Thursday, March 25, 2021

हिंदुत्व और महात्मा गांधी जी का राम राज्य (४७)

(गतांक से आगे)

धर्म यानी रिलीजन क्यों नहीं जानिए विस्तार से

#मनोज जोशी

अब इस श्रृंखला में हम धर्म और हिंदुत्व जैसे शब्दों की व्याख्या पर चर्चा करेंगे। धर्म और हिंदुत्व यह दो ऐसे शब्द हैं जिनकी गलत व्याख्या के कारण वैचारिक रूप से बहुत गड़बड़ हो गई है। कम्युनिस्ट हमें उनके चश्मे से भारत की संस्कृति और इतिहास दिखा रहे हैं। 

शुरुआत धर्म से करते हैं। धर्म शब्द का अर्थ क्या है? धर्म यह शब्द संस्कृत से आया है। धर्म को परिभाषित करते हुए लिखा गया है- धारयति इति धर्म: । यानी जो धारण करने योग्य है, वही धर्म है। अब धारण करने योग्य क्या है ? कहा गया है कि सत्य, क्षमा, विद्या, दया और दान धारण करने योग्य है। महाभारत वन पर्व ३३.५३ में लिखा है - "उदार मेव विद्वांसो धर्म प्राहुर्मनीषिण: ।" अर्थात मनीषीजन उदारता को ही धर्म कहते हैं। इसके आगे महाभारत वन पर्व २०८.१ में धर्म के बारे में कहां गया है - ,,,'स्वकर्मनिरतः यस्तु धर्म: स इति निश्चय: ।' अर्थात "अपने कर्म में लगे रहना निश्चय ही धर्म है।" 

महाभारत शांति पर्व १५.२ के अनुसार "दण्डं धर्म विदुर्भा: ।" अर्थात "ज्ञानी जन दण्ड को धर्म मानते हैं‌।" महाभारत शांति पर्व में आगे १६२.५ में कहा गया है - "सत्यं धर्मस्तपो योग:।" यानी सत्य ही धर्म है, सत्य ही तप है और सत्य ही योग है। अब यदि महात्मा गाँधी कहते थे कि सत्य ही धर्म है तो वे महाभारत में बताई धर्म की इसी परिभाषा की ही तो बात कर रहे हैं। महाभारत शांति पर्व में आगे २५९.१८ में कहा गया है - "दातव्यमित्ययं धर्म उक्तो भूतहिते रतै:।" यानी सभी प्राणियों के हित में लगे रहने वाले मनुष्यों ने दान को धर्म बताया है।

दूरदर्शन पर दोबारा प्रसारित हुए महाभारत सीरियल में से और कुछ याद हो या नहीं लेकिन टाइटल सॉन्ग के रूप में यह श्लोक -

 यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ।।

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ।। 

सभी की जुबान पर चढ़ गया था। इस श्लोक का अर्थ क्या है - 

यह श्लोक गीता के अध्याय 4 का श्लोक 7 और 8 है। जब अर्जुन ने कुरूक्षेत्र में युद्ध करने से मना कर दिया था। तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन से यह कहा। इसका हिंदी अनुवाद करें तो श्रीकृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं- मै प्रकट होता हूं, मैं आता हूं, जब जब धर्म की हानि होती है, तब तब मैं आता हूं, जब जब अधर्म बढता है तब तब मैं आता हूं, सज्जन लोगों की रक्षा के लिए मै आता हूं, दुष्टों के विनाश करने के लिए मैं आता हूं, धर्म की स्थापना के लिए में आता हूं और युग युग में जन्म लेता हूं।

इसके माध्यम से यहां मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहता हूं कि महाभारत काल में तो किसी रिलीजन की हानि होने का सवाल ही नहीं था। चाहे कौरव हो या पांडव एक ही तरह की पूजा पद्धति और एक ही देवता को मानने वाले थे। उस समय तो धरती पर न इस्लाम था और ना क्रिश्चियन धर्म का उदय हुआ था। जैन,बौद्ध और सिख सहित अन्य पंथ का उदय भी महाभारत काल के बाद का है।

यानी श्रीकृष्ण जिस धर्म की स्थापना की बात कर रहे हैं वह कोई रिलीजन नहीं है।

अंत में मनुस्मृति में धर्म की परिभाषा पर भी चर्चा कर लें। मनुस्मृति में कहा गया है -


धृति: क्षमा दमोअस्तेयं शोचं इन्द्रिय निग्रह:

धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणं ६/९

अर्थात धैर्य,क्षमा, मन को प्राकृतिक प्रलोभनों में फँसने से रोकना, चोरी त्याग, शौच, इन्द्रिय निग्रह, बुद्धि अथवा ज्ञान, विद्या, सत्य और अक्रोध धर्म के दस लक्षण हैं।

मनु स्मृति में यह भी कहा गया है 

आचार:परमो धर्म १/१०८

अर्थात सदाचार परम धर्म है।

कुल मिलाकर यह स्पष्ट है कि भारत में जिस संदर्भ में धर्म शब्द का उपयोग होता है उसका पूजा पद्धति से कोई लेना देना नहीं है। पश्चिम और वामपंथी विचारकों के प्रभाव में गड़बड़ होने से शब्द और उनके अर्थ बदल गए जिससे कई परेशानी खड़ी की हैं। जिस तरह से धर्म शब्द का अर्थ बदल कर अनर्थ किया गया है वही हाल हिंदुत्व का है। अगली पोस्ट में हिंदुत्व की परिभाषा पर चर्चा करेंगे।

(क्रमशः)

यह पोस्ट मेरे फेसबुक और ब्लॉग www.mankaoj.blogspot.com के साथ न्यूज़ वेबसाइट www.newspuran.com पर उपलब्ध है।


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