Friday, January 29, 2021

गाँधीजी की हत्या की एफआईआर में नहीं था नाथूराम का नाम

 हिंदुत्व और महात्मा गाँधीजी का रामराज्य (३३)


(गतांक से आगे)


 ...


- #मनोज_जोशी 


आज ३० जनवरी यानी महात्मा गाँधीजी की पुण्यतिथि पर उन्हें सादर नमन करते हुए मैं अपनी बात शुरू करता हूँ । गाँधीजी की हत्या और उसके बाद जाँच को लेकर तमाम सवाल उठते हैं जिनका आज तक जवाब नहीं मिला। हत्या की जाँच के लिए 1967 में कपूर कमीशन के गठन के पीछे की कहानी भी चकित करने वाली है। लेकिन दो पार्ट में लगभग ७०० पेज की यह रिपोर्ट भी किसी अंतिम नतीजे पर नहीं पहुंची। (आप से अनुरोध है इधर - उधर की सुनी - सुनाई और धारणाओं के आधार पर निकाले गए निष्कर्ष पर चर्चा करने से बेहतर है रिपोर्ट को पढ़ें , अगली किसी कङी में मैं भी मूल रिपोर्ट के अंश भी प्रस्तुत कर सकता हूँ )

लेकिन इस बीच एक बङा सवाल यह है कि गाँधीजी की हत्या की एफआईआर में आरोपी के रूप में नाथूराम गोङसे का नाम क्यों नहीं था। तुगलक रोड पुलिस थाने में फारसी शब्दों के साथ उर्दू में दर्ज इस एफआईआर में चश्मदीद शिकायतकर्ता के रुप में कनाट प्लेस के निवासी नंदलाल मेहता के बयान में अपराधी का उल्लेख है पर नाम नाथूराम की बजाय नारायण विनायक गोडसे निवासी पुणे दर्ज किया गया।

उर्दू की इस एफआईआर का अधिकृत अंग्रेजी अनुवाद पढ़ लीजिए । (इस पोस्ट में नीचे उपलब्ध है)। बाद में नाथूराम का कैसे जुड़ा ? गाँधीजी को कितनी गोलियों लगीं ? पिस्तौल में कितनी गोलियां थीं ? क्या जो पिस्तौल जब्त हुई गोलियों उसी पिस्तौल से निकली थी ? गाँधीजी को तुरन्त अस्पताल क्यों नहीं ले जाया गया ? उनका पोस्टमार्टम क्यों नहीं हुआ ? और यह भी कि उनकी जान को खतरा है यह जानते हुए भी सुरक्षा इंतजाम क्यों नहीं किए गए ? ऐसे तमाम सवालों के जवाब अब मिलना भी मुश्किल है।

 मेरी मान्यता है कि सामान्य व्यक्ति की हत्या भी पाप है फिर गाँधीजी तो महात्मा थे। मेरे जैसे करोड़ों लोग उनके जीवन से प्रेरणा लेते हैं , ऐसे महापुरुष की सुरक्षा में लापरवाही और उसके बाद जाँच में लापरवाही कहीं किसी षड्यंत्र का हिस्सा तो नहीं ।


  


English translation of original

F.I.R. of Mahatma Gandhi Assassination case - 1948


First Information of a Cognizable Crime Reported under Section 154, C.P.C.


Police Station : Tughlak RoadDistrict : CentralNo. : 68Date and hour of occurence : 30.1.1948 / 5:45 P.M.


   


1Date and hour when reported 2Name and residence of informant /complainantShri Nand Lal Mehta, son of Shri Natha Lal Mehta, Indian, Building Lala Suraj Prasad M Block, Connaught Circus3Brief description of offence (with section) and of property carried off, if any302 I.P.C.4Place of occurence and distance/ direction from Police StationBirla House, distance 2 furlongs5Name and address of the criminal 6Steps taken regarding investigation/ explanation of delay in recording information 


Statement of Shri Nand Lal Mehta, son of Shri Natha Lal Mehta, Indian, resident of Connaught Circus Building Lala Sarju Prasad


