Friday, April 2, 2021

हिंदुत्व और महात्मा गांँधीजी का रामराज्य (५०)

(गतांक से आगे)

महात्मा गाँधीजी की रामराज्य की अवधारणा हिंदू राष्ट्र के बहुत करीब

-#मनोज_जोशी

हमने पिछली दो- तीन कड़ी में देखा कि हिंदू और हिंदुत्व के साथ हिंदू राष्ट्र की अवधारणा की गलत व्याख्या करके उसे रिलीजन से जोड़ा गया। इसी तरह गाँधीजी की रामराज्य की अवधारणा को जब हम देखते हैं तो पता चलता है कि वह भी रिलीजन पर आधारित नहीं है। आरएसएस की स्थापना से ४ साल पहले असहयोग आंदोलन के दौरान २२ मई, १९२१ को ‘नवजीवन’ में महात्मा गाँधी ने रामराज्य को लेकर जो कुछ लिखा वह पढ़ लीजिए। डॉ हेडगेवार और महात्मा गाँधीजी दोनों के विचारों में समानता ही नजर आएगी।

गाँधी जी लिखते हैं -‘कुछ मित्र रामराज्य का अक्षरार्थ करते हुए पूछते हैं कि जब तक राम और दशरथ फिर से जन्म नहीं लेते तब तक क्या रामराज्य मिल सकता है? हम तो रामराज्य का अर्थ स्वराज्य, धर्मराज्य, लोकराज्य करते हैं। वैसा राज्य तो तभी संभव है जब जनता धर्मनिष्ठ और वीर्यवान् बने. ...अभी तो कोई सद्गुणी राजा भी यदि स्वयं प्रजा के बंधन काट दे, तो भी प्रजा उसकी गुलाम बनी रहेगी। हम तो राज्यतंत्र और राज्य नीति को बदलने के लिए प्रयत्न कर रहे हैं; बाद में हमारे सेवक के रूप में अंग्रेज रहेंगे या भारतीय हमें इसकी चिंता नहीं करनी पड़ेगी। हम अंग्रेज जनता को बदलने का प्रयास भी नहीं करते।हम तो स्वयं अपने-आप को बदलने का प्रयास कर रहे हैं।'

अब जरा संघ संस्थापक डॉ हेडगेवार के विचारों को ध्यान कर लीजिए। वे भी हिंदू समाज की कमजोरियों को दूर करने की बात करते हुए कहते थे कि इन हालात में यदि हम आजाद हो भी गए तो भी वह बेमानी होगी।


भावनगर में गाँधीजी ने कहा - राम के वंशज समाप्त नहीं हुए हैं

भावनगर में ८ जनवरी १९२५ को काठियावाड़ राजनीतिक सम्मेलन में रामराज्य को लेकर महात्मा गाँधी ने कहा `राम ने एक कुत्ते के साथ भी न्याय किया। राम ने सत्य के लिए अपना राजपाट छोड़कर वन गमन किया जो कि सारी दुनिया के राजाओं के लिए मर्यादा का पाठ है। उन्होंने एक पत्नीव्रत का पालन करते हुए यह दर्शाया कि राजवंश से संबद्ध होने के बावजूद कोई गृहस्थ व्यक्ति पूर्ण आत्मसंयम का पालन कर सकता है। राम को जनमत जानने के लिए आज की तरह मतदान की आवश्यकता नहीं थी बल्कि वे अंतरज्ञान के माध्यम से ही लोगों के हृदय की बात जान लेते थे। राम की प्रजा बहुत प्रसन्न थी। इस तरह का रामराज्य आज भी कायम किया जा सकता है। राम के वंशज समाप्त नहीं हुए हैं।’


