(गतांक से आगे)
हिंदू धर्म में स्त्रियों का स्थान उच्च : महात्मा गाँधी
महात्मा गाँधी मानते थे कि हिंदू धर्म में स्त्रियों का स्थान पुरुषों से ऊपर है। इसके साथ ही वे बाल विवाह, पर्दा प्रथा और दहेज प्रथा के विरोधी थे तो विधवा विवाह के समर्थक। गाँधी साहित्य का अध्ययन करने पर पता लगता है कि उन्होंने अनेक अवसरों पर स्त्रियों की स्थिति और विभिन्न कुरीतियों के कुप्रभाव पर स्पष्ट विचार व्यक्त किए हैं।
अपनी आत्मकथा ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ में गाँधीजी बहुत साफगोई से अपने विवाह के प्रारंभिक वर्षों का उल्लेख करते हुए स्वीकार करते हैं कि वे भी स्वयं को ‘पति देव’ समझने लगे थे। वे यह भी स्वीकार करते हैं कि उन्हीं की वजह से ‘बा’ लगभग निरक्षर ही रह गईं।
१९ अगस्त १९२६ को यंग इंडिया में गाँधीजी लिखते हैं
हिन्दू धर्म में स्त्रियों को इतना उच्च स्थान दिया गया है हम सीता-राम कहते है,
राम-सीता नहीं, राधा-कृष्ण कहते हैं, कृष्ण-राधा नहीं।
विभिन्न अवसरों पर गाँधीजी द्वारा व्यक्त विचारों को पढ़ेंगे तो आप जान जाएंगे कि २० वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में गाँधीजी जो कह रहे थे वह २१ वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में भी प्रासंगिक है। आज भी उनका जस का तस पालन करने की आवश्यकता है।कभी-कभी लगता है कि हमने शायद गाँधीजी का केवल नाम लिया उनका अनुसरण नहीं किया।
‘‘ऐसे प्रत्येक व्यक्ति से जिसके आश्रय में कोई बाल-विधवा हो, मैं अपील करूँगा कि वह उसका विवाह कर देना अपना धर्म समझे‘‘।
‘‘धर्म के नाम पर गोरक्षा के लिए तो हम शोर मचाते हैं, परन्तु बाल-विधवाओं के ऊपर हमने वैधव्य को बोझ लाद रखा है,जो बेचारी विवाह संस्कार का अभिप्राय तक नहीं समझ सकती। बालिकाओं पर वैधव्य लादना तो पाशविक अपराध है, जिसका दण्ड हम हिन्दु प्रतिदिन बुरी तरह भुगत ही रहे है‘‘।
’’यदि इस विधवा का धर्म लोप होगा और कोई अज्ञान या उद्धतता के वशिभूत होकर सेवा की इस साक्षात मूर्ति का खण्डन करेगा तो हिन्दू धर्म को बड़ी हानि पहुँचेगी।’
आज के युग में यह सोचना भी कितना भ्रामक है कि स्त्रियों के सतीत्व की रक्षा के लिए पर्दा प्रथा आवश्यक है।’
“पर्दे की प्रथा बहुत पुरानी नहीं है क्योंकि जिस जमाने में निष्कलंक सीता तथाद्रोपदी मौजूद थी, उस जमाने में परदा नही हो सकता था। इसी प्रकार गार्गी परदे में बैठकर शास्त्रार्थ नहीं कर सकती थी। अर्थात् जो चीज बुद्धि की कसौटी पर खरी न निकले, बशर्ते वह कितनी ही प्राचीन क्यों न हो उसे त्याग देना चाहिए।”
‘‘स्त्री के चरित्र की निर्मलता को लेकर पुरूष क्यों चिंतित रहते है जबकि पुरूष
की पाकीजगी के बारे में स्त्री कभी चिंता नहीं करती चरित्र की निर्मलता तो
अन्दर से पैदा होने वाली चीज है, इसलिए उसे व्यक्ति के अपने प्रयास पर छोड़ देना चाहिए।’’
“पुरूष को पवित्र बनाने में स्त्रियां बहुत सहायक होती है परन्तु परदे में
रहने वाली दबी हुई स्त्री पुरूष को भला कैसे पवित्र बना सकती है।”
“पर्दा स्त्रियों की शिक्षा में बाधा डालता है। इससे स्त्रियों में भीरूता बढ़ती है। पर्दे
में रहने वाली स्त्रियों का स्वास्थ्य बिगड़ता है। यह स्त्रियों और पुरूषों के
बीच स्वच्छ सम्बन्ध रोकता है। इससे स्त्रियों में नीच वृत्ति का पोषण होता
है। यह स्त्रियों को बाहरी दुनियाॅ से दूर रखता है जिससे वे उसके योग्य अनुभव से वंचित रहती हैं।”
‘‘जब वर कन्या के बाप से विवाह करने की मेहरबानी के लिए दण्ड
लेता है तब नीचता की हद हो जाती है।............. पैसे के लालच में किया
गया विवाह-विवाह नहीं है, एक नीच सौदा है।’
‘‘जो युवक विवाह के लिये दहेज की शर्त रखता है, वह अपनी शिक्षा और देश को बदनाम करता है, और साथ ही स्त्री जाति का अपमान करता है‘‘।
‘‘स्त्री के चरित्र की निर्मलता को लेकर पुरूष क्यों चिंतित रहते है जबकि पुरूष की पाकीजगी के बारे में स्त्री कभी चिंता नहीं करती चरित्र की निर्मलता तो अन्दर से पैदा होने वाली चीज है, इसलिए उसे व्यक्ति के अपने प्रयास पर छोड़ देना चाहिए‘‘।
“पुरूष को पवित्र बनाने में स्त्रियां बहुत सहायक होती है परन्तु परदे में रहने वाली दबी हुई स्त्री पुरूष को भला कैसे पवित्र बना सकती है।”
(क्रमशः)
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