Sunday, October 18, 2020

नवरात्रि की शुभकामनाएं : तीसरा दिन

 प्राचीन भारत में महिलाओं की स्थिति समझने के लिए शंकराचार्य जी के जीवन का यह प्रसंग जानना जरूरी


यदि आप प्राचीन भारत में महिलाओं की स्थिति समझना चाहते हैं तो आदि शंकराचार्य जी के जीवन का यह प्रसंग जानना आपके लिए जरूरी है। महिष्मति में रहने वाले प्रकाण्ड विद्वान मंडन मिश्र और उनकी विदूषी पत्नी उभय भारती के साथ हुए शंकराचार्य जी के शास्त्रार्थ के इस प्रसंग को जब आप पढ़ेंगे तो पाएंगे कि मंडन मिश्र और उनकी की पत्नी ही नहीं बल्कि पूरा गांव ईश्वर और चराचर जगत का ज्ञानी था।

आदि शंकराचार्य ने महापंडित मंडन मिश्र का नाम और ज्ञान की ख्याति सुनी। वे उनके गांव पहुंचे।  जहां कुएं पर पानी भर रहीं महिलाएं संस्कृत में वार्तालाप कर रहीं थीं। शंकराचार्य जी ने उनसे पूछा, ‘मंडन मिश्र का घर कहां है?’ उनमें से एक स्त्री ने बताया, ‘आगे चले जाइए। जिस दरवाजे पर तोते शास्त्रार्थ कर रहे हों, वही पं. मंडन मिश्र का घर होगा।’ शंकराचार्य आगे बढ़े।  वाकई एक घर के बाहर पिंजरे में तोते शास्त्रार्थ कर रहे थे। शंकराचार्य ने जान लिया कि वही मंडन मिश्र का घर था। मंडन और उनकी विदुषी पत्नी उभय भारती ने आदर-सत्कार किया। आस-पड़ोस के पंडित भी आ जुटे। सेवा सत्कार के बाद शास्त्रार्थ होना था। दोनों के बीच निर्णायक की तलाश हुई। पंडितों ने कहा, ‘आप दोनों के शास्त्रार्थ में हार-जीत का निर्णय करने के लिए मंडन मिश्र की पत्नी भारती ही उपयुक्त रहेंगी।
सोचिए जिसे गांव के पंडितों ने इस शास्त्रार्थ के लिए निर्णायक माना वह कितनी ज्ञानी होगी।

 दोनों में शास्त्रार्थ कई दिन चला। अंत में भारती ने शंकराचार्य को विजयी घोषित किया। पर कहा, ‘मंडन मिश्र विवाहित हैं। मैं और मेरे पति मंडन मिश्र, हम दोनों मिलकर एक इकाई बनाते हैं। अर्धनारेश्वर की तरह। आपने अभी आधे भाग को हराया है। अभी मुझसे शास्त्रार्थ बाकी है।

शंकराचार्य ने उनकी चुनौती स्वीकार की।  और इस बार निर्णायक घोषित हुआ सभा मंडप। दोनों के बीच जीवन-जगत के प्रश्नोत्तर हुए। शंकराचार्य जीत रहे थे। परंतु अंतिम प्रश्न भारती ने किया। उनका प्रश्न ग्रहस्थ  जीवन में स्त्री-पुरुष के संबंध के व्यावहारिक ज्ञान से जुड़ा था। शंकराचार्य को उस जीवन का व्यवहारिक पक्ष मालूम नहीं था। उन्होंने ईश्वर और चराचर जगत का अध्ययन किया था। वे अद्वैतवाद को मानते थे। इसलिए उन्होंने इस प्रश्न के उत्तर के लिए कुछ समय मांगा और वहां से चले गए।
शंकराचार्य ने एक गुफा में अपना शरीर छोड़ा और शिष्यों को वहां रुकने के लिए कहा। सूक्ष्म रूप धारण कर वे आकाश में भ्रमण करने लगे। इस दौरान उन्होंने राजा अमरूक के मृत शरीर को देखा, जिसके आसपास 100 से अधिक सुंदरियां विलाप कर रही थीं। तब शंकराचार्य ने सूक्ष्म रूप के साथ राजा के शरीर में प्रवेश किया। राजा को जीवित देख रानियां व मंत्री प्रसन्न् हो गए। राजा ने पुन: काम संभाला और इसी दौरान काम शास्त्र से संबंधित तथ्यों को जाना और पुन: राजा अमरूक के शरीर को छोड़कर गुफा में पहुंचे और अपने मूल शरीर में प्रवेश कर मंडन मिश्र के घर पहुंचे। वहां उभय भारती व शंकराचार्य के बीच पुन: शास्त्रार्थ हुआ। इसमें शंकराचार्य ने उभय भारती को पराजित किया।

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