Monday, April 26, 2021

समाज परिवर्तन से ही व्यवस्था परिवर्तन संभव

 समाज परिवर्तन से ही व्यवस्था परिवर्तन संभव 

मनोज जोशी 

कोरोना की इस महामारी और खासतौर से दूसरी लहर ने हमारे तंत्र यानी सिस्टम की खामियों को एक बार फिर सामने लाकर रख दिया है। सिस्टम की इन खामियों को लेकर सोशल मीडिया पर एक अजीबोगरीब युद्ध छिड़ा हुआ है। ‌ मैं भी सिस्टम की खामियों से दुखी हूं और पिछली कम से कम 4 पोस्ट में मेरा यह गुस्सा और दुख जाहिर कर चुका हूं। 

लेकिन इसके आगे एक और पहलू है जिसकी चर्चा होनी चाहिए। लोग पूछ रहे हैं कि सरकार ने यानी सिस्टम ने कोरोना की इस दूसरी लहर की तैयारी क्यों नहीं करी ? यदि बहुत गहराई से सोचें तो आग लगने पर कुआं खोदना यह हमारे सिस्टम का चरित्र बना हुआ है और हमने इसे ऐसा ही स्वीकार भी कर रखा है। जब कोई समस्या या मुद्दा सामने खड़े होता है तभी हम उसका निदान खोजते हैं। पहले से तैयारी यह हमारे सिस्टम का चरित्र ही नहीं है। आज महामारी का समय है इसलिए स्वास्थ्य को लेकर बात हो रही है, लेकिन क्या स्वास्थ्य के अलावा अन्य क्षेत्रों में सिस्टम ठीक काम कर रहा है ? कल्पना कीजिए कि हमारा सिस्टम आज से 5 साल बाद आने वाली किसी समस्या के निराकरण के लिए आज से प्रयास शुरु करता है तो क्या उसकी आलोचना नहीं होगी ? हम ही लोग कहेंगे जब होगा तब देखेंगे अभी तो आज की स्थिति से निपटा जाए।

यह बिल्कुल सही है कि नेताओं ने अपनी रैलियों और सभाओं या पार्टियों की बैठकों में कोरोना प्रोटोकॉल का ध्यान नहीं रखा। लेकिन यह भी सही है कि समाज का बड़ा वर्ग भी उसे भूल सा गया था। दुकानों के आगे बनने वाले गोले और काउंटर के सामने बंधने वाली रस्सी तो गायब हो ही गई थी। हम लोग भी मास्क के बिना सर्वजनिक स्थानों पर घूम रहे थे। जैसे हम वैसे हमारे नेता और वैसा ही हमारा सिस्टम। हमारी और सिस्टम की दोनों की खामियों को मिलाकर समस्या ने विकराल रूप ले लिया और कई ऐसे लोग शिकार हो गए जो बेचारे 100% से भी अधिक सतर्कता बरतते थे। 

जब हम देश के और प्रदेश के चुनाव परिणामों पर नजर डालेंगे तो पता लगेगा कि हमने कई बार व्यवस्था में यानी सिस्टम में परिवर्तन के लिए सत्ता परिवर्तन किया। 1977 में जनता पार्टी की सरकार आई लोगों को उम्मीद थी की व्यवस्था बदलेगी सिस्टम बदलेगा। जब सिस्टम नहीं बदला तो 1980 में जनता ने जनता पार्टी को बाहर का रास्ता दिखा दिया। मप्र में 1977 के बाद 1990 के सत्ता परिवर्तन में भी अपेक्षित व्यवस्था परिवर्तन नहीं दिखा। 2003 आते-आते जब लोग पूरी तरह निराश हो गए और उन्हें उमा भारती के रूप में नया नेतृत्व नजर आया तो फिर सत्ता परिवर्तन हुआ। भाजपा को व्यवस्था परिवर्तन के लिए प्रदेश के लोगों ने तीन अवसर दिए। इस बीच केंद्र की यूपीए सरकार के दो कार्यकालों से आई निराशा के कारण केंद्र में भी मोदी सरकार बन गई। लेकिन इतने सबके बावजूद क्या व्यवस्था यानी सिस्टम में बदलाव हुआ है? इस प्रश्न पर जब गंभीरता से विचार करेंगे तो जवाब मिलेगा कि इन वर्षों में कुछ चीजें बदली है, लेकिन वह उतनी ही है जितना समाज में बदलाव आया है। मेरी बहुत स्पष्ट मान्यता है कि चाहे अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की बात हो या धारा 370 को निष्प्रभावी करने का मुद्दा हो या ऐसा और कोई विषय हो सब पर सरकार या सिस्टम तभी निर्णायक स्थिति में आया है जब समाज में उसको लेकर स्पष्ट मत बन चुका था।

