकओवर का एक्सरसाइज नहीं है, संघ क्या है 90 वर्षों से पता है लोगों को. संघ को इमेज की कभी परवाह रही नहीं है. हमको बाकी कुछ करना नहीं है, सबको जोड़ना है, अच्छा काम करना है. हमारा संकल्प सत्य है, इरादा पक्का है, पवित्र है. किसी के विरोध में नहीं किसी की प्रतिक्रिया में नहीं.


इसलिए ये इमेज बदलने का कोई एक्सरसाइज नहीं है, ये अगले चुनावों के लिए मुसलमानों का वोट पाने का प्रयास भी नहीं है क्योंकि हम उस राजनीति में नहीं पड़ते.


हां हमारे कुछ विचार है, राष्ट्र में क्या होना चाहिए क्या नहीं होना चाहिए उसके बारे में. और अब एक ताकत बनी है तो वो ठीक हो जाए इतनी ताकत हमें जहां लगानी है, चुनावों में भी लगाते है. ये बात जरूर है लेकिन हम किसी के पक्षधर है इसलिए नहीं, हम राष्ट्र हित के पक्षधर है. उसके खिलाफ जाने वाली बात कोई भी करे हम उसका विरोध करेंगे. और उसके पक्ष में जाने वाली बात कोई भी करे हम उसका समर्थन करेंगे.


कुछ काम ऐसे है जो राजनीति बिगाड़ देती है, मनुष्यों को जोड़ने का काम राजनीति से होने वाला नहीं है. राजनीति चाहे तो उसपर असर डाल सकती है, बिगाड़ सकती है उतनी मात्रा में राजनीति की चिंता लोगों को जोड़ने वालों को करनी पड़ती है. वो कोई भी हो हम हों या अगर आप जोड़ने चले है उनको भी चिंता है वो करनी पड़ेगी. परंतु राजनीति इस काम का औजार नहीं बन सकती. इस काम को बिगाड़ने का हथियार बन सकती है.


हिंदू मुसलमान एकता ये शब्द ही बड़ा भ्रामक है, ये दो है ही नहीं तो एकता की बात क्या. इनको जोड़ना क्या ये जुड़े हुए है. और जब ये मानने लगते है की हम जुड़े हुए नहीं है तब दोनो संकट में पड़ जाते है. बात यही हुई है. हम लोग अलग नहीं है क्योंकि हमारे देश में ये परंपरा नहीं है की आप की पूजा अलग है इसलिए आप अलग है.


हम लोग एक है और हमारी एकता का आधार हमारी मातृभूमि है. आज हमारी पूरी जनसंख्या को ये भूमि आराम से पाल सकती है, भविष्य में खतरा है उसको समझ के ठीक करना पड़ेगा.


हम समान पूर्वजों के वंशज है. ये विज्ञान से भी सिद्ध हो चुका है. 40 हजार साल पूर्व से हम भारत के सब लोगों का डीएनए समान है.


हिंदुओ के देश में हिंदुओ की दशा ये हो गई जरूर दोष अपने ही समाज में है, उस दोष को ठीक करना है. ये संघ की विचारधारा है.


तथाकथित अल्पसंख्यकों के मन में यह डर भरा गया है की संघ वाले तुमको खा जायेंगे. दूसरा ये डर लगता है की हिंदू मेजोरिटी देश में आप रहोगे तो आपका इस्लाम चला जायेगा. अन्य किसी देश में ऐसा होता होगा. हमारे यहां ऐसा नहीं है. हमारे यहां जो जो आया है वो आज भी मौजूद है.


मैं बहुत आग बबूला होके भाषण करके हिंदुओ में पापुलर तो हो सकता हूं, लेकिन हिन्दू कभी मेरा साथ नहीं देगा. क्योंकि वो आतातायित्व पर चलने वाला नहीं है. वो जानता है की अपना शत्रु है तो भी उसको जीने का हक है. लड़ाई भी होती है और लड़ाई हारने के बाद शत्रु कहता है माफ करो तो उसको शरण देना है. ये परंपरा है.


अगर हिंदू कहते है की यहां एक भी मुसलमान नहीं रहना चाहिए तो हिंदू हिंदू नही रहेगा. ये हमने संघ में पहले नहीं कहा है, ये डॉक्टर साब के समय से चलती आ रही विचारधारा है. ये विचार मेरा नहीं है, ये संघ की विचारधारा का एक अंग है क्योंकि हिंदुस्तान एक राष्ट्र है. यहां हम सब एक है. इतिहास भी होंगे लेकिन पूर्वज सबके समान है.


लोगों को पता चले इस ढंग से इस्लाम भारत में आया वो आक्रामकों के साथ आया. जो इतिहास दुर्भाग्य से घटा है वो लंबा है, जख्म हुए है उसकी प्रतिक्रिया तीव्र है. सब लोगों को समझदार बनाने में समय लगता है लेकिन जिनको समझ में आता है उनको डटे रहना चाहिए.


