Wednesday, October 28, 2020

हिंदुत्व और महात्मा गाँधीजी का राम राज्य (२१)

(गतांक से आगे)

धर्म में आडम्बर के विरोधी थे गाँधीजी


नवदुर्गा में अचानक बनी विशेष परिस्थितियों के कारण मैंने  #स्त्री_शक्ति पर एक श्रृंखला लिखने का व्रत ले लिया। इस वजह से महात्मा गाँधीजी की यह श्रृंखला बीच में ही छूट गई थी। हम पिछली कुछ पोस्ट में गाँधीजी द्वारा हिंदू धर्म में सुधार के लिए किए गए प्रयासों पर चर्चा कर रहे थे। इस २१ वीं कड़ी में उसे ही आगे बढ़ाने का प्रयास करता हूं। इसके साथ ही श्रृंखला को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए इसके तत्काल बाद २२ वीं कङी भी प्रस्तुत कर रहा हूँ ।

गांधी वांङ्गमय के खंड २२को पढ़ें तो पाएंगे कि वे हिंदू धर्म में आडम्बर के भारी विरोधी थे। गांधीजी कहते हैं - 

“धर्म के नाम पर हम हिंदुओं ने खूब आडंबर रच रखा है | धर्म को केवल खानपान का विषय बनाकर हमने उसकी प्रतिष्ठा कम कर दी है | हमें आंतरिक पवित्रता का अधिक विचार करना चाहिए | हम अनेक आंतरिक प्रलोभनों से घिरे हुए हैं; घोर-से-घोर अस्पृश्य और पापपूर्ण विचारों का प्रवाह हमें स्पर्श कर रहा है, अपवित्र बना रहा है, उस सर्वशक्तिमान परमात्मा के दरबार में हमारी पहचान इस बात से नहीं होगी कि हमने क्या-क्या खाया-पीया है और किस-किस का स्पर्श किया है, बल्कि इस बात से होगी कि हमने किस-किस की सेवा किस-किस तरह से की | यदि हमने किसी भी विपत्तिग्रस्त और दुखी मनुष्य की सेवा की होगी तो वह अवश्य हम पर कृपा-दृष्टि डालेगा | जिस प्रकार हमें बुरे लोगों और बुरी बातों के संसर्ग से बचना चाहिए उसी प्रकार खराब, उत्तेजक और गंदे खान-पान से भी दूर रहना चाहिए | लेकिन हमें इन नियमों की महिमा को भी आवश्यकता से अधिक महत्त्व नहीं देना चाहिए | हम भोजन के रूप में अमुक वस्तुओं के त्याग का उपयोग अपने कपट-जाल, धूर्तता और पापाचरण को छिपाने के लिए नहीं कर सकते | और इस आशंका से कि कहीं उनका स्पर्श हमारी आध्यात्मिक उन्नति में बाधक न हो, हमें किसी पतित या गंदे भाई-बहन की सेवा से हरगिज मुंह न मोड़ना चाहिए |”

(क्रमशः)

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