Today I was present at Birla House.  Around ten minutes past five in the evening, Mahatma Gandhi left his room in Birla House for the Prayer Ground. Sister Abha Gandhi and sister Sanno Gandhi were accompanying him.  Mahatma was walking with his hands on the shoulders of the two sisters. Two more girls were there in the group. I alongwith  Lala Brij Kishan, a silver merchant, resident of No. 1, Narendra Place, Parliament Street and Sardar Gurbachan Singh, resident of Timar Pur, Delhi were also there.  Apart from us, women from the Birla household and two-three members of the staff were also present. Having crossed the garden, Mahatma climbed the concrete steps towards the prayer place.  People were standing on both the sides and approximately three feet of vacant space was left for the Mahatma to pass through.  As per the custom the Mahatma greeted the people with folded hands.  He had barely covered six or seven steps when a person whose name I learnt later as Narayan Vinayak Godse, resident of Poona, stepped closer and fired three shots from a pistol at the Mahatma from barely 2 / 3 feet distance which hit the Mahatma in his stomach and chest and blood started flowing.  Mahatma ji fell backwards, uttering "Raam - Raam".   The assailant was apprehended on the spot with the weapon.  The Mahatma was carried away in an unconscious state towards the residential unit of the Birla House where he passed away instantly and the police took away the assailant.


 


Sd/-

N.L. Mehta/30.1.1948.


 


Having received the information I rushed to the Birla House to find the dead body of the Mahatma at room No. 3.  Met Shri Nand Lal Mehta, his statement recorded and got confirmed after reading it out to him.   Copy of the statement handed over to him.  Came to know that the assailant was whisked away by the Assistant Sub-Inspector.  It was a case of Section 302 Indian Penal Code.  All the case papers were sent to the Police Station Tughlak Road and I got engaged in conducting  investigations.  A special report may be forwarded through the police station.


Sd. in English/30 January


(यह श्रृंखला मेरे blog www.mankaoj.blogspot.com और एक news website www.newspuran.com पर भी उपलब्ध है)

Wednesday, January 20, 2021

हिंदुत्व और महात्मा गाँधीजी का रामराज्य (३२)

(गतांक से आगे)

और ऐसे माहौल में गाँधीजी भारत लौटे

पहले  मुस्लिम लीग और उसके बाद हिंदू महासभा के गठन के माहौल के बीच १९१५ की शुरुआत में गाँधीजी भारत लौटे। अपने राजनीतिक गुरु गोपालकृष्ण गोखले की सलाह पर उन्होंने पूरे भारत का दौरा किया। गोखले ने हिंदू समाज में व्याप्त जातिवाद के खिलाफ काफी काम किया था। यदि विचार करें तो समझ में आता है राजनीतिक - सामाजिक क्षेत्र में गाँधीजी ने उन्हीं के काम को आगे बढ़ाया।

१९१६ में लखनऊ में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में गाँधीजी शामिल हुए । यह सम्मेलन कई अर्थों में महत्वपूर्ण था। अंबिकाचरण मजूमदार ने इस सम्मेलन की अध्यक्षता की। हालाँकि अब कांग्रेस में कोई उन्हें याद नहीं करता । इस अधिवेशन में  तीन महत्वपूर्ण बातें हुईं । 


(१) १९०७ में सूरत अधिवेशन में नरम दल और गरम दल में विभाजित कांग्रेस में १९१६ के लखनऊ अधिवेशन में फिर  एकता हो गई। नरम दल  के नेता रहे गोपालकृष्ण गोखले और फिरोज शाह मेहता की १९१५ में मृत्यु के बाद बाल गंगाधर तिलक और एनी बेसेंट ने गरम और नरम दल को दोबारा एक मंच पर लाने का काम किया।


(२)  चम्पारण के किसान यहाँ गाँधीजी से मिले। किसानों के अनुरोध पर वे चम्पारण गए। चम्पारण के सत्याग्रह की एक लंबी कहानी है। इस सत्याग्रह ने गाँधीजी को देश भर में लोकप्रिय कर दिया।इसी दौरान गांधी जी ने देश में  गरीबी को निकटता से देखा। उन्होंने देखा कि भारत में बङी आबादी ऐसी है जिनके पास पहनने के लिए वस्त्र तक नहीं हैं । इसी के बाद उन्होंने बैरिस्टर की पोशाक त्यागकर गरीबों की तरह  एक धोती पहनने का संकल्प लिया। यह बदलाव उन्हें बैरिस्टर गाँधी से महात्मा गाँधी बनने की ओर ले गया।


