Wednesday, August 12, 2020

पुरानी गलतियाँ सुधार कर युवाओं के समग्र विकास का खाका है राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020

पुरानी गलतियाँ सुधार कर युवाओं के समग्र विकास का खाका है राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 


मनोज जोशी



पिछले महीने केन्द्र सरकार ने नई शिक्षा नीति घोषित कर दी। विद्यार्थी परिषद के कारण छात्र राजनीति मे सक्रिय रहने से शिक्षा क्षेत्र हमेशा ही पसंदीदा विषय है, लेकिन यह शिक्षा नीति ऐसे समय आई जब मेरा मन अयोध्या के राम जन्मभूमि मंदिर के शिलान्यास की तैयारियों में लगा हुआ था। 

शिक्षा नीति घोषित होते ही अपनी त्वरित प्रतिक्रिया में मैंने संस्कृत शिक्षा को बढ़ावा देने का स्वागत किया था। संस्कृत भविष्य की कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग की भाषा है। यदि हमने हमारी अगली पीढ़ी को संस्कृत नहीं सिखाई तो भविष्य हमारे हाथ से खिसक जाएगा । दूसरी बात मैंने शिक्षा व्यय को जीडीपी का ६ प्रतिशत किए जाने पर कहा था कि इसे १० प्रतिशत तक बढ़ाया जाना होगा। अभी तो यह केवल २ प्रतिशत है इसलिए ६ प्रतिशत का स्वागत स

रामजी के उत्सव के बाद पिछले दो - तीन दिन में शिक्षा नीति के अध्ययन में मेरी पहली पूर्ण  प्रतिक्रिया तो यही है कि नई शिक्षा नीति पुरानी गलतियाँ सुधार कर युवाओं के समग्र विकास का खाका है। 

स्कूली शिक्षा के साथ ही उच्च शिक्षा में भी समयानुकूल बदलाव किए गए हैं । छह साल तक शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों, विचारकों, शिक्षा क्षेत्र का वास्तविक नेतृत्व करने वालों, शिक्षा क्षेत्र में कार्यरत प्रशासकीय अधिकारियों और अन्य संबंधित पक्षों से सलाह मशविरा और चर्चा करके नीति को अंतिम रूप दिया गया है। संभवतः यही वजह है कि नीति में शिक्षा क्षेत्र में सुधार का एक व्यापक रूप दिखाई देता है, साथ ही देश के संघीय ढांचे और संविधान का ध्यान रखते हुए इसमें कोई भी बात थोपी नहीं गई है। स्थानीय और मातृ भाषा में शिक्षा की बात नीति में की गई है। इसे लेकर वामपंथी हल्ला मचा रहे हैं। पहली बात तो यह कि विश्व के अनेक संपन्न देशों में प्राथमिक शिक्षा तो क्या पूरी पढ़ाई ही मातृ भाषा में है। फिर भारत में क्यों नहीं ?  हमारे देश की सभी भाषाओं पर संस्कृत का प्रभाव है इसलिए हर भाषा अपने आप में परिपूर्ण है। यदि प्रयास किया जाए तो इन भाषाओं को शिक्षा का माध्यम बनाया जा सकता है। दूसरी बात यह कि मातृ भाषा में  पढ़ाई का विकल्प दिया गया है, यानी वह जरुरी नहीं है। संविधान की भावना का ध्यान रखते हुए  इसे राज्यों पर छोङा गया है। शिक्षा नीति में संगीत, कला, खेल, विज्ञान, कॉमर्स आदि विषयों को रुचि अनुसार पढ़ने के पर्याप्त  अवसर हैं। विद्यार्थी के व्यक्तित्व एवं कौशल विकास के साथ वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास का भी पर्याप्त अवसर इस शिक्षा नीति में नजर आ रहा है। निजी शैक्षणिक संस्थाओं की फीस पर नियंत्रण विद्यार्थियों के साथ अभिभावकों के लिए भी राहत की बात है।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के प्रमुख बिन्दुओं की बात करें तो स्कूली  शिक्षा के ढांचे में  परिवर्तन कर उसे 5+3+3+4 बना कर उसे व्यावसायिक शिक्षा के साथ जोड़ा गया  है।

Early Childhood Care and Education- ECCE  देश में 10 लाख आंगनबाड़ी केन्द्रों के माध्यम से  लगभग 7 करोड़ बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने में सहायक होगी।पढाई पूरी किए बिना मजबूरी में स्कूल छोड़ने की प्रवृत्ति पर रोक के लिए औपचारिक तथा अनौपचारिक रास्ते खोलने की नयी व्यवस्था इस शिक्षा नीति का एक महत्वपूर्ण बिंदु है जो देश में एक बङा परिवर्तन लाएगा। 

 छात्र के मूल्यांकन के तरीके में  होने वाले नए प्रयोग के अच्छे परिणाम की उम्मीद की जाना चाहिए ।

यदि उच्च शिक्षा की बात करें तो उच्च शिक्षा में भी कई परिवर्तनों की लंबे समय से जरुरत महसूस की जा रही थी।  स्नातक स्तर के चार वर्षीय पाठ्यक्रम में एक से अधिक प्रवेश-निर्गम बिन्दु दिए जा रहे हैं, नियामक संस्थाओं का विलय कर एक सशक्त नियामक संस्थान का गठन किया जाना भी एक  जरूरी बदलाव है ।

अब शिक्षा क्षेत्र से जुड़े  सभी व्यक्तियों और संगठनों  को शिक्षा नीति के क्रियान्वयन में अपनी भूमिका निभाना होगी।केन्द्र सरकार के साथ राज्य सरकारों के बेहतर समन्वय से ही देश शिक्षा क्षेत्र के नए लक्ष्यों को प्राप्त कर सकता है।


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