Thursday, September 24, 2020

हिंदुत्व और गॉंधीजी का राम राज्य (११)

 (गतांक से आगे)

मेरे लिए बिना धर्म के कोई राजनीति नहीं है : महात्मा गाँधी


‘मेरे लिए बिना धर्म के कोई राजनीति नहीं है, पाखण्ड और अंध विश्वास धर्म नहीं होता। धर्म वह है जो बुराई से लड़ता और घृणा करता है। लेकिन सहनशीलता ही सार्वभौम धर्म है। बिना नैतिकता के राजनीति एक त्याज्य वस्तु है।’ 

महात्मा गाँंधी के यह शब्द धर्म, राजनीति और राजनीति में धर्म का महत्व तीनों को एक साथ स्पष्ट कर देते हैं। गाँधीजी की हर सभा की शुरुआत प्रार्थना से होती थी। वे मानते थे कि प्रार्थना ही शांति व्यवस्था और लोगों में विश्वास जगा सकती है।’

धर्म और राजनीति के संबंध में गाँधीजी द्वारा लिखे गए लेख और विभिन्न महापुरुषों के साथ उनकी हुई चर्चा के अंश आदि पढ़ने पर मन में विचार आता है कि  जब महात्मा गाँधी धर्म आधारित राजनीति करते थे, फिर यह देश धर्म निरपेक्ष कैसे हो गया?  यह गॉंधीजी ही हैं जिन्होंने अपने दक्षिण अफ्रीकी सहयोगी पोलक से एक बार कहा कि ‘ बहुत से धार्मिक मनुष्य जिनसे मैं मिला हूं, भेष बदले हुए राजनीतिज्ञ हैं, लेकिन मैं तो राजनीतिज्ञ का जामा पहने हूँ, ह्रदय से एक धार्मिक व्यक्ति हूँ।’ गाँधीजी के विचारों को पढ़ने पर महसूस होता है कि उन्होंने अपने राजनीतिक गुरु गोपालकृष्ण गोखले की तरह राजनीति के अध्यात्मिकरण की कोशिश की।  लेकिन बाद में उनके नाम पर देश को भ्रमित करने वालों का गिरोह इकट्‌ठा हो गया।

30 नवंबर 1940 को नवजीवन में गाँधीजी बहुत स्पष्ट शब्दों में लिखते हैं - ‘मैं देश की आंखों में धूल न झोंकूंगा। मेरे नजदीक धर्म विहीन राजनीति कोई चीज नहीं है। धर्म के मानी वहमों और गतानुगतिकत्व का धर्म नहीं, द्वेष करने वाला और लड़ने वाला धर्म नहीं, बल्कि विश्वव्यापी सहिष्णुता का धर्म, नीतिशून्य राजनीति सर्वथा त्याज्य है।’ उन्होंने यह भी कहा -‘मेरे लिए धर्म से विरहित कोई राजनीति नहीं है। नैतिकता विहीन राजनीति से बचना चाहिए।’ यह भी गाँधी जी के ही शब्द हैं - ‘ मेरे लिए धर्म से पृथक कोई राजनीति नहीं है, राजनीति धर्म की अनुगामिनी है। धर्म से शू्न्य राजनीति मृत्यु का एक जाल है। क्योंकि उससे आत्मा का हनन होता है।’

उन्होंने कहा ‘यदि मैं आज राजनीति में हिस्सा लेता हुआ दिखाई पड़ता हूं तो इसका एकमात्र कारण यही है कि राजनीति हमें वर्तमान समय में सांप की तरह चारों ओर से लपेटे हुए है। जिसके चंगुल से हम कितनी ही कोशिश क्योंं न करें, नहीं निकल सकते। मैं उस सॉंप से द्वंद्व युद्ध करना चाहता हूं, इसलिए मैं राजनीति में धर्म को लाना चाहता हूँ।’

उन्होंने अनेक अवसरों पर यह कहा कि सिद्धांतहीन राजनीति मौत के फंदे के समान है, जो राष्ट्र की आत्मा को ही मार डालती है। वे कहा करते थे कि मेरे अंदर के राजनेता को मैं कभी भी अपने निर्णयों पर हावी होने का मौका नहीं देता हूँ । यदि मैं राजनीति में भाग लेता नजर आ रहा हूं तो सिर्फ इसलिए, क्योंकि आज राजनीति ने सांप की कुंडली की तरह हमें जकड़ लिया है, जिससे कोई कितनी भी कोशिश कर ले, बचकर नहीं निकल सकता। इसीलिए मैं इस सांप से लड़ना चाहता हूं। उन्होंने यह भी महसूस किया कि इस सांप से लड़ने का सबसे अच्छा तरीका है वास्तविक धर्म के उच्च आदर्शो को विकसित करना।  जो लोग यह कहते हैं कि धर्म का राजनीति से कुछ लेना-देना नहीं है वे यही नहीं जानते हैं कि धर्म का असली अर्थ क्या है?

(क्रमश:)

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