(३) इसी अधिवेशन में कांग्रेस ने मुस्लिम लीग द्वारा की जा रही सांप्रदायिकता प्रतिनिधित्व की मांग को भी मान लिया और दोनों के बीच समझौता हो गया। 

हम श्रृंखला के विषय के अनुरूप लखनऊ समझौते की बात को आगे बढ़ाते हैं । इस समझौते में भारत सरकार के ढांचे और हिन्दू तथा मुसलमान समुदायों के बीच संबंधों के बारे में प्रावधान था। मुहम्मद अली जिन्ना, ऐनीबिसेंट और बाल गंगाधर तिलक इस समझौते के प्रमुख शिल्पकार  थे। (आगे की कहानी के लिए यह तीनों  नाम याद रखिएगा)


मुस्लिम लीग के अध्यक्ष की हैसियत से जिन्ना ने संवैधानिक सुधारों की 'संयुक्त कांग्रेस लीग योजना' पेश की। इस योजना के अंतर्गत कांग्रेस लीग समझौते से मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों तथा जिन प्रान्तों में वे अल्पसंख्यक थे, वहाँ पर उन्हें अनुपात से अधिक प्रतिनिधित्व देने की व्यवस्था की गई। 

इस समझौते में गाँधीजी की कोई महत्वपूर्ण प्रत्यक्ष भूमिका नहीं थी लेकिन  यह प्रस्ताव उनके राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले के 'राजनीतिक विधान' को आगे बढ़ाने वाले थे। इनमें प्रावधान था कि प्रांतीय एवं केंद्रीय विधायिकाओं का तीन-चौथाई हिस्सा व्यापक मताधिकार के ज़रिये चुना जाए और केंद्रीय कार्यकारी परिषद के सदस्यों सहित कार्यकारी परिषदों के आधे सदस्य, परिषदों द्वारा ही चुने गए भारतीय हों। केंद्रीय कार्यकारी के प्रावधान को छोड़कर ये प्रस्ताव आमतौर पर 1919 के भारत सरकार अधिनियम में शामिल थे।

(क्रमशः)

Sunday, January 10, 2021

हिंदुत्व और महात्मा गाँधीजी का रामराज्य (३१)

(गतांक से आगे)

मुस्लिम लीग की प्रतिक्रिया में हुआ हिंदू महासभा का उदय

मुस्लिम लीगने अपने गठन के साथ ही अंग्रेजों के एजेंडे पर चलना शुरू कर दिया।1908 में मुस्लिम लीग के अमृतसर अधिवेशन में सर सैय्यद अली इमाम की अध्यक्षता में मुस्लिमों के लिए पृथक निर्वाचन मंडल की मांग की गयी जिसे 1909 के मॉर्ले-मिन्टो सुधारों द्वारा मान लिया  गया। मुसलमानों को अनेक विशेष अधिकार दिए गए। इससे देश में सांप्रदायिक माहौल बिगड़ गया। सच्चाई यह है कि यह पृथक निर्वाचन ही देश के विभाजन का आधार बना।  डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने कहा था कि “पाकिस्तान के सच्चे जनक जिन्ना या रहीमतुल्ला नहीं थे वरन् लॉर्ड मिन्टो थे.” मैं पूर्व में कही अपनी बात दोहराउंगा वही लॉर्ड मिन्टो जिनके नाम पर भोपाल में भवन है, जहाँ पाँच दशक तक विधानसभा लगी। यानी संविधान की कसम खाकर कानून बनाए गए। आज भी यह भवन विधानसभा की संपत्ति है। दरअसल इससे पता लगता है कि हम इतिहास पढ़ते नहीं और पढ़ते हैं तो उससे सीखने को तैयार नहीं ।

राजनीतिक पटल पर मुस्लिम लीग के आगमन की प्रतिक्रिया में १९०८ में ही बंगाल में हिंदू महासभा का गठन हुआ , हालाँकि तब उसका स्वरूप अखिल भारतीय  नहीं था। १९१५ में महामना पं मदन मोहन मालवीय ने हिंदू महासभा को अखिल भारतीय स्वरूप प्रदान किया। १९१५ ही हिंदू महासभा का स्थापना वर्ष माना जाता है। 

आपने मुस्लिम लीग के उद्देश्य पिछली कङी में जाने अब जरा हिंदू महासभा के उद्देश्यों पर नजर डालिए।


