Thursday, September 10, 2020

हिंदुत्व और गाँधीजी का राम राज्य (३)

  हिंदुत्व और गाँधीजी का राम राज्य (३)

(गतांक से आगे)


हिंदू धर्म को लेकर विभिन्न अवसरों पर गॉंधीजी के आलेख और भाषण आदि का अध्ययन करने पर एक बात साफ हो जाती है कि गॉंधीजी हिंदू धर्म की वर्णाश्रम व्यवस्था में विश्वास करते थे, लेकिन जातिवाद और छुआछूत के विरोधी थे। गाँधीजी जी हिन्दू धर्म में हजारों सालों से व्याप्त कुरीतियों से लड़ भी रहे थे। गॉंधी जी ने  ‘यंग इंडिया’ में अप्रैल,1925 में लिखा - ‘मंदिरों, कुंओं और स्कूलों में जाने और इस्तेमाल करने पर जाति के आधार किसी भी तरह की रोक गलत है। उन्होंने 7 नवंबर, 1933 से 2 अगस्त, 1934 के बीच छूआछूत खत्म करने के लिए देशभर की यात्रा की थी।  इसे ‘गाँधीजी का ‘हरिजन दौरा’ के नाम से भी जाना जाता है। साढ़े 12 बजे हजार मील की उस यात्रा में गाँधीजी ने छूआछूत के खिलाफ जन-जागृति पैदा की थी। एक तथ्य यह भी है कि गाँधीजी बिड़ला मंदिर के उद्घाटन के लिए भी तभी राजी हुए थे जब उन्हें भरोसा दिलाया गया कि इस मंदिर में दलितों (गाँधीजी जिस शब्द का इस्तेमाल करते थे वह अब असंसदीय करार दिया गया है) के प्रवेश पर रोक नहीं होगी। उस समय मंदिर में दलितों का प्रवेश एक बड़ा मुद्दा था। 


महात्मा गाँधी की सोच धर्म आधारित समाज रचना को देखने की थी। वे भारत की इस वास्तविक शक्ति को पहचानते थे। वे कहते थे ‘मुझे धर्म प्यारा है, इसलिए मुझे पहला दु:ख तो यह है कि हिंदुस्तान धर्म भ्रष्ट होता जा रहा है। धर्म का अर्थ मैं हिंदू, मुस्लिम या जरथोस्ती धर्म नहीं करता। लेकिन इन सब धर्मों के अंदर जो धर्म है, वह हिंदुस्तान से जा रहा है, हम ईश्वर से विमुख होते जा रहे हैं।’

धर्मों के अंदर धर्म की व्याख्या करने के लिए हमें धर्म को समझना पड़ेगा। धर्म की भारतीय धारणा पर अगली कड़ियों में चर्चा होगी तो बात और स्पष्ट होगी। इसको समझने पर ही हिंदुत्व की अवधारणा और गॉंधीजी का राम राज्य में अंतर या समानता पर कोई राय कायम की जा सकती है। 

आज की श्रृंखला मैं विनोबा भावे द्वारा गाँधीजी को दी गई श्रृद्धांजलि से करना चाहता हूं। विनोबा जी से असहमत होना मेरे जैसे व्यक्ति के लिए असंभव है।

30 जनवरी 1948 को गॉंधीजी की हत्या के बाद उनका अंतिम संस्कार अगले दिन यानी 31 जनवरी 1948 को हुआ। उस दिन विनोबा भावे ने गाँधीजी को श्रृदधा सुमन अर्पित करते हुए गाँधीजी की हत्या की तुलना 5000 वर्ष पूर्व भगवान श्रीकृष्ण के देह त्याग के लिए अज्ञानतावश एक शिकारी द्वारा तीर चलाने के प्रसंग से की। विनोबा जी कहते हैं ‘दुनिया में आज हिंदू धर्म का नाम यदि किसी ने उज्जवल रखा है तो वह गाँधीजी ने ही रखा है।’ विनोबाजी के अनुसार ‘उन्होंने (गाँधीजी ने) खुद ही कहा था कि हिंदू धर्म की रक्षा करने के लिए किसी मुनष्य को नियुक्त करने की जरूरत यदि भगवान को महसूस हुई तो वह मुझे ही नियुक्त करेगा।’

(क्रमश:)

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