Tuesday, September 15, 2020

हिंदुत्व और गाँधीजी का राम राज्य (८)

 महात्मा गाँधी भगवद्गीता को अपनी माँ मानते थे

(गतांक से आगे)


हिंदुत्व की बात हो और गौ, गीता और गंगा की बात न हो तो बात अधूरी है। शुरुआत भगवद्गीता से करते हैं ।महात्मा गाँधी ने भगवद्गीता का न केवल अध्ययन किया बल्कि अपने जीवन में उसे उतारा भी। वे विद्यार्थियों को भी गीताजी के अध्ययन के लिए कहते थे। अपनी आत्म कथा - "सत्य के साथ मेरे प्रयोग" में गाँधीजी ने जिक्र किया है कि विलायत में रहते हुए उनकी भेंट दो थियोसफिस्ट भाइयों से हुई जो गीता का अंग्रेजी अनुवाद पढ़ रहे थे। दोनों भाइयों ने उन्हें संस्कृत में गीताजी पढ़ने  को कहा। गाँधीजी लिखते हैं कि उन्हें आत्म ग्लानि हुई क्योंकि वे तो संस्कृत नहीं जानते थे। लेकिन गाँधीजी ने दोनों से कहा कि वे केवल सामान्य रूप से बता सकेंगे कि अर्थ गलत तो नहीं हो रहा।

इसी दौड़ गीताजी के कुछ  श्लोक का गाँधीजी पर ऐसा असर हुआ कि उन्होंने न केवल कई बार गीता का अध्ययन किया बल्कि अनेक अवसरों पर लिखा भी। 

गाँधीजी का मानना था कि जो व्यक्ति गीता का भक्त होता है वह निराश नहीं हो सकता है। वे लिखते हैं "मुझे जन्म देने वाली माता तो चली गई, लेकिन मैं संकट के समय  गीता माता के पास जाना मैं सीख गया हूँ ।"

गाँधीजी लिखते हैं कि हमें यह समझ कर गीता पढ़नी चाहिए कि हमारी देह में अंतर्यामी श्रीकृष्ण भगवान आज विराजमान हैं और अब जिज्ञासु अर्जुन रूप होकर धर्म संकट में अंतर्यामी भगवान से पूछेगा , उसकी शरण लेगा तो उस समय वह हमें शरण देने को तैयार मिलेंगे ।"

गीताजी पर महात्मा गाँधीजी के लेखों और वक्तव्य को पढ़ने के बाद यह भी स्पष्ट होता है कि सत्य और अहिंसा उन्होंने भगवद्गीता से ही ग्रहण किया था।

(क्रमशः)

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