Thursday, July 16, 2020

भारत के छात्र एक बार फिर नारा लगाएं -लाल गुलामी छोङकर, बोलो वंदे मातरम !

भारत के छात्र एक बार फिर नारा लगाएं 

लाल गुलामी छोङकर, बोलो वंदे मातरम


विस्तारवादी चीन एक बार फिर भारत को आँखें दिखाने की कोशिश कर रहा है। १९६० के दशक में जब चीन और भारत का युद्ध हुआ तब भारत के कम्युनिस्ट चीन की गोदी में जाकर बैठ गए। उस समय अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने नारा दिया था। " लाल गुलामी छोड़ कर बोलो वंदे मातरम !  यह नारा इतना प्रसिद्ध हुआ कि आज भी परिषद के कार्यक्रमों और आंदोलन में सुनाई पङ जाता है। मौजूदा परिस्थितियों में एक बार फिर भारत के कम्युनिस्टों के खिलाफ एक और बङे आंदोलन की जरुरत है। यह कम्युनिस्ट संख्या में भले ही कम हैं लेकिन वैचारिक रूप से यह देश की राजनीति ही नहीं बल्कि सभी क्षेत्रों में हावी है। यह कम्युनिस्टों की गैंग ही भारत में चीनी सामान के बहिष्कार को सफल नहीं होने देना चाहती इसलिए सोशल मीडिया के जरिये कुतर्क करके भ्रम फैलाया जा रहा है।
आज भी विद्यार्थी परिषद ही वह संगठन है जो इसका जवाब  दे सकता है। कोई कह सकता है कि परिषद को तो केवल छात्रों के हित की बात करना चाहिए । लेकिन यह भी भ्रम है और इस भ्रम को भी परिषद ने ही तोड़ा है।
परिषद ने कहा - आज का छात्र आज का नागरिक है
अक्सर हमें कहा जाता है कि आज का छात्र कल का नागरिक है। लेकिन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने कहा कि छात्र कल का नहीं आज का नागरिक है। देश और समाज में आज होने वाले घटनाक्रम का छात्रों पर भी असर होता है। इसलिए उन्हें कल का नहीं आज का नागरिक मानना चाहिए । इसी आधार पर परिषद ने १९७० में माँग की कि मतदान का अधिकार की आयु २१ वर्ष से घटा कर १८ वर्ष की जाए। ठीक १८ वर्ष बाद १९८८ में यह माँग मान ली गई। आप सोच रहे होंगे कि मैं आज विद्यार्थी परिषद की बात क्यों कर रहा हूँ । वह इसलिए  क्योंकि आज ही के दिन ९ जुलाई १९४९ को विद्यार्थी परिषद की स्थापना हुई है। प्रो बलराज मधोक, प्रो बाल आप्टे और प्रो यशवंतराव केलकर आदि (कुछ नाम में भूल रहा हूँ ) ने मिलकर मुंबई में अभाविप की स्थापना की। ९ जुलाई १९४९ को औपचारिक रूप से पंजीयन हुआ इसलिए इस दिन को स्थापना दिवस माना जाता है।
... विद्यार्थी परिषद और मेरा रिश्ता
१९८८ में १२ वीं पास करने  के साथ कुछ ऐसा घटनाक्रम घटा कि मैं अनायास अभाविप से जुड़ गया। जैसे- जैसे संगठन को जानते गया मेरा जुङाव बढ़ता गया। मैं हमेशा ही कहता हूँ कि परिषद ने मुझे प्रेस नोट बनाना सिखाया । बाद में स्वदेशी जागरण मंच में मैंने यही काम किया नतीजा मैं पत्रकार बन गया। आज भी परिषद कार्यालय घर जैसा लगता है।
... मैं ऊपर कह रहा था कि आज का छात्र आज का नागरिक है। आजादी के आंदोलन में छात्रों और युवाओं का योगदान सर्वज्ञात है।
*गोवा मुक्ति आंदोलन और चीन युद्ध के समय विद्यार्थी परिषद ने सक्रिय भूमिका निभाई
*जनवरी १९७४ में विद्यार्थी परिषद ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल के खिलाफ आंदोलन किया और वहाँ पहली बार राष्ट्रपति शासन लगा।
*१९७४ में ही छात्रों ने जोरदार आंदोलन किया। उस समय के विद्यार्थी परिषद के नेता और अब वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय ने जयप्रकाश नारायण जी को इस आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए राजी कर लिया । आगे इमरजेंसी , इंदिरा गाँधी का तख्ता पलट आदि कहानी सब जानते हैं ।
*कश्मीर में आतंकवाद , *असम में बांग्लादेशी घुसपैठिए आदि समस्याओं को लेकर चलाए गए आंदोलन और अभियान इतिहास में दर्ज हैं । *पूर्वोत्तर राज्यों को शेष भारत से जोङे रखने के लिए परिषद का students exchange (सील) एक अनूठा प्रयोग है।
यह इतिहास इस बात का गवाह है कि विद्यार्थी परिषद ने जो काम हाथ में लिया उसे पूरा किया। मुझे नहीं पता परिषद के मौजूदा नेतृत्व की आगामी वर्ष की क्या योजना है, लेकिन पुराना (पूर्व नहीं ) कार्यकर्ता होने के नाते मेरी सलाह है कि स्वदेशी और आत्मनिर्भर भारत के कंसेप्ट को परिषद को अपने हाथ में लेना चाहिए और खास तौर से चीनी सामान के बहिष्कार का बङा आंदोलन चलाना चाहिए ।
#boycotchinaproducts

-#मनोज_जोशी

2 comments:

  1. लाल गुलामी छोड़ के बोलो वंदे मातरम

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