Friday, March 19, 2021

हिंदुत्व और महात्मा गांधी जी का रामराज्य (४३)

 (गतांक से आगे)

लौटते हैं श्रृंखला के मूल विषय पर ...

पिछले ७ महीनों से जारी श्रृंखला में पिछले कई कड़ियों में हम संघ और महात्मा गांधी के रिश्तो पर चर्चा कर रहे हैं। अब हम मूल विषय पर लौटना शुरू करते हैं। पिछली कड़ियों में जो कुछ मैं लिख रहा था उसका कुल मिलाकर के उद्देश्य था कि हम समझ सके कि संघ और महात्मा गांधी के बीच कुछ मुद्दों पर वैचारिक अंतर के बावजूद दोनों में कोई मनभेद नहीं था। यदि आप डॉ हेडगेवार से लेकर वर्तमान सरसंघचालक डॉक्टर मोहन भागवत की कार्यशैली को देखेंगे तो उसमें गांधीजी के विचारों की छाप स्पष्ट नजर आएगी। 

डॉक्टर हेडगेवार और गुरुजी के बारे में तो काफी चर्चा हो चुकी है। तृतीय सरसंघचालक बाला साहब देवरस का यह कथन कि "अगर अस्पृश्यता पाप नहीं है तो दुनिया में कुछ भी पाप नहीं है" को गांधीवादी लोग इस तरह से भी ले सकते हैं कि बाला साहब ने गांधी जी की बात को ही आगे बढ़ाया। चतुर्थ सरसंघचालक रज्जू भैया की जीवनी को पढ़ने पर पता लगता है कि वे भी गांधीजी की आत्मकथा "सत्य के साथ मेरे प्रयोग से" प्रभावित थे। रज्जू भैया के कार्यकाल में ही स्वदेशी जागरण मंच का गठन हुआ और संघ ने स्वदेशी पर जोर देने वाला व्यापक अभियान चालू किया। स्वदेशी जागरण मंच अपने कार्यक्रमों में महात्मा गांधी की तस्वीर भी लगाता है। यह बात इसलिए और महत्वपूर्ण है क्योंकि संघ के कार्यक्रमों में डॉक्टर हेडगेवार और गुरु जी के अलावा किसी की भी तस्वीर नहीं लगाई जाती। पंचम सरसंघचालक कुप सी सुदर्शन तो गांधी जी की तरह ग्राम स्वराज और हिंदी राष्ट्रभाषा आदि के हिमायती थे। उनकी प्रेरणा से मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का गठन एक बड़ी घटना है। 

(क्रमशः)

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