 समस्या के दौरान ही हमारे समाज की ताकत सामने आती है। लाल बहादुर शास्त्री जी के आह्वान पर सोमवार का उपवास इसका एक बड़ा उदाहरण है। वर्तमान समय में पिछले साल लॉक डाउन के दौरान जहां लोग बड़े पैमाने पर भोजन, राशन आदि की व्यवस्था कर रहे थे, वही अब समाज का बड़ा वर्ग इंजेक्शन, ऑक्सीजन, दवाई और अस्पताल के इंतजाम में लगा हुआ है। लोगों ने छोटे-छोटे व्हाट्सएप ग्रुप और फेसबुक ग्रुप बना लिए हैं। किसी को भी कहीं से भी किसी भी तरह की मदद की जरूरत होती है तो वह सूचना एक साथ कई जगह घूमती है और कई लोग मदद के लिए आगे आ जाते हैं। गौर से देखेंगे तो हमारे आसपास ऐसे कई लोग मिल जाएंगे जो अपना नियमित कामकाज छोड़कर इस समय सेवा में लगे हुए हैं, इनमें से कुछ तो ऐसे हैं जो बार-बार अस्पताल का चक्कर लगाने के कारण संक्रमित हो गए। 

बस समाज की इसी ताकत को बचाए रखने और बढ़ाने की जरूरत है। अक्सर कहा जाता है कि सरकार अकेले कुछ नहीं कर सकती। उसे समाज का सहयोग चाहिए होता है। मैं इसके आगे कहता हूं, और यह पहली बार नहीं कह रहा हूं पहले भी कह चुका हूं कि सरकार को सब कुछ करने की जरूरत भी नहीं है। 

केवल सत्ता परिवर्तन से व्यवस्था परिवर्तन हो रहा होता तो अब तक हमारी व्यवस्था हमारा सिस्टम ठीक हो चुका होता। लेकिन 137 करोड़ आबादी वाले इस प्राचीन देश में यह संभव नहीं है। यहां तो समाज परिवर्तन से ही व्यवस्था परिवर्तन संभव है। इस समाज परिवर्तन के यज्ञ में आहुति देने के लिए तैयार रहें।

#मनोज_जोशी 

(हनुमान जयंती, 5123,युगाब्द तदानुसार 27 अप्रैल 2021)


©️ इस पोस्ट में व्यक्त विचार व्यक्तिगत है। किसी भी पत्र-पत्रिका न्यूज़ वेबसाइट न्यूज़ चैनल यूट्यूब चैनल आदि पर इनके उपयोग की अनुमति नहीं है। आप अपने सोशल मीडिया नेटवर्क पर मेरे नाम के साथ इसे शेयर कर सकते हैं। यह पोस्ट मेरे ब्लॉग www.mankaoj.blogspot.com पर भी उपलब्ध है।



Tuesday, April 20, 2021

आरोग्य के लिए रामचरितमानस का अध्ययन करें

 

आरोग्य के लिए रामचरितमानस का अध्ययन करें

- #मनोज_जोशी 


आज रामनवमी है। रामनवमी यानी मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का जन्म दिन ! लगातार दूसरे साल यह पर्व ऐसे समय आया है जब न केवल भारत बल्कि पूरा विश्व एक महामारी से लड़ रहा है। रामनवमी की शुभकामनाएं देते हुए मैं आपसे कहना चाहता हूं कि आरोग्य के लिए रामचरितमानस का अध्ययन कीजिए ‌‌। आप सोच रहे होंगे भला रामचरितमानस का आरोग्य से क्या रिश्ता ?