अखंड हिन्दुस्तान की स्थापना।

भारत की संस्कृति तथा परंपरा के आधार पर भारत में विशुद्ध हिन्दू लोक राज का निर्माण।


विभिन्न जातियों तथा उपजातियो को एक अविछिन्न समाज में संगठित करना।


एक सामाजिक व्यवस्था का निर्माण, जिसमे राष्ट्र के सब घटकों के सामान कर्तव्य तथा अधिकार होंगे।


राष्ट्र के घटकों का मनुष्य के गुणों के आधार पर विश्वास दिला कर विचार-प्रचार और पूजा को पूर्ण राष्ट्र धर्मं के अनुकूल स्वतंत्रता का प्रबंध।


सादा जीवन और उच्च विचार तथा भारतीय नारीत्व के उदात्त प्राचीन आदर्शों की उन्नति करना। स्त्रियों और बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था करना।


हिन्दुस्तान को सैनिक, राजनितिक, भौतिक तथा आर्थिक रूप से शक्तिशाली बनाना।


सभी प्रकार की सामाजिक असमानता को दूर करना।


धन के वितरण में प्रचलित अस्वाभाविक असमानता को दूर करना।


देश का जल्द से जल्द औद्योगीकरण करना।


भारत के जिन लोगों ने हिंदू पंथ छोड़ दिया है, उनका तथा अन्य लोगों का हिंदू समाज में स्वागत करना।


गाय की रक्षा करना तथा गौ-वध को पूर्णत: बंद करना।


हिंदी को राष्ट्र की भाषा तथा देवनागरी को राष्ट्र लिपि बनाना।


अन्तराष्ट्रीय शांति तथा उन्नति के लिए हिन्दुस्तान के हितों को प्राथमिकता देकर अन्य देशों से मैत्री सम्बन्ध बढ़ाना।


भारत को सामाजिक, आर्थिक एवं वैज्ञानिक दृष्टि से विश्व शांति के रूप में प्रतिस्थापित करना।

विचार कीजिए , इससे किसी को क्या परेशानी होना चाहिए ।


(क्रमशः )








 

Saturday, January 2, 2021

हिंदुत्व और महात्मा गाँधीजी का रामराज्य (३०)

(गतांक से आगे)

जिन्ना, इकबाल और शेख अब्दुल्ला तीनों के पूर्वज हिंदु

#मनोज_जोशी 


मुस्लिम लीग के गठन पर पिछली कङी में चर्चा में मैंने जिक्र किया कि पाकिस्तान के जनक मुहम्मद अली जिन्ना का जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ था। इस पर कई मित्रों ने आश्चर्य जताया। मैंने कहा अकेले जिन्ना ही नहीं ऐसे अनेक उदाहरण हैं । एक लाइन में मैंने लिखा था १९ वीं शताब्दी से लेकर २० वीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक के सामाजिक माहौल को समझना होगा। भारत में मुगलों के आने के बाद शुरू  हुए conversion का असर समझने के लिए केवल तीन जिन्ना,इकबाल और शेख अब्दुल्ला के उदाहरण पर चर्चा करते हैं ।


मोहम्मद अली जिन्ना की कहानी का यह हिस्सा पढ़ कर आप समझ सकते हैं कि हिंदु जातिवाद ने देश का कितना बङा नुकसान कराया है।जिन्ना के पिता मुस्लिम नहीं  थे बल्कि उन्होंने नाराजगी में मुस्लिम धर्म ग्रहण किया। `पाकिस्तान एंड इस्लामिक आइडेंटिटी` में इस बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। जिन्ना का परिवार  गुजरात के काठियावाड़ का रहने वाला था। महात्मा गाँधीजी  भी इसी क्षेत्र के थे।  जिन्ना के  दादा का नाम प्रेमजीभाई मेघजी ठक्कर था. वो हिंदु थे. वो काठियावाड़ के गांव पनेली के रहने वाले थे. प्रेमजी भाई ने मछली के कारोबार से बहुत पैसा कमाया. वो ऐसे व्यापारी थे, जिनका कारोबार विदेशों में भी था. लेकिन उनके लोहना जाति से ताल्लुक रखने वालों को उनका ये व्यवसाय  नापसंद था. लोहना कट्टर तौर शाकाहारी थे और धार्मिक तौर पर मांसाहार से सख्त परहेज करते थे । लोहाना मूल तौर पर वैश्य होते हैं, जो गुजरात, सिंध और कच्छ में होते हैं. कुछ लोहाना राजपूत जाति से भी ताल्लुक रखते हैं।

