Monday, September 28, 2020

हिंदुत्व और गाँधीजी का राम राज्य (१४)

(गतांक से आगे)

हिंदुत्व से लिए महात्मा गाँधी ने 11 व्रत

आम तौर पर हम महात्मा गाँधी को केवल अहिंसा के पुजारी के रूप में ही याद करते हैं। कुछ अधिक बोलने की बारी आती है तो सत्य और अहिंसा कह कर अपने आपको धन्य मान लेते हैं। या कुछ लोग गाँधीजी के तीन बंदर बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत बोलो की बात करते हैं। लेकिन गाँधीजी का दर्शन केवल इतना ही भर नहीं था।

मैंने अपने अध्ययन में जो समझा उससे लगता है कि गाँधीजी की पूरी राजनीति भारत की अध्यात्मिक चेतना का सार्वजनिक जीवन में उपयोग का उदाहरण है। आप विचार कीजिए, आश्रम में रहने के लिए उन्होंने 11 व्रत तय किए थे, वह उन्होंने कहां से लिए थे? फेसबुक जैसे माध्यम पर इन 11 व्रत को विस्तार से लिखने के लिए शायद 11 पोस्ट भी कम पढ़ जाएं और मैं अपने मूल विषय से भटक ही जाऊं। केवल उनको एक-एक लाइन में परिभाषित करने का प्रयास कर रहा हूँ।

1) अहिंसा – किसी के प्रति बुरे विचार लाना और क्रोध करना भी हिंसा है

2) सत्य – सत्य ही परमेश्वर है

3) अस्तेय – अपनी जरूरत से अधिक लेना भी एक प्रकार का अस्तेय (चोरी) है

4) ब्रह्मचर्य – ब्रह्म की खोज का आचरण ही ब्रह्मचर्य है

5) अपरिग्रह – जिस वस्तु की जरूरत न हो उसका संग्रह न करना

6) शरीर – श्रम: - जो श्रम नहीं करता उसे भोजन करने का अधिकार नहीं है

7) अस्वाद – खान- पान पर संयम

8) अभय – भय से मुक्ति

9) सर्व- धर्म समभाव- सभी पूजा पद्धतियों का सम्मान

10) स्वदेशी – अपने आसपास के लोगों की सेवा का भाव ही स्वदेशी का मूल भाव है। स्वदेशी और स्थानीय वस्तुओं का उपयोग उसका केवल प्रतीक मात्र है

11) स्पर्श भावना – छुआछूत का भेद नहीं रखना
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उनका प्रिय भजन- ‘वैष्णव जन तो तेने कहिए, जो पीड़ पराई जाने रे… आश्रम में गाँधीजी के जीवन के बारे में पढ़ने पर पता लगता है कि उन्होंने इस भजन को पूरी तरह आत्मसात कर लिया था। हर छोटे से छोटे व्यक्ति की परेशानी का वे ध्यान रखते थे और उसे स्वयं ही हल करते थे। गौ शाला में रहने वाले् बालक के लिए उन्होंने बा की पुरानी साड़ियों से गद्दा बनाया था। ऐसे और भी किस्से पढ़ने को मिल जाते हैं। मुझे तो इनको पढ़ कर यही लगता है कि महात्मा गाँधी ने भारत की आजादी की लड़ाई के लिए भारतीय यानी हिंदू संस्कृति के ज्ञान का उपयोग किया। गाँधीजी की अहिंसा भयग्रस्त नहीं बल्कि भय से मुक्ति की अहिंसा थी। गाँधीजी ने अनेक अवसरों पर यह उल्लेख किया कि वे स्वयं हिंदू हैं। हिंदू धर्म की परंपराओं में उनका वि‌श्वास है। हिंदू धर्म किसी एक ईश्वर या किसी एक पूजा पद्धति को नहीं मानता। यही वजह है कि हिंदू सर्व धर्म समभाव में भरोसा करता है। पूर्व की एक कड़ी में यह भी स्पष्ट हो चुका है कि गाँधीजी धर्मांतरण के विरोधी थे।

(क्रमश:)





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