Friday, October 2, 2020

हिंदुत्व और गाँधीजी का रामराज्य (१५)

 हिंदुत्व और गाँधीजी का


रामराज्य (१५)


(गतांक से आगे)


आज महात्मा गाँधीजी की जयंती है। आज के वातावरण में  गाँधीजी को श्रृद्धांजलि अर्पित करते हुए एक विशेष प्रसंग का उल्लेख करना चाहता हूँ । सामान्य रूप से इसका उल्लेख संभवतः किसी अगली कङी में करता, लेकिन हाल ही में बाबरी ढाँचा ढहाने के सभी आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दोषमुक्त किए जाने से सोशल मीडिया पर बनाए जा रहे माहौल के कारण इसका उल्लेख आज जरुरी हो गया है।


२० फरवरी १९२१ को महात्मा गाँधी ने किए थे रामलला के दर्शन

अक्सर यह कहा जाता है कि १९४९ में किसी व्यक्ति ने चुपचाप विवादित स्थल पर रामलला की प्रतिमा रख दी और उसके बाद विवाद बढ़ा … !  लेकिन गाँधी वांग्मय खण्ड १९ के पृष्ठ ४६१ पर तो लिखा है कि महात्मा गाँधीजी ने फरवरी १९२१ में रामलला के दर्शन किए थे। २० मार्च १९२१ के नवजीवन में भी यह प्रकाशित हुआ है। गाँधीजी २० फरवरी १९२१ को अयोध्या पहुंचे  थे। गाँधी वांग्मय के अनुसार ,महात्मा गांधी ने इस यात्रा का विवरण इस प्रकार बताया -


'अयोध्या में जहां भगवान रामचंद्र का जन्म हुआ कहा जाता है, उसी स्थान पर एक छोटा सा मंदिर है। जब मैं अयोध्या पहुंचा तो वहां मुझे ले जाया गया। साथी श्रद्धालुओं ने मुझे सुझाव दिया कि मैं पुजारी से विनती करूं कि वह भगवान सीता-राम की मूर्तियों के लिए पवित्र खादी का उपयोग करें, मैंने विनती तो की लेकिन उस पर अमल शायद ही हुआ हो। जब मैं दर्शन करने गया, तब मैंने मूर्तियों को मैली मलमल और जरी के वस्त्रों में पाया, यदि मुझ में तुलसीदास जी जितनी गाढ़ भक्ति की साम‌र्थ्य होती तो मैं भी उस समय तुलसीदास जी की तरह हठ पकड़ लेता।'


'कृष्ण मंदिर में तुलसीदास जी ने प्रतिज्ञा की थी कि जब तक धनुष-बाण लेकर कृष्ण राम रूप में प्रकट नहीं होते, तब तक तुलसी मस्तक नहीं झुकेगा। लेखकों का कहना है कि जब गोस्वामी ने ऐसी प्रतिज्ञा की, तब चारों ओर उनकी आंखों के सामने भगवान रामचंद्र की मूर्तियां खड़ी हो गई और तुलसीदास जी का मस्तक सहज ही नत हो गया।'


'मंदिर में भगवान सीता-राम के दर्शन के समय अनेक बार मेरा ऐसा हठ करने का मन हुआ कि हमारे भगवान राम को जब पुजारी खादी पहनाकर स्वदेशी बनाएंगे, तभी हम अपना माथा झुकाएंगे लेकिन मुझे पहले तुलसीदास जी जितना तप करना होगा, तुलसीदास जी की अभूतपूर्व भक्ति को प्राप्त करना होगा।'

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महात्मा गाँधी के खादी के आग्रह पर चर्चा फिर कभी करेंगे । लेकिन एक बात तो मानना पङेगी कि ६ दिसम्बर १९९२ को जो ढाँचा ढहाया गया उसे मस्जिद तो नहीं माना जा सकता। 

(क्रमशः )



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