 जब प्रेमजी भाई ने मछली का कारोबार शुरू किया और वो इससे पैसा कमाने लगे तो उनके ही जाति से इसका विरोध होना शुरू हो गया. उनसे कहा गया कि अगर उन्होंने यह बिजनेस बंद नहीं किया तो उन्हें जाति से बहिष्कृत कर दिया जाएगा. प्रेमजी ने बिजनेस जारी रखने के साथ जाति समुदाय में लौटने का प्रयास किया लेकिन बात नहीं बनी. उनका बहिष्कार जारी रहा।

इस बहिष्कार के बाद भी प्रेमजी तो लगातार हिंदु बने रहे लेकिन उनके बेटे पुंजालाल ठक्कर को पिता और परिवार का बहिष्कार इतना अपमानजनक लगा कि उन्होंने गुस्से में पत्नी के साथ तब तक हो चुके अपने चारों बेटों का धर्म ही बदल डाला. वो मुस्लिम बन गए. हालांकि प्रेमजी के बाकी बेटे ( यानी जिन्ना के काका )  हिंदु ही रहे. इसके बाद जिन्ना के पिता पुंजालालअपने भाइयों और रिश्तेदारों तक से अलग हो गए. वो काठियावाड़ से कराची चले गए. वहां उनका बिजनेस और फला-फूला. वो इतने समृद्ध व्यापारी बन गए कि उनकी कंपनी का ऑफिस लंदन तक में खुल गया. कहा जाता है कि जिन्ना के बहुत से रिश्तेदार अब भी हिंदु हैं और गुजरात में रहते हैं.


इसके बाद जिन्ना के परिवार के सभी लोग न केवल मुस्लिम हो गए बल्कि इसी धर्म में अपनी पहचान बनाई. हालांकि पिता-मां ने अपने बच्चों की परवरिश खुले धार्मिक माहौल में की. जिसमें हिंदु और मुस्लिम दोनों का प्रभाव था. इसलिए जिन्ना शुरुआत में धार्मिक तौर पर काफी  उदारवादी थे. वो लंबे समय तक लंदन में रहे.मुस्लिम लीग में आने से पहले उनके जीने का अंदाज मुस्लिम धर्म से एकदम अलग था. शुरुआती दौर में वो खुद की पहचान मुस्लिम बताए जाने से भी परहेज करते थे। बाद में वो धार्मिक आधार पर ही पाकिस्तान के ऐसे पैरोकार बने कि देश के दो टुकड़े ही करा डाले।


अल्लामा इकबाल के दादा ने  मृत्यु दण्ड से बचने कबूल किया था इस्लाम 


अल्लामा इकबाल के पुरखे बीरबल सप्रू कश्मीर में शोपियां-कुलगाम रोड के पास के एक गांव सपरैन के रहने वाले थे ।बाद में उनका परिवार श्रीनगर आ गया। बीरबल सप्रू के पांच बेटे और एक बेटी थी। उनके तीसरे बेटे कन्हैया लाल अल्लामा इकबाल के दादा थे। कन्हैया लाल की पत्नी का नाम  इंद्राणी था। कन्हैया लाल के बेटे थे रतन लाल  रतन लाल ने बाद इस्लाम कबूला था। प्रश्न है रतनलाल नूर मोहम्मद क्यों हो गए ? जवाब देते हैं इकबाल की शायरियों के अंग्रेजी अनुवादक सैयदा हमीद। हमीद के अनुसार रतनलाल कश्मीर में अफगान गवर्नर के रेवेन्यू कलेक्टर के रूप में काम कर रहे थे ।शजहां उनसे राजस्व वसूली में गङबङी हो गई। इस पर  गवर्नर ने रतन लाल को दो विकल्प दिए या तो इस्लाम कबूल करो या सिर कलम करवाने के लिए तैयार रहो। रतन लाल ने इस्लाम कबूल कर लिया ।बाद में कश्मीर में सिखों का राज कायम हो गया और रतन लाल सियालकोट जा बसे. वहां उन्होंने पंजाबी मुस्लिम महिला इमाम बीबी से शादी की. इकबाल का जन्म  9 नवंबर 1877 को सियालकोट में हुआ उनकी परवरिश मुस्लिम माहौल में हुई। यहाँ तक कि प्रारंभिक शिक्षा  भी मदरसे में हुई थी।

सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्तां हमारा लिखने वाले इस शायर ने भी पाकिस्तान जाना ही उचित समझा।


शेख अब्दुल्ला ने अपनी जीवनी में माना वे कश्मीरी ब्राह्मण के वंशज


मुस्लिम कांफ्रेंस (जो अब नेशनल कांफ्रेंस कहलाती है ) के संस्थापक और कश्मीर का सबसे प्रभावशाली परिवार शेख अब्दुल्ला केपरिवार की जङें भी हिंदू समाज हैं। स्वयं शेख अब्दुल्ला ने अपनी जीवनी ‘आतिश-ए- चीनार’ में लिखा है कि कश्मीरी मुसलमानों के पूर्वज हिंदू थे, और उनके पूर्वज कश्मीरी पंडित थे। उन्होंने लिखा  है कि उनके परदादा का नाम बालमुकुंद कौल था. उनके पूर्वज मूल रूप से सप्रू गोत्र के कश्मीरी ब्राह्मण थे. अफग़ानों के शासनकाल में उनके एक पूर्वज रघुराम ने एक सूफी के हाथों इस्लाम कबूल किया था. उनका परिवार पश्मीने का व्यापार करता था. और अपने छोटे से निजी कारख़ाने में शॉल और दुशाले तैयार कराके बाज़ार में बेचता था।


कश्मीर की समस्या की एक बङी वजह  आखिर अब्दुल्ला परिवार ही था।


(क्रमशः )



Friday, January 1, 2021

हिंदुत्व और महात्मा गाँधीजी का रामराज्य (२९)

(गतांक से आगे)

मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा की स्थापना को समझिए

#मनोज_जोशी

श्रृंखला की पिछली दो कङियों में वीर सावरकर और स्वामी श्रृद्धानंद का जिक्र आने के साथ ही यह श्रृंखला इतिहास केएक ऐसे मोङ पर है जिसके बारे में कहा जाता है कि गाँधीजी और उस समय के हिंदू नेताओं के बीच गहरे मतभेद ही नहीं बल्कि मनभेद थे। और आरोप तो गाँधीजी की हत्या के षड्यंत्र तक का लगता है। लेकिन इन सब विषयों पर चर्चा से पहले उस दौर के राजनीतिक - सामाजिक माहौल को समझना बहुत जरुरी है। पहले हम समझेंगे कि
आखिर मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा की स्थापना कैसे हुई? वही मुस्लिम लीग जिसकी माँग पर पाकिस्तान बना और वही, हिंदू महासभा जिसका नाथूराम गोडसे पदाधिकारी था और हिंदू महासभा इसे आज भी स्वीकार करती है।

२१वीं शताब्दी के तीसरे दशक की शुरुआत में बैठ कर हमें १९ वीं शताब्दी और २० वीं शताब्दी के पूर्वार्ध के भारत की सांप्रदायिक स्थिति को समझना होगा। कई लोगों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि पाकिस्तान का जनक स्वयं मोहम्मद अली जिन्ना का जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ था, लेकिन बाद में उनके पिता ने हिंदू जातिवाद से नाराज होकर मुस्लिम धर्म ग्रहण कर लिया और जिन्ना मुस्लिम हो गए। (इस कहानी को मैं पूर्व में फेसबुक पर लिख चुका हूं) लेकिन यहां यह उदाहरण देकर मैं यह कहना चाहता हूं कि उस समय इस तरह से conversion सामान्य बात थी। गाँधीजी के बेटे के conversion और फिर आर्य समाज में शामिल होने की कहानी भी इस सीरिज में आ चुकी है। तो एक तरफ हिंदू समाज जातियों में बंटा हुआ था और दूसरी तरफ conversion हो रहा था। इसके साथ ही छोटी-छोटी बातों पर दोनों समुदायों में संघर्ष के हालात बनते रहते थे।
अब अंग्रेजों ने इसका फायदा उठाया और उन्होंने मुस्लिम लीग का गठन कराया। 