रामराज्य का मतलब ईश्वर का राज

उन्होंने १९ सितंबर १९२९ को `यंग इंडिया’ में लिखाः----,`रामराज्य से मेरा मतलब हिंदू राज नहीं है।" (यहाँ गाँधीजी हिंदू शब्द का उपयोग रिलीजन के ‌रूप में कर रहे हैं) वे आगे लिखते हैं- " मेरे रामराज्य का अर्थ है- ईश्वर का राज्य। मेरे लिये, राम और रहीम एक ही हैं; मैं सत्य और धार्मिकता के ईश्वर के अलावा किसी और ईश्वर को स्वीकार नहीं करता। चाहे मेरी कल्पना के राम कभी इस धरती पर रहे हो या न रहे हो, रामायण का प्राचीन आदर्श निस्संदेह सच्चे लोकतंत्र में से एक है, जिसमें एक बहुत बुरा नागरिक भी एक जटिल और महंगी प्रक्रिया के बिना त्वरित न्याय को लेकर आश्वस्त हो।"

रामराज्य यानी धर्म राज्य और रामराज्य ही सबसे बेहतर लोकतंत्र का उदाहरण

२० मार्च, १९३० को ‘नवजीवन’ में ‘स्वराज्य और रामराज्य’ शीर्षक से एक लेख में गाँधीजी ने कहा था- ‘स्वराज्य के कितने ही अर्थ क्यों न किए जाएं, तो भी मेरे नजदीक तो उसका त्रिकाल सत्य एक ही अर्थ है, और वह है रामराज्य। यदि किसी को रामराज्य शब्द बुरा लगे तो मैं उसे धर्मराज्य कहूंगा। रामराज्य शब्द का भावार्थ यह है कि उसमें गरीबों की संपूर्ण रक्षा होगी, सब कार्य धर्मपूर्वक किए जाएंगे और लोकमत का हमेशा आदर किया जाएगा. ...सच्चा चिंतन तो वही है जिसमें रामराज्य के लिए योग्य साधन का ही उपयोग किया गया हो. यह याद रहे कि रामराज्य स्थापित करने के लिए हमें पाण्डित्य की कोई आवश्यकता नहीं है. जिस गुण की आवश्यकता है, वह तो सभी वर्गों के लोगों- स्त्री, पुरुष, बालक और बूढ़ों- तथा सभी धर्मों के लोगों में आज भी मौजूद है. दुःख मात्र इतना ही है कि सब कोई अभी उस हस्ती को पहचानते ही नहीं हैं. सत्य, अहिंसा, मर्यादा-पालन, वीरता, क्षमा, धैर्य आदि गुणों का हममें से हरेक व्यक्ति यदि वह चाहे तो क्या आज ही परिचय नहीं दे सकता?’


भोपाल में कहा - मेरे लिए राम और रहीम एक

सितंबर १९२९ में भोपाल में एक सभा में भी गाँधीजी ने रामराज्य की बात कही थी। गाँधी भवन न्यास द्वारा प्रकाशित पुस्तक मध्यप्रदेश के गाँधीधाम में लिखा है कि गांधीजी ने रामराज्य की पूरी व्याख्या करते हुए कहा था कि मुसलमान भाई इसे अन्यथा न लें, रामराज्य का मतलब है-ईश्वर का राज्य। मेरे लिए राम और रहीम में कोई अंतर नहीं है। उन्होंने कहा था कि जिस रामराज्य की कहानी हमें सुनने को मिलती है वह प्रजातंत्र का आदर्श है।

गाँधीजी ने कुछ अन्य अवसरोंं पर कहा था - "मैं अपने मुस्लिम मित्रों को सचेत करता हूं कि मेरे रामराज्य शब्द के प्रयोग पर वे किसी प्रकार की गलतफहमी में न आएं। मेरे लिए रामराज्य का अर्थ हिंदू राज नहीं है। मेरे लिए रामराज्य का अर्थ दैवीय शासन है। एक प्रकार से ईश्वर का राज्य है। मेरे लिए राम और रहीम एक ही हैं। मैं सत्य के अलावा और किसी को ईश्वर नहीं मानता। मेरी कल्पना के राम कभी इस धरती पर आए थे या नहीं लेकिन रामराज्य का प्राचीन आदर्श निस्संदेह एक प्रकार से सच्चे लोकतंत्र का नमूना है। वह ऐसी शासन व्यवस्था है जहां पर सबसे सामान्य नागरिक को भी लंबी और महंगी प्रक्रिया से गुजरे बिना त्वरित न्याय की उम्मीद बनी रहती है।"

