Saturday, January 2, 2021

हिंदुत्व और महात्मा गाँधीजी का रामराज्य (३०)

(गतांक से आगे)

जिन्ना, इकबाल और शेख अब्दुल्ला तीनों के पूर्वज हिंदु

#मनोज_जोशी 


मुस्लिम लीग के गठन पर पिछली कङी में चर्चा में मैंने जिक्र किया कि पाकिस्तान के जनक मुहम्मद अली जिन्ना का जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ था। इस पर कई मित्रों ने आश्चर्य जताया। मैंने कहा अकेले जिन्ना ही नहीं ऐसे अनेक उदाहरण हैं । एक लाइन में मैंने लिखा था १९ वीं शताब्दी से लेकर २० वीं शताब्दी के पूर्वार्ध तक के सामाजिक माहौल को समझना होगा। भारत में मुगलों के आने के बाद शुरू  हुए conversion का असर समझने के लिए केवल तीन जिन्ना,इकबाल और शेख अब्दुल्ला के उदाहरण पर चर्चा करते हैं ।


मोहम्मद अली जिन्ना की कहानी का यह हिस्सा पढ़ कर आप समझ सकते हैं कि हिंदु जातिवाद ने देश का कितना बङा नुकसान कराया है।जिन्ना के पिता मुस्लिम नहीं  थे बल्कि उन्होंने नाराजगी में मुस्लिम धर्म ग्रहण किया। `पाकिस्तान एंड इस्लामिक आइडेंटिटी` में इस बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। जिन्ना का परिवार  गुजरात के काठियावाड़ का रहने वाला था। महात्मा गाँधीजी  भी इसी क्षेत्र के थे।  जिन्ना के  दादा का नाम प्रेमजीभाई मेघजी ठक्कर था. वो हिंदु थे. वो काठियावाड़ के गांव पनेली के रहने वाले थे. प्रेमजी भाई ने मछली के कारोबार से बहुत पैसा कमाया. वो ऐसे व्यापारी थे, जिनका कारोबार विदेशों में भी था. लेकिन उनके लोहना जाति से ताल्लुक रखने वालों को उनका ये व्यवसाय  नापसंद था. लोहना कट्टर तौर शाकाहारी थे और धार्मिक तौर पर मांसाहार से सख्त परहेज करते थे । लोहाना मूल तौर पर वैश्य होते हैं, जो गुजरात, सिंध और कच्छ में होते हैं. कुछ लोहाना राजपूत जाति से भी ताल्लुक रखते हैं।

 जब प्रेमजी भाई ने मछली का कारोबार शुरू किया और वो इससे पैसा कमाने लगे तो उनके ही जाति से इसका विरोध होना शुरू हो गया. उनसे कहा गया कि अगर उन्होंने यह बिजनेस बंद नहीं किया तो उन्हें जाति से बहिष्कृत कर दिया जाएगा. प्रेमजी ने बिजनेस जारी रखने के साथ जाति समुदाय में लौटने का प्रयास किया लेकिन बात नहीं बनी. उनका बहिष्कार जारी रहा।

इस बहिष्कार के बाद भी प्रेमजी तो लगातार हिंदु बने रहे लेकिन उनके बेटे पुंजालाल ठक्कर को पिता और परिवार का बहिष्कार इतना अपमानजनक लगा कि उन्होंने गुस्से में पत्नी के साथ तब तक हो चुके अपने चारों बेटों का धर्म ही बदल डाला. वो मुस्लिम बन गए. हालांकि प्रेमजी के बाकी बेटे ( यानी जिन्ना के काका )  हिंदु ही रहे. इसके बाद जिन्ना के पिता पुंजालालअपने भाइयों और रिश्तेदारों तक से अलग हो गए. वो काठियावाड़ से कराची चले गए. वहां उनका बिजनेस और फला-फूला. वो इतने समृद्ध व्यापारी बन गए कि उनकी कंपनी का ऑफिस लंदन तक में खुल गया. कहा जाता है कि जिन्ना के बहुत से रिश्तेदार अब भी हिंदु हैं और गुजरात में रहते हैं.


