Monday, March 29, 2021

हिंदुत्व और महात्मा गांँधी जी का रामराज्य (४९)

(गतांक से आगे)

आखिर हिंदू राष्ट्र की अवधारणा क्या है ?

#मनोज_जोशी


रामराज्य और उसमें भी गांधीजी के विचार जानने से पहले मुझे लगता है कि हिंदू राष्ट्र की अवधारणा पर भी चर्चा होनी चाहिए, तभी हम यह समझ सकेंगे कि दोनों में अंतर क्या है और दोनों में समानता क्या है ?

इस कड़ी में चर्चा करते हैं कि आखिर हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा क्या है ? 

१९२५ में आरएसएस की स्थापना के साथ डॉ हेडगेवार ने जोर देकर कहा - " हां मैं कहता हूँ कि भारत हिंदू राष्ट्र है।" यानी डॉक्टर हेडगेवार ने यह नहीं कहा कि भारत को हिंदु राष्ट्र बनाना है उन्होंने कहा भारत हिंदू राष्ट्र है। 


संघ की प्रार्थना कहती है 


प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता

इमे सादरं त्वां नमामो वयम्

त्वदीयाय कार्याय बध्दा कटीयम्

शुभामाशिषं देहि तत्पूर्तये।


प्रार्थना के इस भाग का हिंदी में अर्थ है


"सर्व शक्तिमान परमेश्वर, इस हिन्दू राष्ट्र के घटक के रूप में मैं तुमको सादर प्रणाम करता हूँ। आपके ही कार्य के लिए हम कटिबद्ध हुवे है। हमें इस कार्य को पूरा करने किये आशीर्वाद दे। हमें ऐसी अजेय शक्ति दीजिये कि सारे विश्व मे हमे कोई न जीत सकें और ऐसी नम्रता दें कि पूरा विश्व हमारी विनयशीलता के सामने नतमस्तक हो। यह रास्ता कांँटों से भरा है, इस कार्य को हमने स्वयं स्वीकार किया है और इसे सुगम कर काँटों रहित करेंगे।"

वास्तव में संघ मानता है कि भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की कोई जरूरत नहीं क्योंकि वह पहले से ही हिंदू राष्ट्र है। 12 वर्षों में लगने वाले कुंभ के मेले, चार धाम की यात्रा, शक्तिपीठों की स्थापना आदि को देख लीजिए। हमारे कई शक्तिपीठ और प्रमुख धार्मिक स्थल पाकिस्तान और बांग्लादेश में चले गए हैं इसे समझ लीजिए। अलग-अलग रियासतों में बँटा इतना बड़ा देश लेकिन सांस्कृतिक रूप से सब एक। सबकी अपनी परंपराएं, सबकी अपनी पूजा पद्धति, सबके अपने विचार लेकिन फिर भी एक। इस 'हिंदू विचार' को 'राष्ट्र विचार' के रूप में देखा जाए। यही हिंदू राष्ट्र है।

 हमने इस श्रंखला की पिछली कड़ी में देखा कि धर्म और हिंदुत्व की गलत व्याख्या के कारण जिस तरह का भ्रम बना है लगभग वही स्थिति हिंदू राष्ट्र को लेकर है। हम पिछली कड़ी में यह जान चुके हैं कि हिंदू विचार यानी हिंदुत्व में पूजा पद्धति और अन्य मान्यताओं को लेकर कोई बंधन नहीं है। ईश्वर को मानने वाला भी हिंदू है और नास्तिक भी हिंदू है तो फिर इस हिंदू विचार को राष्ट्र विचार मानने में किसी भी पूजा पद्धति वाले व्यक्ति को क्या परेशानी होना चाहिए। 

कहा जाता है कि यदि भारत हिंदु राष्ट्र होगा तो यहाँ मुसलमानों और ईसाइयों की स्थिति दूसरे दर्जे के नागरिक जैसी हो जाएगी। इस आशंका का समाधान करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि यह देखा जाए कि राजनीतिक रूप से हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को सबसे पहले प्रस्तुत करने वाले वीर सावरकर ने इस पर क्या कहा था ?

