Saturday, October 17, 2020

नवरात्रि की शुभकामनाएं - दूसरा दिन

हमने अपनी पौराणिक कथाओं का अनुसरण करने की बजाय उन्हें दूषित होने दिया और फिर दूषित को ही सत्य मानने लगे - #मनोज_जोशी


हिंदू परंपरा में स्त्रियों के स्थान को लेकर फैलाए जा रहे भ्रम को दूर करने के लिए शुरू की गई श्रृंखला के पहले दिन मिली प्रतिक्रियाओं के आधार पर मैं कहना चाहता हूँ कि हमने अपनी पौराणिक कथाओं को मिथक मान लिया और देवताओं व ऋषि मुनियों को पू्ज्य मान कर यह सोच लिया कि हमें बस इनकी पूजा करना है। हमने अनुसरण बंद कर दिया।

विचार कीजिए जिस देश में हजारों हजार साल पहले रावण नाम का राक्षस हर तरह से अधर्म में लिप्त था, वह न केवल भगवान बल्कि वन में साधना कर रहे ऋषि मुनियों की तपस्या भी भंग करता था। लेकिन जब उसने एक स्त्री (माता सीता) का धोखे से अपहरण किया और अपने विमान में बैठा कर वह उन्हें अपने राज्य में ले गया। वहां उसमे माता सीता को अपने महल में नहीं बल्कि अशोक वाटिका में महिला राक्षसों की देखरेख में रखा। कुल मिलाकर रावण ने माता सीता को छुआ भी नहीं। तब इस घटना ने पूरे समाज को हिला कर रख दिया। पूरा भारत उसके खिलाफ हो गया। स्वयं उसका भाई उसके खिलाफ हो गया और नतीजा उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। यदि राम चाहते तो केवल सीता को वापस लाकर भी रावण को जीवित छोड़ सकते थे, लेकिन समाज का दबाव इतना था कि रावण का वध ही उसकी सजा थी।

इस उदाहरण पर यदि आज के संदर्भ में विचार करेंगे तो वर्तमान दौर में महिलाओं पर होने वाले अत्याचार को लेकर समाज में वास्तव में कितना

गुस्सा होता है? कोई घटना होने पर उसकी राजनीतिक और जातिगत छिछालेदारी शुरू हो जाती है। चौराहों पर मोमबत्ती जलाकर विरोध करने से यदि घटनाएं रूक रहीं होतीं तो अब तक रूक गईं होतीं।

मैं पुन: दोहराना चाहता हूं। हमने माता सीता वाली घटना को इन संदर्भ में भूला दिया, लेकिन जो हुआ नहीं उसे सही मानते हुए अपने ही आराध्य और पौराणिक पात्रों की हँसी उड़ाना शुरू कर दिया।


मैं पूरे दम से कहता हूँ कि सीता की अग्नि परीक्षा ही नहीं बल्कि संपूर्ण उत्तर रामायण मिथ्या है। पूर्व में भी मैं इस पर लिख चुका हूँ। लेकिन वर्तमान संदर्भ में इसे नए तथ्यों के साथ लिख रहा हूँ। दरअसल रामायण का उत्तर कांड वाल्मीकि जी ने लिखा ही नहीं। भगवान राम को हम मर्यादा पुरुषोत्तम कहते हैं । सोचिए इस पदवी वाला व्यक्ति समाज के सामने ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करेगा और उसके बाद भी पूजा जाएगा ? यह तार्किक नहीं लगता। 

जिस रामायण काल में स्त्रियां युद्ध में भाग लेती हों उस समय सीता को अग्नि परीक्षा के लिए मजबूर किया जाना संभव है क्या ? याद कीजिए माता  कैकई ने महाराज दशरथ की युद्ध के मैदान में रक्षा की थी। तभी उन्हें महाराज ने दो वचन दिए थे। इस पूरे प्रसंग में विद्वानों द्वारा किए गए शोध बताते हैं कि रामायण में मिलावट है। सीता के अपहरण के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम सीता वियोग में परेशान नजर आते हैं। लेकिन अचानक कह देते हैं कि यह सब उन्होंने सीता को पाने के लिए नहीं किया। युद्ध कांड तक कथा एक प्रवाह में चलती है, लेकिन उसके बाद अचानक यू टर्न आता है। यह श्लोक उनकी छवि के एकदम विपरीत है। इसके बाद जब सीताजी को अग्नि में प्रवेश करने की बात होती है तो अचानक सारे देवता आ जाते हैं, जो कि इसके पहले कहानी में कहीं नहीं ।


अब मैं आपसे कहूँ कि राम ने सीता-परित्याग कभी किया ही नहीं …


जिस उत्तर कांड में सीता परित्याग जैसी बातें दर्ज हैं वह वाल्मीकि जी ने लिखा ही नहीं । इसे बहुत बाद में जोड़ दिया गया।


रामकथा पर प्रामाणिक शोधकर्ता माने जाने वाले फ़ादर कामिल बुल्के का स्पष्ट मत है कि  उत्तरकांड बहुत बाद की प्रक्षिप्त रचना है। उत्तरकांड की भाषा, शैली और कथानक के वर्णन की गति युद्धकांड तक की रामायण से  एकदम अलग है। यही नहीं ब्रह्मांड पुराण, विष्णु पुराण, वायु पुराण, कूर्म पुराण, वाराह पुराण, लिंग पुराण, नारद पुराण,स्कंद पुराण, पद्म पुराण, हरिवंश पुराण, नरसिंह पुराण में भी रामकथा का वर्णन है, लेकिन इनमें कहीं भी


सीता-परित्याग  का कोई  उल्लेख तक नहीं किया गया है, रामायण का पूरा उत्तरकांड कल्पनिक है और वर्षों बाद मूल में जोड़ा गया। शास्त्र तो कहते हैं कि श्रीरामचन्द्रजी ने ग्यारह सहस्त्र वर्षों तक जनकनन्दिनी सीता एवं समस्त भ्राताओं के साथ राजनगरी अयोध्या से प्रजा-पालन करते हुए कौशल देश पर सुखपूर्वक राज किया था।


श्रीतुलसीपीठाधीश्वर स्वामी रामभद्राचार्य जी महाराज ने सीता निर्वासन पर एक पुस्तक की रचना की है -“सीता निर्वासन नहीं “। उनकी स्पष्ट मान्यता है “सीता जी के द्वितीय वनवास की कल्पना बिल्कुल निराधार है, अशास्त्रीय है । इस पुस्तक का अध्ययन कीजिए । स्वामी जी के प्रवचन यू ट्यूब पर उपलब्ध हैं उन्हें सुनिए । धर्म ग्रंथों पर उनके अध्ययन के आधार पर जब आप उनके तर्क पर गौर करेंगे तो आप भी मेरी तरह यही कहेंगे कि रामायण का उत्तर कांड वाल्मीकि जी ने लिखा ही नहीं ।



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