देश की एकता पर बाधा लाने वाली बाते होती है तो हिंदू के खिलाफ हिंदू खड़ा होता है. लेकिन हमने ये देखा नहीं है की ऐसी किसी बात पर मुस्लिम समाज का समझदार नेतृत्व ऐसे आताताई कृत्यों का निषेध कर रहा है.


लोगों को कन्वर्ट करने के लिए तैयारी करने का समय मिले इसलिए लोगों को बातों में उलझा कर रखना ये भी एक अर्थ होता है बातचीत का. ऐसा किसी ने किया हो तो पता नहीं.


कट्टरपंथी आते गए और उल्टा चक्का घुमाते गए. ऐसे ही खिलाफत आंदोलन के समय हुआ. उसके कारण पाकिस्तान हुआ. स्वतंत्रता के बाद भी राजनीति के स्तर पर आपको ये बताया जाता है की हम अलग है तुम अलग हो.


समाज से कटुता हटाना है, लेकिन हटाने का मतलब ये नहीं की सच्चाई को छिपाना है. भारत हिंदू राष्ट्र है, गौमाता पूज्य है । लेकिन लिंचिंग करने वाले हिंदुत्व के खिलाफ जा रहे है, वो आतातायी है. कानून के जरिए उनका निपटारा होना चाहिए. क्योंकि ऐसे केसेज बनाए भी जाते है तो बोल नहीं सकते आज कल की कहां सही है कहां गलत है.


आज अगर संघ के नाते हम कोई बात कहते है, अभी ये बात मैं कह रहा हूं, इसकी हिन्दू समाज में तो बहुत बड़ी चर्चा होगी. बहुत बड़ा वर्ग है जो इसका समर्थन करेगा, हमको कहेगा की आपने बहुत अच्छा किया ये पहल की.


ऐसा भी वर्ग है जो खराब नहीं है, अच्छा ही है, अच्छे इंसान है लेकिन वो कहेंगे की बस आप भी भोले बन गए अब. ये जरूर कहेगा. क्योंकि ठोकरें लगी है. वो कहेंगे की अरे ऐसा कभी हुआ था क्या? ऐसा मामला नहीं है ये. आप लोग नहीं समझते. ऐसे भी होंगे. चलेगा.. ये शास्त्रार्थ चलेगा.


लेकिन एक बात है की हिंदू समाज की भावना संघ बोलता है. क्योंकि नीचे तक हमारे स्वयंसेवक है, समाज क्या सोचता है क्या नहीं, हमारे पास आता है, उसके अनुसार मै बता रहा हूं.


हिंदू समाज की हिम्मत बढ़ाने के लिए उसका आत्मविश्वास उसका आत्म सामर्थ्य बढ़ाने का काम संघ कर रहा है. संघ हिंदू संगठनकर्ता है. इसका मतलब बाकी लोगों को पीटने के लिए नहीं है वो.


एक ने पूछा की आप क्या करने जा रहे है? क्या होगा इससे? इससे तो हिंदू समाज दुर्बल होगा. मैने कहा कमाल है.. एक तथाकथित माइनोरिटी समाज है मुसलमान, उसकी पुस्तक का मैं उद्घाटन करने जा रहा हूं उसमे कोई डरता नहीं है और तुम मेजोरिटी समाज के होकर के डरते हो की क्या होगा? ऐसा व्यक्ति एकता नही कर सकता जो डरता है. एकता डर से नहीं होती, प्रेम से होती है, निस्वार्थ भाव से होती है.


हम डेमोक्रेसी है, कोई हिंदू वर्चस्व की बात नहीं कर सकता कोई मुस्लिम वर्चस्व की बात नहीं कर सकता. भारत वर्चस्व की बात सबको करनी चाहिए.


हम कहते है भारत हिंदू राष्ट्र है । इसका मतलब केवल तिलक लगाने वाला, पूजा करने वाला नही है. जो भारत को अपनी मातृभूमि मानता है जो अपने पूर्वजों का विरासतदार है, संस्कृति का विरासतदार है वो हिंदू है । 


हम हिंदू कहते है आपको नहीं कहना है मत कहो, भारतीय कहो, ये नाम का शब्द का झगड़ा छोड़ो. हमको इस देश को विश्व गुरु बनाना है. और ये विश्व की आवश्यकता है, नहीं तो ये दुनिया नहीं बचेगी.

इति।


©️ इस आलेख में व्यक्त विचार मेरे निजी हैं। किसी भी मीडिया माध्यम में पूर्वानुमति के बिना इसके उपयोग की अनुमति नहीं है। 

- मनोज जोशी


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