(गतांक से आगे)
हिंदू समाज और देश का बिखराव रोका पूना पैक्ट ने
“मेरी समझ में दलित वर्ग के लिए पृथक निर्वाचन की व्यवस्था करना हिन्दू धर्म को बर्बाद करने का इंजेक्शन लगाना है. इस से दलित वर्गों का कोई लाभ नहीं होगा।” यह कहते हुए महात्मा गाँधीजी ने अंग्रेजों द्वारा दलितों को दिए गए jप्रथक निर्वाचन का विरोध किया। उन्होंने जेल के भीतर ही अनशन शुरू कर दिया। आखिरकार २४ सितंबर १९३२ को बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर और महात्मा गाँधी के बीच समझौता हुआ।
इस समझौते की पूरी पृष्ठभूमि को देखेंगे तो पता लगता है कि अंग्रेजों ने दलितों को प्रथक निर्वाचन का अधिकार देकर हिंदू समाज में बिखऱाव की कोशिश की थी। महात्मा गाँधी ने इसको समझ लिया था। वे बंग भंग और मुसलमानों को दिए गए प्रथक निर्वाचन के अधिकार का हश्र देख चुके थे। इन्हीं दो निर्णयों ने मुसलमानों के लिए अलग देश की मांग का आधार बनाया, जिसे अंत तक रोका नहीं जा सका।
सितम्बर १९३२ में प्रथक निर्वाचन की घोषणा से पहले
लंदन में आयोजित गोलमेज़ सम्मेलन के दूसरे दौर में १२ नवम्बर १९३१ को गांधी जी ने अछूतों की ओर से कहा - "मेरा दावा है कि अछूतों के प्रश्न का सच्चा प्रतिनिधित्व तो मैं कर सकता हूँ। यदि अछूतों के लिए पृथक् निर्वाचन मान लिया गया, तो उसके विरोध में मैं अपने प्राणों की बाजी लगा दूँगा।” भारत आने पर गिरफ्तार किए गए महात्मा गाँधीजी यरवदा जेल से भी इस प्रथक निर्वाचन का विरोध करते रहे। उन्होंने ब्रिटिश सरकार को पत्र लिखे, लेकिन ब्रिटिश मंत्री रैमजे मेकडोनाल्ड ने दलितों के प्रथक निर्वाचन को मंजूरी दे दी। नाराज गाँधीजी ने जेल में ही अनशन शुरू कर दिया। गाँधीजी का कहना था कि इससे दलित वर्ग हिन्दू समाज से अलग हो जाएगा , जिससे हिन्दू समाज और हिन्दू धर्म विघटित हो जायेगा। अंतत: देश को एक रखना मुश्किल हो जाएगा। २४ सितंबर १९३२ को पूना पैक्ट हुआ और वंचित वर्ग के लिए विधान मंडलों में स्थान सुरक्षित किए गए। यह व्यवस्था आज तक जारी है।
यह भी हमें स्वीकार करना होगा कि गाँधीजी के प्रयासों से ही देश में छुआछुत की भावना में कमी आई। वर्तमान दौर में जब हम चुनावी राजनीति के लिए समाज के विघटन के प्रयासों को देखते हैं तब गाँधीजी की बात और उनके अनशन का अर्थ समझ आता है।
(क्रमशः)
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