अगस्त १९३४ में अमृत बाज़ार पत्रिका में उन्होंने कहा, 'मेरे सपनों की रामायण, राजा और निर्धन दोनों के लिये समान अधिकार सुनिश्चित करती है।'फिर २ जनवरी १९३७ को हरिजन में उन्होंने लिखा, 'मैंने रामराज्य का वर्णन किया है, जो नैतिक अधिकार के आधार पर लोगों की संप्रभुता है।’


मुस्लिम और ईसाई रिलीजन के लोगों की समझ के लिए वे रामराज्य को खुदाई राज या परमात्मा का राज भी कहने लगे थे।


गाँधीजी ने १९४६ में हरिजन में लिखाः----


`( मैं रामराज्य शब्द का प्रयोग इसलिए करता हूं) क्योंकि यह एक सुविधाजनक और सार्थक अभिव्यक्ति वाला मुहावरा है। इसके विकल्प में कोई दूसरा शब्द नहीं है जो लाखों लोगों तक मेरी बात को इतने प्रभावशाली ढंग से पहुंचा दे। जब मैं सीमांत प्रांत का दौरा करता हूं या मुस्लिम बहुल सभा को संबोधित करता हूं तो मैं अपने भाव को व्यक्त करने के लिए खुदाई राज शब्द का प्रयोग करता हूं। जब मैं ईसाई जनता को संबोधित करता हूं कि तब मैं धरती पर परमात्मा के राज की बात करता हूं।’

२६ फरवरी, १९४७ को एक प्रार्थना-सभा में महात्मा गाँधी ने कहा" मैंने अपने आदर्श समाज को रामराज्य का नाम दिया है. कोई यह समझने की भूल न करे कि राम-राज्य का अर्थ है हिन्दुओं का शासन. मेरा राम खुदा या गॉड का ही दूसरा नाम है। मैं खुदाई राज चाहता हूं जिसका अर्थ है धरती पर परमात्मा का राज्य. ...ऐसे राज्य की स्थापना से न केवल भारत की संपूर्ण जनता का, बल्कि समग्र संसार का कल्याण होगा।'

पिछले 7 महीने से जारी इस श्रंखला की 50 वीं कड़ी तक आते-आते इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि जिन महात्मा गांधी को "रघुपति राघव राजा राम" और "वैष्णव जन तो तेने कहिए जो पीर पराई जाने रे" प्रिय थे स्वाभाविक रूप से वे मन और वचन से हिंदुत्व की मूल अवधारणा के काफी करीब थे।

दोनों की कार्यपद्धति में जरूर कुछ अंतर नजर आता है, लेकिन इस अंतर को बढ़ा चढ़ा कर पेश करके हम केवल उन विघ्न संतोषी लोगों के एजेंडे को ही पूरा करेंगे जिनके विचार की जड़ें भारत में नहीं है।

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अध्ययन के लिए अल्प विराम……

"हिंदुत्व और महात्मा गांँधीजी का रामराज्य" विषय पर यह अध्ययन तब तक बेमानी है जब तक रामराज्य की अवधारणा की प्रासंगिकता पर चर्चा ना हो। अब मैं वाल्मीकि रामायण में राम राज्य के वर्णन और वर्तमान संदर्भ में उसकी प्रासंगिकता पर अध्ययन शुरू कर रहा हूँ। इस बारे में अध्ययन के लिए इस श्रृंखला को अल्प विराम देता हूं। कुछ ही दिनों में "वर्तमान युग में रामराज्य की प्रासंगिकता" इस विषय पर भी मेरा लेखन किसी न किसी रूप में सामने आएगा।

इस श्रृंखला के लिए अनेक मित्रों ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मुझे जो सहयोग प्रदान किया है और जो मेरा उत्साहवर्धन किया है के लिए सबका आभार व्यक्त करता हूं।

(समाप्त)


(यह श्रृंखला मेरे ब्लॉग www.mankaoj.blogspot.com 

और एक अन्य न्यूज़ वेबसाइट www.newspuran.com पर भी उपलब्ध है)




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