Saturday, October 3, 2020

हिंदुत्व और महात्मा गाँधीजी का रामराज्य (१६)

हिंदू समाज में सुधार के लिए गाँधीजी के उपाय

(गतांक से आगे)


आज से यह श्रृंखला नए सौपान में प्रवेश कर रही है। अगली कुछ  क़ड़ियों में हम इस बात पर चर्चा करेंगे कि महात्मा गाँधी ने हिंदू समाज की बुराइयों को दूर करने के लिए क्या उपाय किए। चर्चा की शुरुआत छुआछूत की बुराई से करते हैं।


1६ नवंबर १९३५ को हरिजन में महात्मा गाँधी लिखते हैं – ‘प्रचलित जाति प्रथा वर्णाश्रम के बिल्कुल विपरीत है, अत: इसको जितना जल्दी समाप्त कर दें उतना अच्छा है। जाति का धर्म से कोई संबंध नहीं है, यह आध्यात्मिकता और राष्ट्रीयता दोनों में बाधक है।’


गांधीजी कहते थे कि अगर कोई सनातनी यह सिद्ध कर देगा कि वेदों ने अस्पृश्यता को मान्यता दी है तो वे वेदों को छोड देंगे पर अस्पृश्यता को नहीं छोड़ेंगे। दरअसल उनका यह वक्तव्य उनके इस भरोसे को जताता है कि वेदों में कहीं भी छुआछूत का उल्लेख नहीं है।


महात्मा गाँधी बचपन से ही अस्पृश्यता को नहीं मानते थे। सत्य के साथ मेरे प्रयोग में महात्मा गाँधी लिखते हैं कि वे बचपन में उकाभाई भंगी को न छूने के अपनी माँ के आदेश का पालन वे नहीं कर पाए थे. आत्मकथा में दक्षिण अफ्रीका की भी एक घटना का वर्णन उन्होंने किया है।  कस्तूरबा ने जब एक अस्पृश्य क्लार्क का पॉट साफ करने से इन्कार किया तो गाँधीजी उन्हें घर से निकाल देने पर आमादा हो गये थे।

भारत आकर महात्मा गांधी ने अहमदाबाद में आश्रम शुरू किय। यहां एक बुनकर परिवार को आश्रम में रखने के कारण गाँधीजी को खासे विरोध का सामना करना पड़ा।  अहमदाबाद के सारे वैष्णव इतना गुस्सा हो गए कि आश्रम को आर्थिक मदद मिलना बंद हो गई। इस मामले में तो महात्मा गाँधी की पत्नी कस्तुरबा भी आसानी से इस निर्णय पर सहमत नहीं हो पाईं थीं। गाँधीजी को अपने सहयोगी मगनलाल गाँधी और उनकी पत्नी संतोक बहन का भी विरोध सहना पड़ा था। छुआछूत का विरोध करने को लेकर उन पर  जानलेवा हमले भी हुए थे। जगन्नाथपुरी के मंदिर में प्रवेश करने के समय उनकी गाडी पर आक्रमण हुआ था। पूना में गाँधीजी की गाडी पर बम फेंका गया था। पूर्व में मैं बिड़ला मंदिर के शुभारंभ अवसर का जिक्र कर चुका है। महात्मा गाँधी को जब यह भरोसा दिलाया गया था कि इस मंदिर में प्रवेश पर जाति के आधार पर रोक नहीं होगी तभी वे कार्यक्रम में शामिल होने को राजी हुए थे।१९३४ में उन्होंने हरिजन सेवक संघ की स्थापना की। हरिजन-सेवक-संघ का प्रथम अध्यक्ष  घनश्यामदास बिड़ला और मंत्री अमृतलाल ठक्कर  जो "ठक्कर बापा" के नाम से प्रसिद्ध थे को नियुक्त किया।


(क्रमश:)

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