Tuesday, August 11, 2020

५००० वर्ष पहले स्त्रियों को अधिकार दिलाने वाले श्रीकृष्ण

००० वर्ष पहले स्त्रियों को अधिकार दिलाने वाले श्रीकृष्ण

-
मनोज जोशी

आज कृष्ण जन्माष्टमी है। यानी कृष्ण का जन्मोत्सव है।

३११२  ईसा पूर्व इस पृथ्वी पर आए श्रीकृष्ण एक राजनीतिक, आध्यात्मिक और योद्धा थे वे हर तरह की विद्याओं में पारंगत थे। श्रीकृष्ण ने धर्म, राजनीति, समाज के व्यावहारिक नीति-नियम बनाए। लेकिन  आप थोड़ी देर के लिए भूल जाइए कि कृष्ण कोई देवता या अवतार हैं । केवल उनके जीवन और कार्यों को सामान्य व्यक्ति की तरह देखिए। आप पाएंगे कि श्रीकृष्ण ने महिलाओं को उनका अधिकार दिलाने का अद्वितीय कार्य किया।

जेल में जन्म हुआ , जन्म होते ही जान पर संकट आ गया। फिर जिस माँ ने जन्म दिया वह छूट गई और पालने वाली माँ दूसरी ...! शायद इन विपरीत परिस्थितियों में लालन- पालन के कारण ही कृष्ण महिलाओं के अधिकार को लेकर बहुत संवेदनशील थे। गीता का ज्ञान समझना तो आम आदमी के बस की बाता नहीं लेकिन मुझे लगता है कि महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता और उनके अधिकारों के लिए की गई पहल के ही कारण श्रीकृष्ण  ५००० से अधिक वर्ष बाद भी प्रासंगिक बने हुए हैं ।


१६ हजार महिलाओं को मुक्त कराया 

श्रीकृष्ण इस पृथ्वी पर अब तक के सबसे बङे स्त्री संरक्षक हैं । कृष्ण की जिन 16 हजार पटरानियों का जिक्र किया  जाता है दरअसल वे सभी भौमासर जिसे नरकासुर भी कहते हैं के यहां बंधक बनाई गई महिलाएं थीं जिनको श्रीकृष्‍ण ने  मुक्त कराया था।  

यह अकेला उदाहरण नहीं है , बल्कि श्रीकृष्ण की छोटी बहन सुभद्रा के विवाह की भी कहानी भी एक बहन को उसकी पसंद का वर चुनने की आजादी की कहानी है।     कृष्ण के बड़े भाई बलराम (दाऊ) ने सुभद्रा का विवाह दुर्योधन से तय कर दिया। इस विवाह में अर्जुन भी द्रोपदी संग आए थे। विवाह के लिए जाते वक्त सुभद्रा और अर्जुन की मुलाकात हुई और यहीं उन्होंने एक-दूसरे से विवाह करने का मन बना लिया। यह बात अर्जुन ने कृष्ण को बताई। इस पर उन्होंने कहा कि बलराम भैया इसके लिए तैयार नहीं होंगे। कृष्ण ने अर्जुन से कहा तुम सुभद्रा का हरण कर लो। लेकिन रथ सुभद्रा से चलवाओ ताकि वे दाऊ से कह सकें अर्जुन ने सुभद्रा का नहीं बल्कि सुभद्रा ने अर्जुन का हरण किया है क्योंकि वह अर्जुन को पसंद करती है। 

रुक्मिणी और कृष्ण के विवाह की कहानी भी महिला सम्मान की ही कहानी है । देवी रुक्मिणी विदर्भ के राजा भीष्मक की पुत्री थी। उनका पूरा बचपन श्रीकृष्ण की साहस और वीरता की कहानियां सुनते हुए बीता था। लेकिन इनके पिता और भाई का संबंध जरासंध, कंस और शिशुपाल से था। इस वजह से वे वे श्रीकृष्ण से रुक्मिणी का विवाह नहीं करवाना चाहते थे।  जब रुक्मिणी का विवाह शिशुपाल से तय कर दिया गया तो उन्होंने पत्र लिखकर अपनी सहेली सुनन्दा के हाथ श्रीकृष्ण के पास भेज दिया। पत्र पढ़कर श्रीकृष्‍ण को समझ आया कि रुक्मिणीजी संकट में हैं। शिशुपाल बारात लेकर रुक्मिणीजी के द्वार आए और श्रीकृष्‍ण ने अपने भाई बलराम की मदद से रुक्मिणीजी का अपहरण कर लिया।



1 comment:

  1. जय हो मनोज़ भाई...आशीष चौबे

    ReplyDelete