Monday, February 6, 2023

‘परंम् वैभवम नेतुमेतत्वस्वराष्ट्रं’

‘परंम् वैभवम नेतुमेतत्वस्वराष्ट्रं’


यानी राष्ट्र को परम वैभव की ओर ले जाना है. अगर आप मुझसे पूछें कि यह कैसे होगा? तो मेरा स्पष्ट मत यह है कि जाति व्यवस्था को समाप्त करना होगा और इसकी शुरुआत जाति के आधार पर होने वाले भेदभाव को समाप्त करके होगी।

एक ही मंदिर, एक जलाशय, सबका एक श्मशान हो। जब तक यह एकता नहीं आएगी। जाति के आधार पर श्रेष्ठता और निम्नता के भाव जब तक समाप्त नहीं होंगे, हम परम वैभव के लक्ष्य को नहीं पा सकते। हमारे सांस्कृतिक इतिहास में ऐसे तमाम उदाहरण मौजूद हैं जो साबित करते हैं कि प्राचीन वर्ण व्यवस्था कर्म आधारित थी, जन्म आधारित नहीं। बाद में यह जन्म आधारित जाति व्यवस्था में बदल गई।

अक्तूबर, 2003 में नागपुर में अपने विजयादशमी उद्बोधन में संघ के पांचवें सरसंघचालक सुदर्शन जी ने कथित दलित समस्या पर कहा, 'अपने ही समाज के एक वर्ग को दलित जैसे घृणित शब्द से संबोधित करना कहां तक उचित है? वास्तव में जो लोग विकास के निम्न स्तर पर हैं उनमें ऊपर उठने का आत्मविश्वास जगाना पहली आवश्यकता है। हमारी सोच यह है कि यह कार्य समाज को स्वयं करना होता है और यह कार्य तात्कालिक राजनीतिक स्वार्थों से प्रेरित नेता लोग नहीं कर सकते। इस कार्य को सामाजिक एवं धार्मिक नेतृत्व को अपने हाथ में लेना चाहिए।'

संघ के चौथे सरसंघचालक रज्जू भैया एक जगह लिखते हैं -'इस देश का हिन्दू समाज हजारों वर्षों तक समृद्धि एवं वैभव का जीवन जीने के बाद ईसा की नवमी और दशमी शताब्दियों में ऐसी रुढ़िग्रस्त अवस्था में पहुंच गया जहां गुण-कर्म पर आधारित वर्ण एवं जाति व्यवस्था को ऊंच-नीच का पर्याय मानकर हमारे ही लोगों ने राष्ट्र के उत्थान में बाधाएं खड़ी कर दीं। परिणामत: हिन्दू समाज अनेक प्रकार से विभक्त हो गया और राष्ट्र को निरंतर आठ सौ वर्षों तक परकीयों की दासता सहनी पड़ी।'

संघ के तृतीय सरसंघचालक बालासाहेब देवरस का तो यह वाक्य प्रसिद्ध है - "यदि अस्पृश्यता पाप नहीं है तो संसार में कुछ भी पाप नहीं है।"

बालासाहब देवरस ने 1986 राष्ट्रीय सेविका समिति के स्वर्ण जयंती समारोह में दिए भाषण में कहा था 'जाति-व्यवस्था को समाप्त कर देना चाहिए. हिंदू समाज की जातिप्रथा समाप्त होने पर सारा संसार हिंदू समाज को वरण करेगा. इसके लिए भारतीय महिला समाज को पहल अपने हाथ में लेकर अपने घर से ही अंतरजातीय और अंतरप्रांतीय विवाह की शुरुआत करनी चाहिए.'

द्वितीय सरसंघचालक गुरु गोलवलकर जी कहते थे - ‘चातुर्वर्ण्य में न तो किसी वर्ण का अस्तित्व है और न ही किसी जाति का. आज तो हम सभी का एक ही वर्ण और एक ही जाति है और वह है हिंदू.’

संघ के संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार ने कहा ‘हम अस्पृश्यता दूर करने की बात नहीं करते बल्कि हम स्वयंसेवकों को इस प्रकार विचार करने के लिए प्रेरित करते हैं कि हम सभी हिंदू हैं और एक ही परिवार के सदस्य हैं. इससे किसी भी स्वयंसेवक में इस तरह का विचार नहीं आता है कि कौन किस जाति का है?’

#मनोज_जोशी

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