Monday, February 22, 2021

हिंदुत्व और महात्मा गाँधीजी का रामराज्य (३८)

(गतांक से  आगे)

गाँधीजी की हत्या के मामले में तिलक के नाती गजानंद विश्वनाथ केतकर पर लगी थी रासुका

#मनोज_जोशी 


जैसा  मैंने पूर्व में लिखा था कि १२ अक्टूबर १९६४ को नाथूराम गोडसे के भाई गोपाल गोडसे के साथ विष्णु करकरे और मदनलाल पाहवा आजीवन क़ैद की सज़ा काटकर रिहा हुए। गोपाल गोडसे और विष्णु करकरे पुणे पहुँचे तो उनके दोस्तों ने एक नेता  की तरह उनका स्वागत करने का फ़ैसला किया। ठीक एक महीने बाद १२ नवंबर को सत्यविनायक पूजा आयोजित हुई. इस सत्य विनायक पूजा में शामिल होने के लिए मराठी भाषा में लोगों को आमंत्रण पत्र भेजा गया, जिस पर लिखा गया था कि देशभक्तों की रिहाई की ख़ुशी में इस पूजा का आयोजन किया गया है और आप सभी आकर इन्हें बधाई दें। इस आयोजन में क़रीब १२५ -१५० लोग शामिल  हुए । कार्यक्रम में नाथूराम गोडसे को भी देशभक्त बताया गया और गाँधीजी की हत्या करने पर सबका सम्मान किया गया।

आप यह जानकर हैरत में पङ जाएंगे कि इस आयोजन की अध्यक्षता कर रहे थे लोकमान्य बालगंगाधर तिलक के नाती गजानंद विश्वनाथ केतकर। गाँधीजी के नमक सत्याग्रह सहित अनेक आंदोलनों में सक्रिय भागीदारी कर चुके केतकर ने लोकमान्य तिलक द्वारा शुरू की गईं  दो पत्रिकाओं केसरी' और 'तरुण भारत' का संपादन भी किया था। वे महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। १९५७ में सार्वजनिक राजनीतिक गतिविधियों से निवृत्ति के बाद से वे विभिन्न अखबारों में लेख लिख कर गाँधीजी की हत्या के आरोप में जेल में बंद सभी अपराधियों की मुक्ति का समर्थन कर रहे थे। 

इससे भी ज्यादा आश्चर्यजनक बात यह है कि कार्यक्रम में जीवी केतकर ने कहा, "कुछ हफ़्ते पहले ही गोडसे ने अपना इरादा शिवाजी मंदिर में आयोजित एक सभा में व्यक्त कर दिया था। गोडसे ने कहा था कि गाँधी कहते हैं कि वो 125 तक ज़िंदा रहेंगे लेकिन उन्हें 125 साल तक जीने कौन देगा? तब हमारे साथ बालुकाका कनेटकर भी थे और गोडसे के भाषण के इस हिस्से को सुनकर परेशान हो गए थे। हमने कनेटकर को आश्वस्त किया था कि वो नाथ्या (नाथूराम) को समझाएँगे और ऐसा करने से रोकेंगे। मैंने नाथूराम से पूछा था कि क्या वो गाँधी को मारना चाहता है? उसने कहा था कि हाँ, क्योंकि वो नहीं चाहता कि गांधी देश में और समस्याओं का कारण बनें।"  केतकर का कहना था कि  उन्होंने तत्कालीन बंबई प्रांत के मुख्यमंत्री बीजी खेर को इस बारे में सतर्कता बरतने की सलाह देते हुए सूचना भिजवा दी थी।


पूजा के बाद गोपाल गोडसे और करकरे ने जेल के अनुभवों को भी साझा किया। दो दिन बाद इसी स्थान पर गोडसे की श्राद्ध पूजा का भी आयोजन हुआ। 


केतकर ने इंडियन एक्सप्रेस से १४ नवंबर १९६४ को कहा था, "तीन महीने पहले ही नाथूराम गोडसे ने गाँधीजी  की हत्या योजना मुझसे बताई थी। जब मदनलाल पाहवा ने २० जनवरी १९४८ को गाँधीजी  जी की प्रार्थना सभा में बम फेंका तो बड़गे उसके बाद मेरे पास पुणे आया था और उसने भविष्य की योजना के बारे में बताया था।मुझे पता था कि गाँधीजी की हत्या होने वाली है। मुझे गोपाल गोडसे ने इस बारे में किसी को बताने से मना किया था". 

केतकर के इस बयान के बाद संसद और महाराष्ट्र विधानसभा में हंगामा हुआ ।अखबारों में भी सवाल उठाए गए कि गाँधीजी की हत्या की सूचना सरकार को पहले से थी तो सुरक्षा पुख्ता क्यों नहीं की गई? 

इसके बाद केतकर पर रासुका लगाई गई।  उन पर जानकारी छुपाने यानी षड्यंत्र में शामिल होने का आरोप लगा। गोपाल गोडसे को भी फिर गिरफ़्तार कर लिया गया। यह एक लंबी कहानी है इस पर कभी आगे चर्चा करेंगे ।

केंद्र सरकार ने सांसद और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील गोपाल स्वरूप पाठक की अगुवाई में गाँधीजी की हत्या के पीछे षड्यंत्र की नए सिरे से जांच के लिए एक आयोग गठित किया। . कुछ ही दिनों बाद पाठक केंद्रीय मंत्री बन गए (वे आगे जाकर भारत के उप राष्ट्रपति भी रहे)  तब सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जीवनलाल कपूर की अध्यक्षता में एक सदस्यीय आयोग बनाया गया।  इस आयोग की जाँच ३ साल तक चली. कमीशन ने १०१ गवाहों के बयान लिए गए। कपूर आयोग की दो पार्ट में  ७०० से अधिक पन्नों की रिपोर्ट में कोई नई बात सामने नहीं आई।   आयोग ने किसी भी व्यक्ति संगठन के हत्या के षड्यंत्र में शामिल होने की कोई बात नहीं की। वीर सावरकर के बारे में भी पहले से कही जा रही बातें ही आयोग की रिपोर्ट में सामने आईं और सावरकर उन आरोपों का अदालत में जवाब दे चुके थे, जिसके आधार पर उन्हें बरी  कर दिया गया था। हालाँकि आयोग की रिपोर्ट आने से पहले ही सावरकर का निधन हो चुका था।

(क्रमशः)

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