Wednesday, January 20, 2021

हिंदुत्व और महात्मा गाँधीजी का रामराज्य (३२)

(गतांक से आगे)

और ऐसे माहौल में गाँधीजी भारत लौटे

पहले  मुस्लिम लीग और उसके बाद हिंदू महासभा के गठन के माहौल के बीच १९१५ की शुरुआत में गाँधीजी भारत लौटे। अपने राजनीतिक गुरु गोपालकृष्ण गोखले की सलाह पर उन्होंने पूरे भारत का दौरा किया। गोखले ने हिंदू समाज में व्याप्त जातिवाद के खिलाफ काफी काम किया था। यदि विचार करें तो समझ में आता है राजनीतिक - सामाजिक क्षेत्र में गाँधीजी ने उन्हीं के काम को आगे बढ़ाया।

१९१६ में लखनऊ में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में गाँधीजी शामिल हुए । यह सम्मेलन कई अर्थों में महत्वपूर्ण था। अंबिकाचरण मजूमदार ने इस सम्मेलन की अध्यक्षता की। हालाँकि अब कांग्रेस में कोई उन्हें याद नहीं करता । इस अधिवेशन में  तीन महत्वपूर्ण बातें हुईं । 


(१) १९०७ में सूरत अधिवेशन में नरम दल और गरम दल में विभाजित कांग्रेस में १९१६ के लखनऊ अधिवेशन में फिर  एकता हो गई। नरम दल  के नेता रहे गोपालकृष्ण गोखले और फिरोज शाह मेहता की १९१५ में मृत्यु के बाद बाल गंगाधर तिलक और एनी बेसेंट ने गरम और नरम दल को दोबारा एक मंच पर लाने का काम किया।


(२)  चम्पारण के किसान यहाँ गाँधीजी से मिले। किसानों के अनुरोध पर वे चम्पारण गए। चम्पारण के सत्याग्रह की एक लंबी कहानी है। इस सत्याग्रह ने गाँधीजी को देश भर में लोकप्रिय कर दिया।इसी दौरान गांधी जी ने देश में  गरीबी को निकटता से देखा। उन्होंने देखा कि भारत में बङी आबादी ऐसी है जिनके पास पहनने के लिए वस्त्र तक नहीं हैं । इसी के बाद उन्होंने बैरिस्टर की पोशाक त्यागकर गरीबों की तरह  एक धोती पहनने का संकल्प लिया। यह बदलाव उन्हें बैरिस्टर गाँधी से महात्मा गाँधी बनने की ओर ले गया।


(३) इसी अधिवेशन में कांग्रेस ने मुस्लिम लीग द्वारा की जा रही सांप्रदायिकता प्रतिनिधित्व की मांग को भी मान लिया और दोनों के बीच समझौता हो गया। 

हम श्रृंखला के विषय के अनुरूप लखनऊ समझौते की बात को आगे बढ़ाते हैं । इस समझौते में भारत सरकार के ढांचे और हिन्दू तथा मुसलमान समुदायों के बीच संबंधों के बारे में प्रावधान था। मुहम्मद अली जिन्ना, ऐनीबिसेंट और बाल गंगाधर तिलक इस समझौते के प्रमुख शिल्पकार  थे। (आगे की कहानी के लिए यह तीनों  नाम याद रखिएगा)


मुस्लिम लीग के अध्यक्ष की हैसियत से जिन्ना ने संवैधानिक सुधारों की 'संयुक्त कांग्रेस लीग योजना' पेश की। इस योजना के अंतर्गत कांग्रेस लीग समझौते से मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों तथा जिन प्रान्तों में वे अल्पसंख्यक थे, वहाँ पर उन्हें अनुपात से अधिक प्रतिनिधित्व देने की व्यवस्था की गई। 

इस समझौते में गाँधीजी की कोई महत्वपूर्ण प्रत्यक्ष भूमिका नहीं थी लेकिन  यह प्रस्ताव उनके राजनीतिक गुरु गोपाल कृष्ण गोखले के 'राजनीतिक विधान' को आगे बढ़ाने वाले थे। इनमें प्रावधान था कि प्रांतीय एवं केंद्रीय विधायिकाओं का तीन-चौथाई हिस्सा व्यापक मताधिकार के ज़रिये चुना जाए और केंद्रीय कार्यकारी परिषद के सदस्यों सहित कार्यकारी परिषदों के आधे सदस्य, परिषदों द्वारा ही चुने गए भारतीय हों। केंद्रीय कार्यकारी के प्रावधान को छोड़कर ये प्रस्ताव आमतौर पर 1919 के भारत सरकार अधिनियम में शामिल थे।

(क्रमशः)

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