मैं एक दिन एक कथावाचक के प्रवचन सुन रहा था, उन्होंने कहा जिस घर में रामचरितमानस होती है वहां आरोग्य होता है। कथावाचक ने घर के सभी सदस्यों को मानस का अध्ययन करने की सलाह दी। मैं भी यही सोच रहा था कि मानस का आरोग्य से क्या रिश्ता?

कथावाचक ने भी बहुत विस्तार में बताने की बजाए केवल राम की भक्ति की बात करी। लेकिन उनके इस कथन के बाद मैंने मानस को जब आरोग्य की दृष्टि से देखा तो समझ आया कि रामचरितमानस में कम से कम 40 ऐसी वन औषधियों का जिक्र है जो अलग-अलग रोगों में उपयोग में आ सकती हैं। श्री राम के युग में भारत में एक विशिष्ट चिकित्सा पद्धति विकसित थी। 

जरा यह उदाहरण देखिए - 

सती अहिल्या को श्रीराम पाषाण (वास्तव में कई वर्षों से कोमा) अवस्था से चरण धूलि से स्वस्थ अवस्था में लाते हैं।

“ जे पद परसि तरी रिषिनारी।

दंडक कानन पावनकारी।। ”

भक्ति भाव में हम इसे श्रीराम का चमत्कार मान लेते हैं, लेकिन वास्तव में यह किसी चमत्कार का परिणाम नहीं था। इस भक्ति में हम यह भूल जाते हैं कि श्री राम जब विश्वामित्र जी श्रीराम विद्या ग्रहण कर रहे थे तो उन्होंने श्रीराम को ऐसी औषधियों की शिक्षा दी थी जो बिना भोजन तथा जल के शरीर को स्वस्थ रख सकती है।

“ तब रिषि निज नाथहि जियँ चीन्ही।

विद्यानिधि कहुँ विद्या दीन्ही।।

जाते लाग ना छुधा पिपासा।

अतुलित बल तनु तेज प्रकासा।। ”


लंका में युद्ध के दौरान लक्ष्मण जी का मूर्छित हो जाना और संजीवनी बूटी से उनके इलाज का पूरा प्रसंग तो सभी जानते हैं। इस प्रसंग में एक खास बात जिसका आम तौर पर जिक्र नहीं होता वह या कि लक्ष्मण जी का उपचार लंका के राज वेद्य सुषेण वैद्य ने किया था। यानी उस समय चिकित्सक युद्ध के दौरान घायल दुश्मन का भी इलाज करते थे।

 इसके अलावा श्री राम के जन्म से पहले की कथा को याद कीजिए। महाराज दशरथ एक यज्ञ करते हैं और उस यज्ञ के प्रसाद स्वरूप खीर तीनों महारानियों को ग्रहण कराते हैं। यह यज्ञ भी विश्वामित्र ही संपन्न कराते हैं। तार्किक बुद्धि से विचार कीजिए यह प्रसाद एक औषधि ही थी जिसे केवल महारानियों को ही ग्रहण कराया गया। आप जब अगली बार मानस का अध्ययन करें तो पाएंगे कि अनेक अवसरों पर तुलसीदास जी ने विभिन्न फल फूल आदि के गुणों का वर्णन किया है। कई जगहों पर उन्होंने मनुष्य के स्वभाव,कर्तव्य आदि की व्याख्या करने के लिए इनका सहारा लिया है। 


!! सर्वे संतु निरामया !!

