Wednesday, August 5, 2020

अयोध्या का आंदोलन और राजीव गांधी

1989 के भूमिपूजन और 1986 में ताला खोलने के दावों की हकीकत क्या है ? 

(1) सोशल मीडिया पर दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की एक तस्वीर वायरल हो रही है। ब्लैक एंड वॉइट इस तस्वीर में राजीव गांधी के साथ कुछ लोग धार्मिक वेषभूषा में दिख रहे हैं। इस तस्वीर के साथ दावा किया जा रहा है कि ये तस्वीर राम मंदिर के 'उस भूमि पूजन की हैं जो 9 नवंबर, 1989 को हो चुका है।' सोशल मीडिया पर ये तस्वीर काफी तेजी से वायरल हो रही है।

फैक्ट चेकिंग में आइए जानते हैं कि आखिर सच क्या है? 
सोशल मीडिया पर वायरल एक पोस्ट में कहा गया 
" ये तस्वीरें हैं उस भूमिपूजन की जो 9 नवम्बर 1989 को हो चुका है। याने कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को, जिसे हम देवउठनी एकादशी कहते हैं। कोंग्रेस की सरकार ने भी उस समय तिथि का खयाल रखा था। तब के पण्डे आज की तरह ढोंगी नहीं थे। उन्हें सब बातों का खयाल था। माफ कीजिये सरकार, आप सिर्फ हिन्दुत्व का ढोंग करते हैं, सनातन वैदिक धर्म व उसकी परम्परा का चुटकी भर ज्ञान नहीं आपको।'

गूगल फैक्ट चेक में रिवर्स सर्च की मदद लीजिए तो आप पाएंगे  कि ये तस्वीर कई वेबसाइट्स के अलावा 'Wikimedia Commons ' पर भी उपलब्ध है। यहां फोटो के विवरण में लिखा गया है, 'भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी सोवियत के हरे कृष्णा सदस्यों से भगवद्गीता की प्रति प्राप्त करते हुए जो कि रूसी भाषा में है। नई दिल्ली 1989' इस फोटो का कॉपीराइट रूसी इस्कॉन के पास बताया गया है। ये तस्वीर इस्कॉन की ओर प्रकाशित एक किताब की कवर पर मौजूद कोलाज में भी है। इस किताब का नाम है, 'द कृष्णा कॉन्शसनेस मूवमेंट इन द USSR: ए हिस्टोरिकल आउटलाइन फ्रॉम 1971-89'

फिर सच क्या है ? 
यह सच है कि राजीव गांधी सरकार ने राम जन्मभूमि के पास 9 नवंबर, 1989 को "शिलान्यास" की अनुमति दी थी। और यह भूमिपूजन विश्व हिंदू परिषद का आयोजन था। लेकिन ध्यान से पढ़ें - "जन्मभूमि स्थल के पास"। जिस स्थान पर भूमिपूजन हुआ वह सिंहद्वार का भूमिपूजन हुआ । 

और माँग क्या थी
मंदिर "वहीं" बनाएंगे

यह वहीं कहाँ था अब बताने की जरूरत नहीं है।

जरा तार्किक बुद्धि से विचार कीजिए 
- यदि 1989 में भूमिपूजन हो गया था तो आंदोलन आगे क्यों चला ? 
- 1992 में ढाँचा ढहाने की नौबत क्यों आई ? 
- इस सबके साथ सोचिए 1989 के बाद 2014 तक दस वर्ष कांग्रेस समर्थित सरकार भी केन्द्र में रही फिर मंदिर निर्माण क्यों नहीं हुआ ? 

यानी कोई न कोई अङचन थी ! 
क्या थी विचार करेंगे तो सब ध्यान आ जाएगा ।

(2) एक और दावा 1986 में ताला राजीवजी ने खुलवाया 

इसका सच भी जान लीजिए ।

25 जनवरी 1986 को अयोध्या के वकील उमेश चंद्र पांडेय ने फैजाबाद के मुंसिफ (सदर) हरिशंकर द्विवेदी की अदालत में विवादास्पद ढांचे को रामजन्मभूमि मंदिर बताते हुए उसके दरवाजे पर लगे ताले को खोलने के लिए याचिका दाखिल की। यह कहते हुए कि रामजन्मभूमि पर पूजा-अर्चना करना उनका बुनियादी अधिकार है। मुंसिफ ने इस मामले में कोई आदेश पारित नहीं किया क्योंकि इस संदर्भ में मुख्य वाद इलाहाबाद हाईकोर्ट में विचाराधीन था।उन्होंने कहा कि मुख्यवाद के रिकार्ड के बिना वह आदेश पारित नहीं कर सकते। 
उमेश चंद्र पांडेय ने इसके खिलाफ 31 जनवरी 1986 को जिला एवं सत्र न्यायाधीश फैजाबाद की अदालत में अपील दायर की। उनकी दलील थी कि मंदिर में ताला लगाने का आदेश पूर्व में जिला प्रशासन ने दिया था, किसी अदालत ने नहीं। 
एक फरवरी 1986 को जिला एवं सत्र न्यायाधीश कृष्ण मोहन पांडेय ने उनकी अपील स्वीकार की। इस मामले में जज ने फैजाबाद के तत्कालीन जिलाधिकारी इंदु कुमार पांडेय और एसएसपी कर्मवीर सिंह को कोर्ट में तलब किया था। दोनों ने अदालत को बताया कि ताला खोलने से कानून व्यवस्था के बिगड़ने की आशंका नहीं है। जज ने इस मामले में बाबरी मस्जिद के मुख्य मुद्दई मोहम्मद हाशिम व एक अन्य पक्षकार के तर्कों को भी सुना।

राज्य सरकार ने जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत में वकील उमेश चंद्र पांडेय की याचिका का विरोध किया। यह कहते हुए कि रामजन्मभूमि के गेट पर लगे ताले को खोलने से कानून व्यवस्था भंग होने की आशंका है। न्यायाधीश ने सरकार की यह दलील ठुकराते हुए कहा कि रामजन्मभूमि पर ताला लगाने का कोई भी आदेश किसी भी अदालत में पूर्व में नहीं दिया है।
शाम 4.15 बजे उन्होंने ताला खोलने का आदेश दे दिया। इस आदेश में न्यायाधीश ने यह अनुमति भी दे दी थी कि दर्शन व पूजा के लिए लोग रामजन्मभूमि जा सकते है। न्यायाधीश के आदेश देने के बमुश्किल 40 मिनट बाद ही सिटी मजिस्ट्रेट फैजाबाद रामजन्मभूमि मंदिर पहुंचे और उन्होंने गेट पर लगे ताले खोल दिए।
केवल यह एक संयोग है कि 1986 में राजीवजी प्रधानमंत्री थे।

(फोटो - गूगल साभार)

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