 हिंदू महासभा के अध्यक्ष रूप में सावरकर ने कहा


"हिंदु महासभा न सिर्फ प्रति व्यक्ति एक वोट के सिद्धांत को स्वीकार करती है बल्कि मानती है कि इसके साथ मौलिक अधिकार और कर्तव्य भी सभी नागरिकों के लिए उनकी नस्ल और धर्म से परे समान होने चाहिए… अल्पसंख्यक अधिकारों की कोई भी बात सैद्धांतिक रूप से न केवल अनावश्यक बल्कि विरोधाभासी भी है।

क्योंकि यह सामुदायिक आधार पर अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक होने का बोध कराता है। लेकिन व्यावहारिक राजनीति जैसी माँग करती है और हिंदू संगठनी गैर-हिंदू देशवासियों को भयमुक्त करना चाहते हैं, उसके लिए हम इस बात पर ज़ोर देते हैं कि अल्पसंख्यकों के धर्म, संस्कृति और भाषा के लिए वैधानिक अधिकार दिए जाएँगे– जिसकी एक शर्त होगी-

बहुसंख्यकों के समान अधिकारों पर इससे अतिक्रमण न हो, न वे इससे निरस्त हों। अल्पसंख्यकों के अलग विद्यालय हो सकते हैं जिसमें वे अपने बच्चों को अपनी भाषा में शिक्षा दें, अपने धार्मिक और सांस्कृतिक संस्थान हो सकते हैं जिसे सरकार सहायता भी मिले लेकिन वे जितना कर देते हैं, उसके अनुपात में। ये सिद्धांत बहुसंख्यकों पर भी लागू हों।

इन सबसे आगे और ऊपर, यदि संविधान संयुक्त निर्वाचन क्षेत्रों और प्रति व्यक्ति एक वोट पर आधारित नहीं होता है तो जो अल्पसंख्यक अलग निर्वाचन क्षेत्र या आरक्षित सीटें चाहते हैं, उन्हें उसकी अनुमति होगी- लेकिन उनकी जनसंख्या के अनुपात में जिससे बहुसंख्यकों के समान अधिकारों का हनन न हो।

मुस्लिम अल्पसंख्यकों से समान नागरिकों की तरह व्यवहार होगा, वे समान सुरक्षा के अधिकारी होंगे और उनकी जनसंख्या के अनुपात में उन्हें जनपद अधिकार मिलेंगे। हिंदू बहुसंख्यक किसी भी गैर-हिंदू अल्पसंख्यक के वैधानिक अधिकारों पर अतिक्रमण नहीं करेंगे।

लेकिन किसी भी सूरत में हिंदू बहुसंख्यकों को अपने उन अधिकारों को नहीं त्यागना चाहिए जो किसी लोकतांत्रिक और वैधानिक संविधान के तहत बहुसंख्यकों को मिलते हैं। विशेषकर मुस्लिम अल्पसंख्यकों ने अल्पसंख्यक रहकर हिंदुओं के प्रति आभार व्यक्त नहीं किया है और इसलिए उन्हें प्राप्त पद और नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों में अनुपात के अनुसार मिली वैधानिक साझेदारी से संतुष्ट होना चाहिए।

मुस्लिम अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों के वैधानिक अधिकारों और विशेषाधिकारों पर निषेधाधिकार देना और उसे “स्वराज्य” कहना निरर्थक होगा। हिंदू शासकों को बदलना नहीं चाहते, वे इसलिए संघर्ष नहीं कर रहे, इसलिए मरने के लिए तैयार नहीं हैं कि किसी एडवर्ड का स्थान कोई औरंगजेब ले ले, मात्र इस आधार पर कि उसका जन्म भारतीय सीमाओं के अंदर हुआ है, वे अपने घर में, अपनी भूमि में अपना स्वामित्व चाहते हैं।"


ध्यान रहे सावरकर यह सब तब कह रहे हैं जब देश में अंग्रेजों का राज था और रियासतें भी कायम थीं। भारत की आजादी का संघर्ष चल रहा था, संविधान क्या होगा यह तय नहीं था, उस समय एक व्यक्ति एक वोट की बात कहना बहुत बड़ी बात थी। एक और महत्वपूर्ण बात यह भी है कि सावरकर जहाँ यह कहते थे कि भारत में हिंदु और मुस्लिम दो अलग अलग राष्ट्र है वहीं वे विभाजन को स्वीकार नहीं करते थे। यानी दोनों साथ रहेंगे और दोनों के अधिकार बराबर होंगे कोई किसी के अधिकार पर दबाव बनाकर अतिक्रमण नहीं करेगा। 

(क्रमशः)


(यह श्रृंखला मेरे ब्लॉग, फेसबुक और एक न्यूज़ वेबसाइट www.newspuran.com पर भी उपलब्ध है)










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