Saturday, August 1, 2020

माता सीता की अग्नि परीक्षा की बात निराधार

रामायण का उत्तर कांड वाल्मीकि जी ने लिखा ही नहीं फिर माता सीता की अग्नि परीक्षा का आधार क्या ? - मनोज जोशी

माता सीता का प्राकट्य त्रेतायुग में वैशाख शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ था। ईस्वी सन के अनुसार यह सीता नवमी आज यानी 2 मई को थी। एक तरफ सीता नवमी पर माता सीता की पूजा और दूसरी तरफ टीवी पर आ रहे सिरीयल के कारण माता सीता की अग्नि परीक्षा से लेकर उनके धरती में समा जाने तक की चर्चा । आखिर सच्चाई क्या है ! भगवान राम को हम मर्यादा पुरुषोत्तम कहते हैं । सोचिए इस पदवी वाला व्यक्ति समाज के सामने ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करेगा और उसके बाद भी पूजा जाएगा ? यह तार्किक नहीं लगता। अब मैं आपसे कहूँ कि राम ने सीता-परित्याग कभी किया ही नहीं …
जिस उत्तर कांड में सीता परित्याग जैसी बातें दर्ज हैं वह वाल्मीकि जी ने लिखा ही नहीं । इसे बहुत बाद में जोड़ दिया गया।
रामकथा पर प्रामाणिक शोधकर्ता माने जाने वाले फ़ादर कामिल बुल्के का स्पष्ट मत है कि  उत्तरकांड बहुत बाद की प्रक्षिप्त रचना है। उत्तरकांड की भाषा, शैली और कथानक के वर्णन की गति युद्धकांड तक की रामायण से  एकदम अलग है। यही नहीं ब्रह्मांड पुराण, विष्णु पुराण, वायु पुराण, कूर्म पुराण, वाराह पुराण, लिंग पुराण, नारद पुराण,स्कंद पुराण, पद्म पुराण, हरिवंश पुराण, नरसिंह पुराण में भी रामकथा का वर्णन है, लेकिन इनमें कहीं भी
सीता-परित्याग  का कोई  उल्लेख तक नहीं किया गया है, रामायण का पूरा उत्तरकांड कल्पनिक है और वर्षों बाद मूल में जोड़ा गया। शास्त्र तो कहते हैं कि श्रीरामचन्द्रजी ने ग्यारह सहस्त्र वर्षों तक जनकनन्दिनी सीता एवं समस्त भ्राताओं के साथ राजनगरी अयोध्या से प्रजा-पालन करते हुए कौशल देश पर सुखपूर्वक राज किया था।

श्रीतुलसीपीठाधीश्वर स्वामी रामभद्राचार्य जी महाराज ने सीता निर्वासन पर एक पुस्तक की रचना की है -“सीता निर्वासन नहीं “। उनकी स्पष्ट मान्यता है “सीता जी के द्वितीय वनवास की कल्पना बिल्कुल निराधार है, अशास्त्रीय है । इस पुस्तक का अध्ययन कीजिए । स्वामी जी के प्रवचन यू ट्यूब पर उपलब्ध हैं उन्हें सुनिए । धर्म ग्रंथों पर उनके अध्ययन के आधार पर जब आप उनके तर्क पर गौर करेंगे तो आप भी मेरी तरह यही कहेंगे कि रामायण का उत्तर कांड वाल्मीकि जी ने लिखा ही नहीं ।

बोलिए - सियावर रामचंद्र जी की जय।
- #मनोज_जोशी

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