इसके बाद जिन्ना के परिवार के सभी लोग न केवल मुस्लिम हो गए बल्कि इसी धर्म में अपनी पहचान बनाई. हालांकि पिता-मां ने अपने बच्चों की परवरिश खुले धार्मिक माहौल में की. जिसमें हिंदु और मुस्लिम दोनों का प्रभाव था. इसलिए जिन्ना शुरुआत में धार्मिक तौर पर काफी  उदारवादी थे. वो लंबे समय तक लंदन में रहे.मुस्लिम लीग में आने से पहले उनके जीने का अंदाज मुस्लिम धर्म से एकदम अलग था. शुरुआती दौर में वो खुद की पहचान मुस्लिम बताए जाने से भी परहेज करते थे। बाद में वो धार्मिक आधार पर ही पाकिस्तान के ऐसे पैरोकार बने कि देश के दो टुकड़े ही करा डाले।


अल्लामा इकबाल के दादा ने  मृत्यु दण्ड से बचने कबूल किया था इस्लाम 


अल्लामा इकबाल के पुरखे बीरबल सप्रू कश्मीर में शोपियां-कुलगाम रोड के पास के एक गांव सपरैन के रहने वाले थे ।बाद में उनका परिवार श्रीनगर आ गया। बीरबल सप्रू के पांच बेटे और एक बेटी थी। उनके तीसरे बेटे कन्हैया लाल अल्लामा इकबाल के दादा थे। कन्हैया लाल की पत्नी का नाम  इंद्राणी था। कन्हैया लाल के बेटे थे रतन लाल  रतन लाल ने बाद इस्लाम कबूला था। प्रश्न है रतनलाल नूर मोहम्मद क्यों हो गए ? जवाब देते हैं इकबाल की शायरियों के अंग्रेजी अनुवादक सैयदा हमीद। हमीद के अनुसार रतनलाल कश्मीर में अफगान गवर्नर के रेवेन्यू कलेक्टर के रूप में काम कर रहे थे ।शजहां उनसे राजस्व वसूली में गङबङी हो गई। इस पर  गवर्नर ने रतन लाल को दो विकल्प दिए या तो इस्लाम कबूल करो या सिर कलम करवाने के लिए तैयार रहो। रतन लाल ने इस्लाम कबूल कर लिया ।बाद में कश्मीर में सिखों का राज कायम हो गया और रतन लाल सियालकोट जा बसे. वहां उन्होंने पंजाबी मुस्लिम महिला इमाम बीबी से शादी की. इकबाल का जन्म  9 नवंबर 1877 को सियालकोट में हुआ उनकी परवरिश मुस्लिम माहौल में हुई। यहाँ तक कि प्रारंभिक शिक्षा  भी मदरसे में हुई थी।

सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्तां हमारा लिखने वाले इस शायर ने भी पाकिस्तान जाना ही उचित समझा।


शेख अब्दुल्ला ने अपनी जीवनी में माना वे कश्मीरी ब्राह्मण के वंशज


मुस्लिम कांफ्रेंस (जो अब नेशनल कांफ्रेंस कहलाती है ) के संस्थापक और कश्मीर का सबसे प्रभावशाली परिवार शेख अब्दुल्ला केपरिवार की जङें भी हिंदू समाज हैं। स्वयं शेख अब्दुल्ला ने अपनी जीवनी ‘आतिश-ए- चीनार’ में लिखा है कि कश्मीरी मुसलमानों के पूर्वज हिंदू थे, और उनके पूर्वज कश्मीरी पंडित थे। उन्होंने लिखा  है कि उनके परदादा का नाम बालमुकुंद कौल था. उनके पूर्वज मूल रूप से सप्रू गोत्र के कश्मीरी ब्राह्मण थे. अफग़ानों के शासनकाल में उनके एक पूर्वज रघुराम ने एक सूफी के हाथों इस्लाम कबूल किया था. उनका परिवार पश्मीने का व्यापार करता था. और अपने छोटे से निजी कारख़ाने में शॉल और दुशाले तैयार कराके बाज़ार में बेचता था।


कश्मीर की समस्या की एक बङी वजह  आखिर अब्दुल्ला परिवार ही था।


(क्रमशः )



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