Saturday, February 27, 2021

हिंदुत्व और महात्मा गाँधीजी का रामराज्य (४०)

 (गतांक से आगे)

गाँधीजी के ग्राम स्वराज को समझना है तो संघ प्रचारक नानाजी शमुख के चित्रकुट प्रकल्प को देखिए

#मनोज_जोशी 

आज महामानव #नानाजी_देशमुख की पुण्यतिथि है। २००५ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अभा कार्यकारिणी मंडल की बैठक के कवरेज के "बहाने " से मैं चित्रकुट पहुँच गया था। वहाँ तीन दिन तक बैठक की खबरें करने के साथ नानाजी के काम को भी करीब से देखने का अवसर मिला। बैठक समाप्त होने के बाद नानाजी की पत्रकार वार्ता हुई । मेरे मन में तो कुछ और ही उमङ घुमङ रहा था। धूप लगने और और बैठने के लिए जगह न मिलने  का बहाना बनाया और नानाजी के चरणों में जाकर बैठ गया । जब नानाजी का निधन हुआ तो आज तक / स्टार ने वही क्लिपिंग दिखाई । मुझे लगा जैसे मैं धन्य हो गया ।

११ अक्टूबर १९१६ को महाराष्ट्र के परभणी के कडोली गाँव मे जन्मे नाना जी ने बचपन में ही माता पिता को खो दिया।  उनका लालन-पालन अपने मामा जी के यहाँ हुआ | संघ संस्थापक डा. हेडगेवार जी के संपर्क में आने के बाद उन्हे जैसे जीवन का लक्ष्य मिल गया | नानाजी एक ऐसे मनीषी थे जिन्होंने शिक्षा, राजनीति, संगठन और ग्राम विकास जैसे तमाम क्षेत्रों में एक साथ काम किया। 

१९४८ में गाँधीजी की हत्या के आरोप में संघ पर प्रतिबंध लगने पर नानाजी ने भूमिगत रहकर भी पाञ्चजन्य, युगधर्म और स्वदेश जैसे पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन जारी रखा। गाँधीजी की हत्या के मिथ्या आरोप का दंश झेलने के बावजूद संघ में  गाँधीजी के प्रति कोई दुर्भावना नहीं थी। इसका प्रमाण यह है कि नानाजी ने विनोबा भावे के भूदान आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। दूसरे गाँधीवादी जयप्रकाश नारायण से उनकी निकटता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक आंदोलन के दौरान पुलिस ने जैसे ही जयप्रकाश नारायण पर लाठी चलाई नानाजी बीच में आ गए और उस लाठी को अपने ऊपर झेल लिया। इस लाठीचार्ज से नानाजी के कंधे में फ्रेक्चर हो गया । नानाजी ने उप्र के गौंडा जिले में जिस जयाप्रभा गाँव का विकास किया। उसका नामकरण भी उन्होंने जयप्रकाश नारायण और उनकी पत्नी प्रभा देवी के नाम पर ही किया। नानाजी देशमुख ने पं दीनदयाल उपाध्याय के विचारों और कार्यों को मूर्तरूप देने के लिए दीनदयाल शोध संस्थान की स्थापना की। यह संस्थान आज भी उनके काम को आगे बढ़ा रहा है। पं दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद और गाँधीजी के हिंद स्वराज , हरिजन व अन्य पत्र पत्रिकाओं में व्यक्त विचारों को पढ़ेंगे तो दोनों में अंतर करना मुश्किल हो जाएगा । दोनों ही भारत की वास्तविक आंतरिक अध्यात्मिक शक्ति और धर्म परायणता का उपयोग कर समाज को शक्तिशाली बनाने की बात करते हैं । दोनों ही पश्चिम के भौतिकवादी विकास को गैर जरुरी मानते हैं ।  चित्रकूट में उन्होने देश के प्रथम ग्रामोदय विश्वविद्यालय की स्थापना की। इसका नामकरण महात्मा गाँधीजी के नाम पर रखा गया।

ग्रामीण भारत को आत्मनिर्भर बनाने को स्वप्न आँखों में संजोए नाना जी का देहावसान २७ फरवरी २०१०  को चित्रकूट में हुआ। 

दिल्ली की 'दधीचि देहदान समिति' को अपने देहदान सम्बन्धी शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करते हुए नानाजी ने कहा था- "मैंने जीवन भर संघ शाखा में प्रार्थना में बोला है 'पत्तवेष कायो नमस्ते नमस्ते।' अतः मृत्यु के बाद भी यह शरीर समाज के लिए उपयोग में आना उचित है। इस प्रकार उन्होंने मृत्यु के बाद अपनी पार्थिव देह मेडिकल छात्रों के अध्ययन के लिए समर्पित कर दी।


(क्रमशः)


यह श्रृंखला मेरे  फेसबुक और एक news website - www.newspuran.com पर भी उपलब्ध है।


 |

No comments:

Post a Comment