रामनवमी पर यही शुभकामना


*चित्र मेरे निवास पर बेटे रुद्रांश द्वारा तैयार श्रीराम की झांकी का


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- मनोज जोशी (भोपाल) रामनवमी युगाब्द 5123 तदनुसार दिनांक 21 अप्रैल 2021

Friday, April 2, 2021

हिंदुत्व और महात्मा गांँधीजी का रामराज्य (५०)

(गतांक से आगे)

महात्मा गाँधीजी की रामराज्य की अवधारणा हिंदू राष्ट्र के बहुत करीब

-#मनोज_जोशी

हमने पिछली दो- तीन कड़ी में देखा कि हिंदू और हिंदुत्व के साथ हिंदू राष्ट्र की अवधारणा की गलत व्याख्या करके उसे रिलीजन से जोड़ा गया। इसी तरह गाँधीजी की रामराज्य की अवधारणा को जब हम देखते हैं तो पता चलता है कि वह भी रिलीजन पर आधारित नहीं है। आरएसएस की स्थापना से ४ साल पहले असहयोग आंदोलन के दौरान २२ मई, १९२१ को ‘नवजीवन’ में महात्मा गाँधी ने रामराज्य को लेकर जो कुछ लिखा वह पढ़ लीजिए। डॉ हेडगेवार और महात्मा गाँधीजी दोनों के विचारों में समानता ही नजर आएगी।

गाँधी जी लिखते हैं -‘कुछ मित्र रामराज्य का अक्षरार्थ करते हुए पूछते हैं कि जब तक राम और दशरथ फिर से जन्म नहीं लेते तब तक क्या रामराज्य मिल सकता है? हम तो रामराज्य का अर्थ स्वराज्य, धर्मराज्य, लोकराज्य करते हैं। वैसा राज्य तो तभी संभव है जब जनता धर्मनिष्ठ और वीर्यवान् बने. ...अभी तो कोई सद्गुणी राजा भी यदि स्वयं प्रजा के बंधन काट दे, तो भी प्रजा उसकी गुलाम बनी रहेगी। हम तो राज्यतंत्र और राज्य नीति को बदलने के लिए प्रयत्न कर रहे हैं; बाद में हमारे सेवक के रूप में अंग्रेज रहेंगे या भारतीय हमें इसकी चिंता नहीं करनी पड़ेगी। हम अंग्रेज जनता को बदलने का प्रयास भी नहीं करते।हम तो स्वयं अपने-आप को बदलने का प्रयास कर रहे हैं।'

अब जरा संघ संस्थापक डॉ हेडगेवार के विचारों को ध्यान कर लीजिए। वे भी हिंदू समाज की कमजोरियों को दूर करने की बात करते हुए कहते थे कि इन हालात में यदि हम आजाद हो भी गए तो भी वह बेमानी होगी।


भावनगर में गाँधीजी ने कहा - राम के वंशज समाप्त नहीं हुए हैं

भावनगर में ८ जनवरी १९२५ को काठियावाड़ राजनीतिक सम्मेलन में रामराज्य को लेकर महात्मा गाँधी ने कहा `राम ने एक कुत्ते के साथ भी न्याय किया। राम ने सत्य के लिए अपना राजपाट छोड़कर वन गमन किया जो कि सारी दुनिया के राजाओं के लिए मर्यादा का पाठ है। उन्होंने एक पत्नीव्रत का पालन करते हुए यह दर्शाया कि राजवंश से संबद्ध होने के बावजूद कोई गृहस्थ व्यक्ति पूर्ण आत्मसंयम का पालन कर सकता है। राम को जनमत जानने के लिए आज की तरह मतदान की आवश्यकता नहीं थी बल्कि वे अंतरज्ञान के माध्यम से ही लोगों के हृदय की बात जान लेते थे। राम की प्रजा बहुत प्रसन्न थी। इस तरह का रामराज्य आज भी कायम किया जा सकता है। राम के वंशज समाप्त नहीं हुए हैं।’


