Monday, September 7, 2020

हिंदुत्व और गाँधीजी का रामराज्य (1)

 हिंदुत्व और गाँधीजी का रामराज्य (1)

देश में पिछले छह साल से संघ प्रचारक रहे नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री हैं । राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री अन्य महत्वपूर्ण पदों पर स्वयंसेवकों के पहुंचने से संघ की कार्यप्रणाली चर्चा का विषय है। जब संघ की चर्चा होती है तो बात हिंदुत्व पर आ जाती है। फिर कह दिया जाता है कि संघ तो गाँधीजी का विरोधी संगठन है। सांप्रदायिकता का ठप्पा लगाया जाता है।

लेकिन दूसरी तरफ देखें तो पता चलता है संघ की शाखाओं में रोजाना सुबह गाँधीजी का नाम श्रृद्धा से लिया जाता है। नरेन्द्र मोदी सरकार ने अपने फ्लैगशिप प्रोग्राम स्वच्छता अभियान में गाँधीजी को ही  प्रेरणा का स्रोत माना है। संघ यदि हिंदुत्व और हिंदु राष्ट्र की बात करता है तो गाँधीजी भी तो राम राज्य की बात करते थे।

मैं हिंदुत्व और गाँधीजी के राम राज्य को समझने का प्रयास कर रहा हूँ ।

बात यदि हिंदुत्व से शुरू करें तो हिंदुत्व शब्द की व्याख्या करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डा. मोहनराव भागवत कहते हैं कि हिंदुस्तान में रहने वाला हर नागरिक उसी तरह हिंदु कहलाएगा, जैसे अमेरिका में रहनेवाला हर नागरिक अमेरिकी कहलाता है, उसका पंथ चाहे जो हो। उच्चतम न्यायालय भी हिंदुत्व को पंथ मानने से इनकार कर चुका है। (कुछ माह पूर्व मैं इस पर विस्तार से लिख चुका हूँ और आगे भी विस्तार से चर्चा होगी)। स्पष्ट है कि हिंदु राष्ट्र का अर्थ हुआ  हिंदु संस्कृति को स्वीकार करने वाली इकाई । राष्ट्र और देश की अवधारणा को भी बाद में स्पष्ट करुंगा ।

अब सवाल है कि गाँधीजी के रामराज्य की अवधारणा  क्या है ? 

दांडी मार्च के दौरान  20 मार्च, 1930 को हिन्दी पत्रिका ‘नवजीवन’ में ‘स्वराज्य और रामराज्य’ शीर्षक से एक लेख में गांधीजी ने कहा था- ‘स्वराज्य के कितने ही अर्थ क्यों न किए जाएं, तो भी मेरे नजदीक तो उसका त्रिकाल सत्य एक ही अर्थ है, और वह है रामराज्य. यदि किसी को रामराज्य शब्द बुरा लगे तो मैं उसे धर्मराज्य कहूंगा. रामराज्य शब्द का भावार्थ यह है कि उसमें गरीबों की संपूर्ण रक्षा होगी, सब कार्य धर्मपूर्वक किए जाएंगे और लोकमत का हमेशा आदर किया जाएगा. ...सच्चा चिंतन तो वही है जिसमें रामराज्य के लिए योग्य साधन का ही उपयोग किया गया हो. यह याद रहे कि रामराज्य स्थापित करने के लिए हमें पाण्डित्य की कोई आवश्यकता नहीं है. जिस गुण की आवश्यकता है, वह तो सभी वर्गों के लोगों- स्त्री, पुरुष, बालक और बूढ़ों- तथा सभी धर्मों (पंथों) के लोगों में आज भी मौजूद है. दुःख मात्र इतना ही है कि सब कोई अभी उस हस्ती को पहचानते ही नहीं हैं. सत्य, अहिंसा, मर्यादा-पालन, वीरता, क्षमा, धैर्य आदि गुणों का हममें से हरेक व्यक्ति यदि वह चाहे तो क्या आज ही परिचय नहीं दे सकता?’

गाँधीजी के राम राज्य और धर्म राज्य को समझने के लिए हमें धर्म और राम को समझना होगा।


(क्रमशः )

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