समझिए मुस्लिम लीग का गठन कैसे हुआ? यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि लॉर्ड मिंटो ने मुस्लिम लीग के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वही मिंटो जिनके नाम पर भोपाल में मिंटो हॉल है और इसी भवन में पांच दशकों तक विधानसभा का संचालन हुआ है, यानी जिस भवन में बैठ कर संविधान की कसम खाकर कानून बनते थे वह भवन एक ऐसे व्यक्ति के नाम पर है जिसने उस राजनीतिक दल का गठन कराया जो देश विभाजन की वजह बना।
दरअसल हिंदुओं के बीच सरकार विरोधी रुख को देखकर ब्रिटिश अधिकारियों ने मुसलमानों को संरक्षण देने की नीति अपनाई।19 जुलाई 1905 को भारत के तत्कालीन वाइसराय कर्जन ने बंगाल विभाजन की घोषणा की।

 बंग भंग के विरोध में व्यापक आंदोलन चला लेकिन पूर्वी और पश्चिमी बंगाल के इस विभाजन 

ने मुस्लिम साम्प्रदायिकता को प्रत्यक्ष रूप से प्रोत्साहन दिया।लॉर्ड कर्जन ने कई बार पूर्वी बंगाल का दौरा कर यह स्पष्ट कर दिया था कि वे मुस्लिम बहुल क्षेत्र के रूप में पूर्वी बंगाल का निर्माण कर रहे हैं । उनका तर्क था कि वहाँ मुसलमानों को विकास का पर्याप्त अवसर मिलेगा।
लॉर्ड कर्जन के बाद लॉर्ड मिन्टो भारत का वायसराय बना। लॉर्ड मिंटो ने ब्रिटेन में भारत मंत्री लॉर्ड मार्ले के कथित संवैधानिक सुधारों को लागू करने और राष्ट्रवाद की धारा को कमजोर करने के लिए अभिजात्य वर्ग के मुस्लिम व्यक्तियों से संपर्क किया। लॉर्ड मिन्टो ने कहा था कि –

“मुस्लिम सम्प्रदाय को इस बात से पूर्णतः निश्चित रहना चाहिए कि मेरे द्वारा प्रशासनिक पुनर्संगठन का जो कार्य होगा उसमें उनके अधिकार और हित सुरक्षित रहेंगे.”

इसके बाद अंग्रेज़ों के सहयोग और संरक्षण में ढाका (अब बांग्लादेश) में मुसलमानों का एक सम्मेलन ३०दिसम्बर, १९०६ को बुलाया गया. सम्मलेन का अध्यक्ष नवाब बकार-उल-मुल्क को बनाया गया. अखिल भारतीय स्तर पर एक मुस्लिम संगठन की नीव इसी सभा में रखी गई। सम्मेलन में ढाका के नवाब सलीम उल्ला खां ने “मुस्लिम ऑल इंडिया कान्फ्रेड्रेसी  के निर्माण का सुझाव दिया। लेकिन उनके प्रस्ताव को बहुमत से अस्वीकृत कर संगठन का नाम “ऑल इंडिया मुस्लिम लीग” रखा गया।
अगले साल १९०७ में कराची में हुए मु्स्लिम लीग के दूसरे सम्मेलन में इसका संविधान बनाया गया। इस संविधान में मुस्लिम लीग के जो उद्देश्य तय किए गए जरा उन पर गौर फरमाइए


ब्रिटिश सरकार के प्रति भारतीय मुसलमानों में निष्ठा की भावना पैदा करना और किसी योजना के सम्बन्ध में मुसलमानों के प्रति होने वाली सरकारी कुधाराणाओं को दूर करना

भारतीय मुसलमानों के राजनीतिक और अन्य अधिकारों की रक्षा करना और उनकी आवश्यकताएँ और उच्च आकांक्षाएँ सयंत भाषा में सरकार के सामने रखना

जहाँ तक हो सके, उपर्युक्त उद्देश्यों को यथासंभव बिना हानि पहुँचाये, मुसलमानों और भारत के अन्य सम्प्रदायों में मित्रतापूर्ण भावना उत्पन्न करना

(अगली कङी में हिंदू महासभा के गठन पर चर्चा करेंगे , इसके बाद पूर्व में  २७ वीं कङी में हुई   वीर सावरकर और गाँधीजी के संबंधों पर चर्चा को कुछ और आगे बढ़ाएंगे)

(क्रमशः)