रामराज्य का मतलब ईश्वर का राज

उन्होंने १९ सितंबर १९२९ को `यंग इंडिया’ में लिखाः----,`रामराज्य से मेरा मतलब हिंदू राज नहीं है।" (यहाँ गाँधीजी हिंदू शब्द का उपयोग रिलीजन के ‌रूप में कर रहे हैं) वे आगे लिखते हैं- " मेरे रामराज्य का अर्थ है- ईश्वर का राज्य। मेरे लिये, राम और रहीम एक ही हैं; मैं सत्य और धार्मिकता के ईश्वर के अलावा किसी और ईश्वर को स्वीकार नहीं करता। चाहे मेरी कल्पना के राम कभी इस धरती पर रहे हो या न रहे हो, रामायण का प्राचीन आदर्श निस्संदेह सच्चे लोकतंत्र में से एक है, जिसमें एक बहुत बुरा नागरिक भी एक जटिल और महंगी प्रक्रिया के बिना त्वरित न्याय को लेकर आश्वस्त हो।"

रामराज्य यानी धर्म राज्य और रामराज्य ही सबसे बेहतर लोकतंत्र का उदाहरण

२० मार्च, १९३० को ‘नवजीवन’ में ‘स्वराज्य और रामराज्य’ शीर्षक से एक लेख में गाँधीजी ने कहा था- ‘स्वराज्य के कितने ही अर्थ क्यों न किए जाएं, तो भी मेरे नजदीक तो उसका त्रिकाल सत्य एक ही अर्थ है, और वह है रामराज्य। यदि किसी को रामराज्य शब्द बुरा लगे तो मैं उसे धर्मराज्य कहूंगा। रामराज्य शब्द का भावार्थ यह है कि उसमें गरीबों की संपूर्ण रक्षा होगी, सब कार्य धर्मपूर्वक किए जाएंगे और लोकमत का हमेशा आदर किया जाएगा. ...सच्चा चिंतन तो वही है जिसमें रामराज्य के लिए योग्य साधन का ही उपयोग किया गया हो. यह याद रहे कि रामराज्य स्थापित करने के लिए हमें पाण्डित्य की कोई आवश्यकता नहीं है. जिस गुण की आवश्यकता है, वह तो सभी वर्गों के लोगों- स्त्री, पुरुष, बालक और बूढ़ों- तथा सभी धर्मों के लोगों में आज भी मौजूद है. दुःख मात्र इतना ही है कि सब कोई अभी उस हस्ती को पहचानते ही नहीं हैं. सत्य, अहिंसा, मर्यादा-पालन, वीरता, क्षमा, धैर्य आदि गुणों का हममें से हरेक व्यक्ति यदि वह चाहे तो क्या आज ही परिचय नहीं दे सकता?’


भोपाल में कहा - मेरे लिए राम और रहीम एक

सितंबर १९२९ में भोपाल में एक सभा में भी गाँधीजी ने रामराज्य की बात कही थी। गाँधी भवन न्यास द्वारा प्रकाशित पुस्तक मध्यप्रदेश के गाँधीधाम में लिखा है कि गांधीजी ने रामराज्य की पूरी व्याख्या करते हुए कहा था कि मुसलमान भाई इसे अन्यथा न लें, रामराज्य का मतलब है-ईश्वर का राज्य। मेरे लिए राम और रहीम में कोई अंतर नहीं है। उन्होंने कहा था कि जिस रामराज्य की कहानी हमें सुनने को मिलती है वह प्रजातंत्र का आदर्श है।

गाँधीजी ने कुछ अन्य अवसरोंं पर कहा था - "मैं अपने मुस्लिम मित्रों को सचेत करता हूं कि मेरे रामराज्य शब्द के प्रयोग पर वे किसी प्रकार की गलतफहमी में न आएं। मेरे लिए रामराज्य का अर्थ हिंदू राज नहीं है। मेरे लिए रामराज्य का अर्थ दैवीय शासन है। एक प्रकार से ईश्वर का राज्य है। मेरे लिए राम और रहीम एक ही हैं। मैं सत्य के अलावा और किसी को ईश्वर नहीं मानता। मेरी कल्पना के राम कभी इस धरती पर आए थे या नहीं लेकिन रामराज्य का प्राचीन आदर्श निस्संदेह एक प्रकार से सच्चे लोकतंत्र का नमूना है। वह ऐसी शासन व्यवस्था है जहां पर सबसे सामान्य नागरिक को भी लंबी और महंगी प्रक्रिया से गुजरे बिना त्वरित न्याय की उम्मीद बनी रहती है।"

