Sunday, August 2, 2020

रामलला ने तय किया है मंदिर निर्माण का मुहू

बेगि बिलंबु न करिअ नृप साजिअ सबुइ समाजु।
सुदिन सुमंगलु तबहिं जब रामु होहिं जुबराजु।।


- #मनोज_जोशी

भाद्रपद कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि अर्थात ग्रेगोरियन कैलेंडर की दिनांक ५ अगस्त को अयोध्या में दोपहर में भूमि पूजन प्रधानमंत्री के हाथों किया जाएगा। जो कभी मंदिर निर्माण में अङंगे लगा रहे थे आज मुहूर्त को लेकर विवाद कर रहे हैं । मैं सबसे पहले इन अङंगेबाजों का आभार व्यक्त करता हूँ  कि इनकी वजह से मैंने  ज्योतिष शास्त्र की कुछ पुस्तकों का अध्ययन किया। कुछ विद्वानों से चर्चा की और अनेक  ज्योतिषी के आलेखों का भी अध्ययन किया।

ताकि मैं समझ सकूं कि  रामकाज और मंदिर निर्माण के मुहूर्त को लेकर शास्त्र क्या कहते हैं  और परम्पराएं क्या हैं ? 

इस शुभ मुहूर्त में होगा भूमिपूजन 

राम मंदिर के भूमिपूजन का मुहूर्त १२ बजकर १५ मिनट १५ सेकेंड से १२ बजकर १५ मिनट ४७ सेकेंड तक है. यानी प्रधानमंत्री ३२ सेकंड में भूमि पूजन करेंगे। प्रधानमंत्री  के हाथों आधारशिला के रूप में ५ नक्षत्रों की परिचायक पांच रजत शिलाएं रखी जाएंगी। बताया जाता है की मुहूर्त की गणना में प्रधानमंत्री के पूर्ण नाम नरेन्द्र दामोदर दास मोदी और उनके पद आदि का भी ध्यान रखा गया है।

मैं अब अपनी बात शुरू करता हूँ ।

सबसे पहले श्रीरामचरितमानस की बात… ! 

श्रीरामचरितमानस के अयोध्या कांड के चौथे दोहे में कहा गया है, जब राजा दशरथ महर्षि वशिष्ठ से श्रीराम के राज्याभिषेक के लिए शुभ मुहूर्त बताने को कहा  तो महर्षि वशिष्ठ बोले

बेगि बिलंबु न करिअ नृप साजिअ सबुइ समाजु।

सुदिन सुमंगलु तबहिं जब रामु होहिं जुबराजु।।

अर्थात्- हे राजन! अब देर न कीजिए, शीघ्र सब सामान सजाइए। शुभ दिन और सुंदर मंगल तभी है, जब श्रीरामचंद्रजी युवराज हो जाएं। अर्थात् उनके राज्याभिषेक के लिए सभी दिन शुभ और मंगलमय हैं। 

इस हिसाब से देखें तो जिस दिन राम मंदिर निर्माण कार्य प्रारंभ होगा, वह दिन शुभ बन जाएगा। 

एक और बात

मुहूर्त पर विवाद ही बेमानी है, क्योंकि ये रामलला के मन्दिर का न तो नवनिर्माण है और ना ही इसमें विराजने वाले अधिष्ठाता मुख्य देवता की प्राणप्रतिष्ठा होनी है। ना ही नई जगह गर्भगृह बनना है और ना ही जगह नई है।  ये तो रामलला के मन्दिर का पुनर्निर्माण है। वही प्राणप्रतिष्ठित विग्रह है और वही गर्भगृह है। ऐसे में शुभ चौघड़िए में भूमिपूजन करने में कोई आपत्ति नहीं होना चाहिए । भाद्रपद माह को देवालय के जीर्णोद्धार में स्वीकार किया जाता है।

फिर भी पूछा जा सकता है मुहूर्त शुभ है या नहीं ! हिंदु समाज जीवंत समाज है। शास्त्रार्थ हमारी परम्परा है। इसलिए प्रश्न पूछना एक अधिकार है। लेकिन मंशा अङंगेबाजी की नहीं होना चाहिए।

सबसे पहले  जानिए - कैसे तय होता है मुहूर्त 

किसी भी शुभ कार्य का मुहूर्त तय करने के लिए पंचांग शुद्धि होना आवश्यक है। पंचांग अर्थात तिथि, वार, नक्षत्र, करण और योग।

अब जानिए ५ अगस्त को मुहूर्त क्यों और कैसे शुभ है 

ज्योतिष के विद्वानों से चर्चा करने पर जो बिंदु सामने आए हैं। वह इस प्रकार हैं 

१) मंदिर निर्माण कार्य प्रारंभ करने के लिए सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार और रविवार शुभ होते हैं। ५ अगस्त को बुधवार है, जो शुभ है।

२)  तिथि द्वितीया, तृतीया, पंचमी, सप्तमी, एकादशी, द्वादशी और त्रयोदशी शुभ होती हैं। ५अगस्त को द्वितिया तिथि है।

३) ग्रह गोचर में ५ अगस्त के दिन नवम भाव (भाग्य भाव) में मंगल मीन का रहेगा और सूर्य-बुध केंद्र स्थान में बैठकर कर्क राशि में रहेंगे। इससे केंद्र और त्रिकोण का नवम पंचम दृष्टि संबंध बन रहा है। मंगल का सूर्य-बुध से इस तरह का दृष्टि संबंध बनना धर्म की दृष्टि से अच्छा योग माना जाता है। ऐसे में किए गए धार्मिक कार्य शुभ परिणाम देने वाले होते हैं।

