Wednesday, October 28, 2020

हिंदुत्व और महात्मा गाँधीजी का राम राज्य (२२)

(गतांक से आगे)

जानिए मनु स्मृति पर क्या कहते थे महात्मा गाँधी

मनु स्मृति को लेकर अक्सर ज्ञानी लोग विवाद करते हैं। मनु स्मृति के नाम से दर्ज कुछ श्लोकों को उदाहरण बता कर पूरे हिंदुत्व को ही कठघरे में खड़ा करने की कोशिश होती है। कहा जाता है कि हिंदू संस्कृति महिला विरोधी है और छुआछूत की समर्थक है।

कुछ साल पहले का मेरा एक व्यक्तिगत अनुभव है। एक “लाल ज्ञानी’’ सामाजिक समरसता और सामाजिक समानता पर मुझसे चर्चा कर रहे थे। मैं समरसता पर जोर दे रहा था। उन्होंने मनु स्मृति के कुछ श्लोक का उदाहरण देकर कहा कि शूद्रों को वेदों के अध्ययन का अधिकार नहीं है। मैंने अपने सामान्य ज्ञान से कहा कि मनु स्मृति में मिलावट है। यह श्लोक मूल मनु स्मृति का नहीं है। ‘‘लाल ज्ञानी’’ ने सवाल दागा क्या आपके पास मनु स्मृति की पांडुलिपि या मूल प्रति है। मैं चुप हो गया। अब जो बात मैं कह रहा था, वही बात बहुत अच्छे अंदाज में गाँधीजी ने ६ अप्रैल १९३४ को हरिजन में लिखी है। गाँधीजी ने जो लिखा है उसका एक अंश पढ़िए...


“मैं मनुस्मृति को शास्त्रों का हिस्सा मानता हूं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं मनु स्मृति के नाम से छपी पुस्तक के हर एक श्लोक को अक्षरश: सही मानता हूं। प्रकाशित पुस्तक में बहुत सारे विरोधाभास हैं। यदि आप एक हिस्सा स्वीकार करते हैं, तो आप उन हिस्सों को अस्वीकार करने के लिए बाध्य हैं, जो पूरी तरह से असंगत हैं। मैं मनु स्मृति में समाहित उदात्त धार्मिक शिक्षाओं के कारण उसे एक धार्मिक पुस्तक मानता हूं।... लेकिन यह स्वीकार करना चाहिए कि दरअसल आज किसी के भी पास मूल ग्रंथ की प्रति है ही नहीं।”


१६ सितंबर, १९२७ को तमिलनाडु के तंजौर में उनका पूरा भाषण ही मनु स्मृति जैसे विषयों  पर केंद्रित था. इन विषयों पर उनसे हुए  सवाल-ज़वाब का महादेव देसाई द्वारा किया गया संकलन यंग इंडिया के २४ नवंबर, १९२७ के अंक में छपा था. इन सवालों में से दो सवाल सीधे मनुस्मृति पर ही केंद्रित थे


सवाल - मनुस्मृति में (वर्ण-धर्म का) जो सिद्धान्त दिया गया है क्या आप उसका समर्थन करते हैं?


गांधीजी - सिद्धांत उसमें है, लेकिन उसका व्यावहारिक रूप मुझे पूरी तरह जमता नहीं. इस ग्रंथ के कई अंश हैं जिन पर गंभीर आपत्तियां हो सकती हैं. मुझे लगता है कि वे अंश उसमें बाद में जोड़ दिए गए हैं.


सवाल - क्या ‘मनुस्मृति’ में बहुत सी अन्यायपूर्ण बातें कही गई हैं?


गांधीजी - हां, उसमें स्त्रियों और तथाकथित नीची ‘जातियों’ के बारे में बहुत सी अन्यायपूर्ण बाते हैं. इसलिए तथाकथित शास्त्रों को बहुत सावधानी के साथ पढ़ने की आवश्यकता है.


गाँधीजी ने अन्य अवसरों पर भी यह बात दोहराई है कि मनु स्मृति ही नहीं बल्कि रामचरित मानस और महाभारत जैसे ग्रंथों में भी मिलावट हुई है। इसीलिए वे धार्मिक पुस्तकों का सावधानी से अध्ययन करने की सलाह देते हैं। वे कहते हैं कि सत्य और अहिंसा धर्म का आधार है। जो कुछ भी इस आधार के विपरीत है वह धार्मिक नहीं है।


(क्रमशः)

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