अगस्त १९३४ में अमृत बाज़ार पत्रिका में उन्होंने कहा, 'मेरे सपनों की रामायण, राजा और निर्धन दोनों के लिये समान अधिकार सुनिश्चित करती है।'फिर २ जनवरी १९३७ को हरिजन में उन्होंने लिखा, 'मैंने रामराज्य का वर्णन किया है, जो नैतिक अधिकार के आधार पर लोगों की संप्रभुता है।’


मुस्लिम और ईसाई रिलीजन के लोगों की समझ के लिए वे रामराज्य को खुदाई राज या परमात्मा का राज भी कहने लगे थे।


गाँधीजी ने १९४६ में हरिजन में लिखाः----


`( मैं रामराज्य शब्द का प्रयोग इसलिए करता हूं) क्योंकि यह एक सुविधाजनक और सार्थक अभिव्यक्ति वाला मुहावरा है। इसके विकल्प में कोई दूसरा शब्द नहीं है जो लाखों लोगों तक मेरी बात को इतने प्रभावशाली ढंग से पहुंचा दे। जब मैं सीमांत प्रांत का दौरा करता हूं या मुस्लिम बहुल सभा को संबोधित करता हूं तो मैं अपने भाव को व्यक्त करने के लिए खुदाई राज शब्द का प्रयोग करता हूं। जब मैं ईसाई जनता को संबोधित करता हूं कि तब मैं धरती पर परमात्मा के राज की बात करता हूं।’

२६ फरवरी, १९४७ को एक प्रार्थना-सभा में महात्मा गाँधी ने कहा" मैंने अपने आदर्श समाज को रामराज्य का नाम दिया है. कोई यह समझने की भूल न करे कि राम-राज्य का अर्थ है हिन्दुओं का शासन. मेरा राम खुदा या गॉड का ही दूसरा नाम है। मैं खुदाई राज चाहता हूं जिसका अर्थ है धरती पर परमात्मा का राज्य. ...ऐसे राज्य की स्थापना से न केवल भारत की संपूर्ण जनता का, बल्कि समग्र संसार का कल्याण होगा।'

पिछले 7 महीने से जारी इस श्रंखला की 50 वीं कड़ी तक आते-आते इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि जिन महात्मा गांधी को "रघुपति राघव राजा राम" और "वैष्णव जन तो तेने कहिए जो पीर पराई जाने रे" प्रिय थे स्वाभाविक रूप से वे मन और वचन से हिंदुत्व की मूल अवधारणा के काफी करीब थे।

दोनों की कार्यपद्धति में जरूर कुछ अंतर नजर आता है, लेकिन इस अंतर को बढ़ा चढ़ा कर पेश करके हम केवल उन विघ्न संतोषी लोगों के एजेंडे को ही पूरा करेंगे जिनके विचार की जड़ें भारत में नहीं है।

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अध्ययन के लिए अल्प विराम……

"हिंदुत्व और महात्मा गांँधीजी का रामराज्य" विषय पर यह अध्ययन तब तक बेमानी है जब तक रामराज्य की अवधारणा की प्रासंगिकता पर चर्चा ना हो। अब मैं वाल्मीकि रामायण में राम राज्य के वर्णन और वर्तमान संदर्भ में उसकी प्रासंगिकता पर अध्ययन शुरू कर रहा हूँ। इस बारे में अध्ययन के लिए इस श्रृंखला को अल्प विराम देता हूं। कुछ ही दिनों में "वर्तमान युग में रामराज्य की प्रासंगिकता" इस विषय पर भी मेरा लेखन किसी न किसी रूप में सामने आएगा।

इस श्रृंखला के लिए अनेक मित्रों ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मुझे जो सहयोग प्रदान किया है और जो मेरा उत्साहवर्धन किया है के लिए सबका आभार व्यक्त करता हूं।

(समाप्त)


(यह श्रृंखला मेरे ब्लॉग www.mankaoj.blogspot.com 

और एक अन्य न्यूज़ वेबसाइट www.newspuran.com पर भी उपलब्ध है)