४)  मुहूर्त मंदिर के लिए नहीं होता, मुहूर्त वास्तु के लिए होता है। पुनः इस बात को दोहराया जाना उचित है कि   यह तो पहले से देवालय है, ऐसे में यह केवल जीर्णोद्धार है और जीर्णोद्धार में भाद्रपद का महीना स्वीकार किया  जाता है।

५) इस दिन शोभन योग है, जिसके स्वामी बृहस्पति होते हैं। बृहस्पति न्याय, धर्म, दर्शन, आध्यात्मिकता और धार्मिक कार्यों के प्रतिनिधि ग्रह हैं। इसलिए योग शुभ है।

६) देवशयनी एकादशी से देवोत्थान एकादशी के बीच विवाह, सगाई, मुंडन, गृह प्रवेश आदि पर रोक रहती है, लेकिन देवालय कार्य प्रारंभ और अन्य धार्मिक कार्यों पर कोई प्रतिबंध नहीं रहता है।

महत्वपूर्ण बात - मान सम्मान में होगी वृद्धि 

विद्वानों के अनुसार भूमिपूजन के  समय तुला लग्न राहु के नक्षत्र स्वाति में होगा। राहु उच्च राशि मिथुन में कुंडली के नवम भाव में होगा जिससे धर्म से संबंधित काम होने से मान सम्मान की बढ़ोतरी होगी। 

भव्य और सुंदर होगा मंदिर 

लग्न का स्वामी शुक्र भी राहु के साथ स्थित होगा जिससे यह पता लगता है कि यह मंदिर काफी भव्य बनेगा और सुंदर होगा। यहाँ होकर राहु शुक्र युति करके योगकारक बन गया है। 

यह मुहूर्त शत्रु हंता है

 एक और महत्वपूर्ण बात राहु मंगल के नक्षत्र धनिष्ठा में हैं जो छठे भाव में बैठकर शत्रु हन्ता बना हुआ है।

धार्मिकता बढेगी

धार्मिक कार्यों के अधिपति देव गुरु बृहस्पति धार्मिक ग्रह केतु के साथ धनु राशि में कुंडली के तीसरे भाव में बैठकर नवम भाव को पूर्ण दृष्टि से देखेंगे इससे धार्मिकता का प्रभाव भी बढेगा। 

अब पंचक की बात

कहा जा रहा है कि ५ अगस्त को पंचक है और मान्यता है कि पंचक में शुभ कार्य वर्जित है।

पहले समझें पंचक यानी क्या 

अपने परिपथ भ्रमण के काल में गोचरवश जब-जब चंद्रमा कुंभ और मीन राशियों में अथवा कहें कि धनिष्ठा नक्षत्र के उत्तरार्ध में, शतभिषा, पूर्वामाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और रेवती नक्षत्रों में होता है, तो इस काल को पंचक कहते हैं। 

यह है भ्रम

आम जनों में यह भ्रम और भय व्याप्त है कि इन नक्षत्रों में शुभ कर्म वर्जित होते हैं। यह मान्यता भी चली आ रही है कि पंचकों में कहीं से कोई सगे-सम्बन्धी की मृत्यु की सूचना मिलती है तो ऐसे में पांच दुःखद समाचार और भी सुनने को मिलते हैं। 

सबसे पहले तो इस भ्रम को दूर कर लें। सच्चाई यह है कि यह पांच नक्षत्र सदैव अहितकारी सिद्ध नहीं होते हैं। अनेक ज्योतिष ग्रथों और खास तौर से मुहूर्त चिन्तामणि और राज भार्तण्ड में पंचको के शुभ अशुभ विचार का विस्तार से  विवरण मिलता है।

मुहूर्त चिंतामणि में स्पष्ट लिखा है कि अति आावश्यक कार्यों के लिए पंचको में भी घनिष्ठा नक्षत्र का अंत, शतमिषा नक्षत्र का मध्य, भाद्रपद का प्रारम्भ और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के अन्त की पांच घड़िया कार्य के लिए चुनी जा सकती हैं। यदि गहनता से पंचकों के विषय में अध्ययन किया जाए तो पता चलता है  कि इनका निषेध केवल पांच कर्मों में ही किया जाता है और उनमें भी स्पष्ट रुप से आवश्यक कार्यों के लिए विकल्प भी दिए गए हैं । उदाहरण के लिए पंचको में शव दाह नहीं करते। कहा जाता है कि ऐसा करने से पाँच निकट  संबंधियों की मृत्यु होती है। लेकिन पंचक में  शव दाह के समय शास्त्रों में कुछ कर्म दिए गए हैं। यदि कुछ नहीं करना है तो आटे अथवा कुशा के पांच पुतले बनाकर शव के साथ संस्कार करने की परंपरा है।

कुल मिलाकर पंचक का अर्थ पूर्ण निषेध नहीं है।

विश्वास कीजिए स्वयं रामलला ही सब तय कर रहे हैं । हम में से कुछ कर्ता की भूमिका में हैं और ज्यादातर दर्शक की। 

इसी शरीर में इन्हीं नेत्रों से हम राम मंदिर निर्माण का सपना पूरा होते देख पा रहे हैं । इस लोक में इससे बङा सुख हो नहीं सकता ।

५ अगस्त २०२० का पंचांग

माह- भाद्रपद

पक्ष- कृष्ण

आयन- दक्षिणायन

तिथि- द्वितिया रात्रि १०.४९ बजे तक

वार- बुधवार

नक्षत्र- धनिष्ठा प्रात: ९.२९तक, पश्चात शतभिषा

योग- शोभन

करण- तैतिल

५ अगस्त की ग्रह गोचर स्थिति

सूर्य- कर्क

चंद्र- कुंभ

मंगल- मीन

बुध- कर्क

गुरु- धनु

शुक्र- मिथुन

शनि- मकर

राहु- मिथुन

केतु- धनु

- #मनोज_जोशी

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